विपक्षी पार्टियों की एकता की असली परख तब होगी जब सीटों के बँटवारे का समय आयेगा

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देखा जाये तो मुख्य मुकाबले के लिए तैयारियां दोनों ओर से भरपूर की जा रही हैं। दोनों ओर से सबसे ज्यादा डोरे छोटी पार्टियों पर डाले जा रहे हैं। छोटी पार्टियों को पता है कि केंद्र की राजनीति में भाजपा या कांग्रेस के छाते के नीचे खड़े होकर ही बचा जा सकता है।

आपने 2018 में बेंगलुरु से आई वह तस्वीर देखी होगी जिसमें तमाम विपक्षी नेता एक दूसरे के हाथ में हाथ डाले संकल्प ले रहे थे कि 2019 के लोकसभा चुनावों में मोदी सरकार को सत्ता से हटाना है। इस संकल्प को सिद्ध करने के लिए एक दूसरे के जन्मजात दुश्मन माने जाने वाले कई दल साथ भी आ गये थे लेकिन चुनाव का नतीजा यह आया कि भाजपा 2014 में जीती 282 लोकसभा सीटों के मुकाबले अकेले दम पर 303 सीटें जीत लाई। अब 2018 की तरह 2023 में भी लगभग वही विपक्षी चेहरे एक बार फिर बेंगलुरु में एकत्रित हो रहे हैं ताकि 2024 के लोकसभा चुनावों में मोदी सरकार को सत्ता से हटाया जा सके। विपक्ष की यह कवायद रंग लायेगी या एक बार फिर सत्ता में मोदी की सरकार ही आयेगी यह तो चुनाव परिणामों के बाद ही पता चलेगा, लेकिन विपक्ष सत्ता में आने और सत्तापक्ष पिछली बार से ज्यादा सीटों पर चुनाव जीत कर आने के दावे करने लगा है।

अब जबकि लोकसभा चुनावों में एक साल से भी कम का समय बचा है तब भाजपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधनों ने मुख्य मुकाबले के लिए अपनी अपनी तैयारी शुरू कर भी दी है। बेंगलुरु में विपक्षी दल एकत्रित होकर भाजपा को सत्ता से हटाने की रणनीति बना रहे हैं तो दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए के घटक दल एकत्रित हो रहे हैं ताकि एक बार फिर मोदी सरकार की जीत के लिए चुनाव अभियान की रूपरेखा बनाई जा सके।

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देखा जाये तो मुख्य मुकाबले के लिए तैयारियां दोनों ओर से भरपूर की जा रही हैं। दोनों ओर से सबसे ज्यादा डोरे छोटी पार्टियों पर डाले जा रहे हैं। छोटी पार्टियों को पता है कि केंद्र की राजनीति में भाजपा या कांग्रेस के छाते के नीचे खड़े होकर ही बचा जा सकता है। इसलिए छोटी पार्टियां वंचितों और शोषितों की आवाज उठाने के नाम पर और संविधान को बचाने की दुहाई देते हुए अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार एनडीए या यूपीए के मंच पर बैठ रही हैं। वैसे विपक्ष के पास इस बार नये चेहरे के रूप में नीतिश कुमार और उद्धव ठाकरे तो हैं ही साथ ही वह अरविंद केजरीवाल को भी कांग्रेस के साथ लाने में सफल रहा है। यही नहीं, केरल में एक दूसरे की दुश्मन और बंगाल में गठबंधन सहयोगी कांग्रेस और वामदलों के साथ सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस भी विपक्षी मंच पर मौजूद है। हालांकि केसीआर, वाईएस जगनमोहन रेड्डी, चंद्रबाबू नायडू, मायावती और नवीन पटनायक जैसे बड़े चेहरे इस महामंच से बाहर हैं। इसके अलावा, हाल ही में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में विभाजन के बाद इस गठबंधन की शक्ति भले कमजोर हुई है लेकिन नेताओं का जोश देखकर लगता नहीं कि उन्हें कोई झटका लगा है। 

बहरहाल, पटना के बाद अब बेंगलुरु बैठक में भाग लेने के लिए आये सभी विपक्षी नेताओं ने मोदी सरकार के खिलाफ बिगुल बजाते हुए जिस तरह एकता की कसमें खाई हैं उसके बारे में यही कहा जा सकता है कि इसकी असली परीक्षा तब होगी जब सीटों के बंटवारे का समय आयेगा।

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