प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस पर दिये गये संबोधन को पंजाबी मीडिया ने कैसे आंका?

PM Modi Independence Day address
ANI

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से स्वास्थ्य क्षेत्र में आम लोगों के लिए बड़ी राहत का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री के मुताबिक लोगों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के लिए जन औषधि केंद्रों की संख्या 10 हजार से बढ़ाकर 25 हजार की जाएगी।

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से देशवासियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार के काम गिनवाए, मणिपुर के बारे में बात की और देशवासियों को परिवारजन का नवीन संबोधन दिया। बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को लेकर गरिमापूर्ण भाषा का उपयोग करने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए एक हैंडबुक जारी की। इस हैंडबुक का नाम ‘कंबैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स’ है।  लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी के 90 मिनट के भाषण और सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी हैंडबुक पर इस हफ्ते पंजाबी अखबारों ने अपनी राय प्रमुखता से रखी है।

लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के संबोधन पर चंडीगढ़ से प्रकाशित पंजाबी ट्रिब्यून लिखता है- लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में निहित राजनीतिक संदेश स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, ये संदेश 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर हैं। प्रधानमंत्री ने ‘प्रिय भाइयों एवं बहनों अथवा ‘प्रिय देशवासियों’ के स्थान पर ‘परिवार’ विशेष शब्द का प्रयोग किया। यह बदलाव प्राकृतिक नहीं है। प्रधानमंत्री और भाजपा इस हकीकत से वाकिफ हैं कि उन्हें एकता की ओर बढ़ रहे विपक्षी दलों, दस साल की सत्ता से पैदा हुए विरोध और बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी का सामना करना है। ऐसे में एक-एक वोट महत्वपूर्ण है। अखबार आगे लिखता है, 15 अगस्त को दिया गया भाषण आमतौर पर देश की सामूहिक उपलब्धियों के साथ-साथ देश के सामने आने वाली चुनौतियों को इंगित करने के लिए होता है, लेकिन प्रधानमंत्री के भाषण का राजनीतिक व्याकरण स्पष्ट था, इसमें भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण की राजनीति के खिलाफ जंग छेड़ने का ऐलान किया गया। जाहिर है, ये आरोप कुछ विपक्षी दलों पर लगाए गए थे। प्रधानमंत्री का यह कहना सही है कि भ्रष्टाचार ने घुन की तरह देश की पूरी व्यवस्था और उसकी क्षमताओं को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है, इसे दूर करना बेहद जरूरी है, लेकिन वर्तमान सरकार द्वारा अपनाए गए अकुशल आर्थिक विकास मॉडल के परिणाम भी सबके सामने हैं। देश में आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ रही है जिसके कारण शीर्ष अमीरों की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि हुई है और कम भाग्यशाली लोगों की आय और क्रय शक्ति में कमी आई है। अखबार लिखता है, प्रधानमंत्री के भाषण में राजनीतिक बयानबाजी स्पष्ट रूप से इस साल राज्य विधानसभा चुनावों और 2024 में लोकसभा चुनावों की ओर इशारा करती है।

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जालंधर से प्रकाशित नवां जमाना लिखता है- आरएसएस से मिली सीख के मुताबिक प्रधानमंत्री मुस्लिम शासकों का जिक्र करना नहीं भूलते। गुलामी के दौर का जिक्र करते हुए भी उन्होंने ब्रिटिश शासन के 200 साल का नहीं बल्कि मुस्लिम शासन का जिक्र किया। उन्होंने देशवासियों से 2024 में भी जीत का आह्वान करते हुए कहा कि वे जो कदम उठाएंगे वह एक हजार साल तक भारत की दिशा तय करेगा। पहले पीएम 25-30 साल की बात करते रहे हैं, लेकिन इस बार उन्होंने लंबी छलांग लगाते हुए सीधे एक हजार साल की बात कह दी। अखबार के मुताबिक, मोदी जितना चाहे अपनी पीठ थपथपाएं, असल में भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने का काम 2004 से 2014 के बीच हुआ है। अखबार लिखता है, लाल किले से अपने भाषण में पीएम ने तीन बुराइयों भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और तुष्टिकरण से लड़ने का आहवान किया। साढ़े नौ साल के शासनकाल में मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ किस तरह की लड़ाई लड़ी है, यह सीएजी की हालिया रिपोर्ट से साफ हो गया है। वृद्धावस्था पेंशन में घोटाला, आयुष्मान भारत योजना में घोटाला और एक किलोमीटर हाईवे के निर्माण पर 250 सौ करोड़ खर्च यानी कैग रिपोर्ट का हर पन्ना एक नए घोटाले को उजागर कर रहा है। अखबार लिखता है, भले ही मोदी सरकार देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का दावा कर रही हो, लेकिन देश की असली आर्थिक तस्वीर प्रति व्यक्ति आय से पता चलती है, जिसमें भारत शीर्ष 10 देशों में भी नहीं है, लेकिन मोदी ने कभी इस पर चर्चा नहीं की। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में 2022 तक देश के हर व्यक्ति और किसानों की आय दोगुनी करने के वादे का जिक्र नहीं किया। उन्होंने हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने और बेरोजगारी का भी जिक्र नहीं किया। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री का भाषण एक चुनावी रैली जैसा था, जिसमें उन्होंने अपने समर्थकों को संबोधित किया।

पटियाला से प्रकाशित चढ़दीकलां लिखता है- प्रधानमंत्री के लाल किले से संबोधन से यही संदेश मिला है कि वह आगे भी अपनी गतिविधियां जारी रखेंगे। अखबार लिखता है, वैश्विक स्तर पर महंगाई को एक गंभीर चुनौती के रूप में देखा जा रहा है और भारत भी इससे जूझ रहा है। देश में आतंकवाद की समस्या से निपटना एक बड़ी उपलब्धि है। पिछले कुछ वर्षों में एक महत्वपूर्ण पहलू महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से चलाए गए कार्यक्रम हैं। वहीं भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और तुष्टीकरण को तीन बुराइयों के रूप में गिनाना राजनीतिक चुनौतियों की तैयारी के रूप में भी देखा जा सकता है।

जालंधर से प्रकाशित अज दी आवाज लिखता है- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से स्वास्थ्य क्षेत्र में आम लोगों के लिए बड़ी राहत का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री के मुताबिक लोगों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के लिए जन औषधि केंद्रों की संख्या 10 हजार से बढ़ाकर 25 हजार की जाएगी। प्रधानमंत्री का कहना है कि जन औषधि केंद्रों ने लोगों, खासकर मध्यम वर्ग को नई ताकत दी है। अखबार आगे लिखता है, लेकिन इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि जन औषधि केंद्र खोलने और मरीजों तक जेनेरिक दवाएं पहुंचाने के सरकार के प्रयासों को जिम्मेदार अधिकारी कुचल रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा लैंगिक भेदभाव पर नकेल कसने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए हैंडबुक जारी करने पर जालंधर से प्रकाशित पंजाबी जागरण लिखता है- निःसंदेह सुप्रीम कोर्ट की यह पहल सराहनीय है क्योंकि पुरुष प्रधान भारतीय समाज में कई ऐसे शब्द हैं जिनका इस्तेमाल महिलाओं की गरिमा के खिलाफ किया जाता है। इन शब्दों का प्रयोग कानूनी प्रक्रिया के कार्यान्वयन के दौरान भी किया जाता रहा है, लेकिन शायद इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया गया। इसीलिए न्यायाधीशों और वकीलों को समझाने और महिलाओं के प्रति रूढ़िवादिता के प्रयोग से बचने के लिए पुस्तिका जारी की गई। हैंडबुक के लॉन्च के बाद अब सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और दलीलों में लैंगिक रूढ़िबद्ध शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। अखबार लिखता है, समाज के विभिन्न वर्गों और कार्यस्थलों पर महिलाओं के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा भी कभी-कभी बहुत सम्मानजनक नहीं होती है। ऐसा नहीं है कि ऐसे शब्दों का इस्तेमाल जानबूझकर किया जाता है। हमारे अचेतन मन में ऐसे शब्दों का प्रयोग यूं ही किया जाता है, लेकिन उनका अर्थ गंभीर और असम्मानजनक होता है। ऐसे शब्दों का प्रयोग हम पीढ़ी-दर-पीढ़ी करते रहते हैं। आमतौर पर महिलाओं के लिए इस्तेमाल होने वाले शब्दों से वे खुद वाकिफ नहीं हैं। ऐसे में महिलाओं के लिए इस्तेमाल होने वाले अपमानजनक शब्दों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस हैंडबुक का लॉन्च करना सरसरी नजर में मामूली बात लग सकती है, लेकिन अगर इसकी बारीकियों पर नजर डालें तो यह रुढ़िवादी सोच पर गहरी चोट करती है।

पटियाला से प्रकाशित चढ़दीकलां लिखता है- हमारे समाज में लिंग भेदभाव के कई स्तर हैं, भाषा उनमें से एक है। संविधान में महिलाओं और पुरुषों के बीच भेद को खत्म करने के लिए समय-समय पर कई प्रावधान किए गए हैं, लेकिन उनके लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा को परिष्कृत करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट की नवीनतम पहल महिलाओं के प्रति उचित भाषाई न्याय है।

-डॉ. आशीष वशिष्ठ

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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