सोशल डिस्टेंसिंग बहुत जरूरी है, नहीं तो आपको ही नहीं देश को भी कीमत चुकानी पड़ेगी

Social distancing

अगर हमने अभी भी सरकार के 21 दिनों के लॉकडाउन का गंभीरता का पालन नहीं किया तो भारत को इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है, उसकी हम अभी कल्पना भी नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री की चेतावनी को हमें बेहद संजीदगी से लेना होगा।

कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक सप्ताह के अंदर दूसरी बार 24 मार्च को राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए देशभर में 21 दिनों के सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की है। केन्द्र सरकार द्वारा कोरोना मरीजों के इलाज तथा देश के हैल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को और मजबूत बनाने के लिए 15 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया गया है। प्रधानमंत्री का स्पष्ट कहना है कि आने वाले 21 दिन हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि अगर इन 21 दिनों में हम सोशल डिस्टेंसिंग को अपनाते हुए अपने घर में नहीं रहे तो न केवल देश और हमारा परिवार 21 साल पीछे चला जाएगा बल्कि अनेक परिवार हमेशा-हमेशा के लिए तबाह भी हो जाएंगे। प्रधानमंत्री ने साफ शब्दों में कहा है कि 21 दिन का लॉकडाउन हालांकि लंबा समय है लेकिन लोगों के जीवन की रक्षा के लिए, उनके परिवार की रक्षा के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके मुताबिक कोरोना को फैलने से रोकना है तो इसके संक्रमण की चेन को तोड़ना ही होगा, कोरोना से बचने का इसके अलावा और कोई तरीका, कोई रास्ता नहीं है। पिछले दिनों भी राष्ट्र के नाम अपने संदेश में प्रधानमंत्री ने देश की जनता को सचेत करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा था कि जब बड़े-बड़े विकसित देशों में भी इस महामारी का व्यापक प्रभाव दिखाई दे रहा है, ऐसे में भारत पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, यह मानना गलत है।

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प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में जिस प्रकार कोरोना के संक्रमण के फैलने की गति का उल्लेख किया, कम से कम उसके बाद तो देशवासियों को उनके संदेश की गहराई को समझते हुए उस पर दृढ़ता से अमल करना चाहिए। उन्होंने बताया कि शुरूआत में एक लाख लोगों के कोरोना संक्रमित होने में 67 दिन का समय लगा लेकिन उसके बाद महज 11 दिनों में ही अगले एक लाख लोग इससे संक्रमित हो गए। स्थिति कितनी भयावह है, यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि संक्रमितों की संख्या दो लाख से तीन लाख होने में महज 4 दिन का ही समय लगा। प्रधानमंत्री द्वारा देश की जनता को यह स्पष्ट संदेश दिया जाना इसलिए भी बेहद जरूरी था क्योंकि 22 मार्च के जनता कर्फ्यू की सफलता के बाद कई राज्यों में सरकारों की लॉकडाउन या कर्फ्यू की घोषणा की देशभर में अनेक स्थानों पर लोगों द्वारा सरेआम धज्जियां उड़ाई गई। कोरोना के खतरे की भयावहता को हवा में उड़ाते हुए बहुत सारी जगहों पर देखा गया कि किस प्रकार सड़कों पर लोगों की बाइकें, स्कूटी, कारें बेधड़क दौड़ती रहीं और बड़ी संख्या में लोग कालोनियों में आम दिनों की भांति सैर-सपाटा करते दिखते।

तमाम वैश्विक संस्थाएं बार-बार जिस प्रकार कोरोना के भयावह खतरे को लेकर सचेत कर रही हैं, ऐसे में लोगों को बेफिक्री भरी ऐसी सोच अब छोड़नी ही होगी। कोरोना के भयावह खतरे को देखते हुए प्रशासन को अब बेहद सख्त होना पड़ेगा। अगर हमने अभी भी सरकार के 21 दिनों के लॉकडाउन का गंभीरता का पालन नहीं किया तो भारत को इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है, उसकी हम अभी कल्पना भी नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री की इस चेतावनी को हमें बेहद संजीदगी से लेना होगा कि कुछ लोगों की लापरवाही, कुछ लोगों की गलत सोच, आपको, आपके बच्चों को, आपके माता-पिता को, आपके परिवार को, आपके दोस्तों को, पूरे देश को बहुत बड़ी मुश्किल में झोंक देगी। अगर हमने अभी भी इन चेतावनियों, इन संदेशों की गंभीरता को नहीं समझा तो समझ लें कि फिर इतनी देर हो जाएगी कि हमें संभलने का अवसर भी नहीं मिलेगा। इसलिए हम भले ही कितने ही स्वस्थ हों, कोरोना को परास्त करने के लिए अगले 21 दिनों के लिए घर में बैठना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। दरअसल कोरोना अब सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट में तब्दील हो चुका है, ऐसे में हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है कि हम अपना, अपने परिजनों और आसपास के लोगों का ख्याल रखें और तमाम सरकारी दिशा-निर्देशों का दृढ़ता से पालन कर एक जिम्मेदार और जागरूक नागरिक होने का परिचय दें।

कोरोना की भयावहता को देखें तो तीन महीने पहले चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ इसका कहर इन तीन महीनों के अंदर देखते ही देखते दुनियाभर के 197 देशों में से 190 से अधिक देशों तक पहुंच गया है और इससे संक्रमितों की संख्या चार लाख से भी अधिक हो चुकी है, 18 हजार के करीब लोगों की मौत हो चुकी है। भारत में भी संक्रमितों का आंकड़ा बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। खतरे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले दो सप्ताह में ही देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या करीब 12 गुना हो गई है। 10 मार्च को जहां देश में कोरोना मरीजों की संख्या 50 थी, वहीं 24 मार्च तक यह 600 के आसपास पहुंच गई। देशभर में करीब डेढ़ लाख लोग इस समय निगरानी में हैं, जिनमें से केरल में ही इनकी संख्या अस्सी हजार से ज्यादा है। वैश्विक संकट की इस घड़ी में देश के प्रत्येक नागरिक का दायित्व है कि वह कोरोना को लेकर किसी भी प्रकार की अफवाह फैलाने या संशय की स्थिति उत्पन्न करने में सहभागी न बने। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा भी है कि ऐसे समय में जाने-अनजाने कई बार अफवाहें फैलती हैं, इसलिए किसी भी तरह की अफवाह और अंधविश्वास से बचते हुए इस बीमारी के लक्षणों के दौरान डॉक्टरों की सलाह के बिना कोई भी दवा न लें।

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चिंता की स्थिति यही है कि हम कोरोना संक्रमण के तीसरे चरण के मुहाने पर खड़े हैं और अगर भारत इस चरण में प्रवेश कर गया तो देश की आबादी के घनत्व को देखते हुए उसके बाद स्थिति को भयावह होने में देर नहीं लगेगी। इसलिए प्रधानमंत्री के संदेश के बाद देश के प्रत्येक नागरिक को इस खतरे को संजीदगी से समझ लेना चाहिए कि कोरोना के आसन्न खतरे को हल्के में लेना देश के साथ-साथ हमारे अपने परिवार के लिए भी कितना खतरनाक हो सकता है। दरअसल अभी तक विज्ञान कोरोना महामारी से बचने के लिए कोई निश्चित उपाय नहीं सुझा सका है और न ही इसकी कोई वैक्सीन ही बनी है। ऐसे में कोरोना से बचने का केवल एक ही रास्ता है कि हम सरकार तथा स्वास्थ्य एजेंसियों के सभी दिशा-निर्देशों का पालन करें और सोशल डिस्टेंसिंग के जरूरी उपाय को अपनाएं। सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर प्रधानमंत्री ने बिल्कुल स्पष्ट किया है कि कुछ लोग इस गलतफहमी में हैं कि यह केवल बीमार लोगों के लिए ही जरूरी है लेकिन लोगों की यह सोच सही नहीं है। सोशल डिस्टेंसिंग प्रत्येक नागरिक, प्रत्येक परिवार और परिवार के हर सदस्य के लिए है। कोरोना के कहर से त्रस्त सभी देशों के दो महीनों के अध्ययनों के निष्कर्षों तथा तमाम विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना से प्रभावी मुकाबले के लिए यही एकमात्र विकल्प है। बहरहाल, अब कोरोना को लेकर बेपरवाह रहने और इसके आसन्न खतरे को नजरअंदाज करने की नहीं बल्कि जरूरत है प्रत्येक देशवासी को कोरोना के भारत पर मंडराते बड़े खतरे को लेकर सजग और सतर्क रहने की।

-योगश कुमार गोयल

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं तथा कोरोना को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए तीन माह से इस विषय पर निरन्तर लिख रहे हैं।)

 

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