विदेशी आक्रांताओं के शुभचिंतकों को 'सनातन भूमि' में रहने का हक नहीं, समझे सरकार! करे कार्रवाई!

कहना न होगा कि जब हम इंडिया कहते हैं तो उसका अभिप्राय अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तिब्बत, वर्मा, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव समेत भारत के उस विशाल भूभाग से लिया जाता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के रूप में सुप्रसिद्ध हिन्दू भूमि है।
सनातन भूमि भारतवर्ष, जिसे जम्बूद्वीप, आर्यावर्त, आसेतु हिमालय आदि विभिन्न नामों से पुकारा गया है, में मुस्लिम आक्रमणकारियों और ब्रिटिश आतताई अधिकारियों के महिमामंडन का जो सियासी होड़ जब-तब मची रहती है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। सवाल है कि इनसे जुड़े विभिन्न प्रतीक चिन्हों-स्मारकों आदि, इनके नाम पर बसाए गए गांवों-शहरों, नामांकित सड़कों या विभिन्न संस्थानों को मिटा क्यों नहीं दिया जाता, क्योंकि ये सनातन भूमि पर रिसते घाव की मानिन्द हैं।
यक्ष प्रश्न यह भी है कि आज इनकी जरूरत क्या है, किनको है और क्यों है? और यदि है तो फिर ऐसे देशद्रोहियों की यहां जरूरत है? यदि बाबर, अकबर, औरंगजेब जैसे क्रूर मुस्लिम शासकों या जनरल डायर जैसे क्रूर ब्रिटिश अधिकारियों या फिर ओसामा बिन लादेन, कसाब जैसे क्रूर आतंकवादियों का, पाकिस्तान-बंगलादेश जैसे फिरकापरस्त ताकतों के शुभचिंतक यहां हैं तो भारतीय प्रशासन का यह पहला कर्तव्य है कि राष्ट्रहित में इनकी शिनाख्त करे और इन्हें राष्ट्रीय सीमा से बाहर करे।
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यह अहम बात है कि जब तक ये बाहर नहीं हो जाते, तबतक इनको मताधिकार और राष्ट्रीय जनसुविधाओं से वंचित किया जाए। इनके भारतीय पहचान पत्र निरस्त किये जाएं। क्योंकि सुलगता सवाल है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में जब कोई नेता या बुद्धिजीवी सिर्फ मजहबी कारणों से जुल्मियों का महिमामंडन करने का दुस्साहस करे, तो इनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करना भारतीय प्रशासन का पहला कर्तव्य होना चाहिए। क्योंकि इस पवित्र हिन्दू भूमि पर ऐसा करते रहने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती है! ऐसे देशद्रोही, सनातन द्रोही तत्वों के खिलाफ भारतीय नेताओं और प्रशासन को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। इस दिशा में कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, अन्यथा इनके हौसले बढ़ेंगे।
कहना न होगा कि जब हम इंडिया कहते हैं तो उसका अभिप्राय अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तिब्बत, वर्मा, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव समेत भारत के उस विशाल भूभाग से लिया जाता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के रूप में सुप्रसिद्ध हिन्दू भूमि है। यदि आप महाभारत को पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि यह पूरी दुनिया ही सनातनी थी, देवत्व मिजाजी थी और जो दानव या असुर मिजाजी थे, वो हिंदुओं से अलग होते गए। फिर भी आर्यावर्त में हिंदुत्व का दबदबा हमेशा बना रहा। इसलिए चाहे मुस्लिम आक्रमणकारियों का जत्था रहा हो या ब्रिटिशर्स ईसाइयों की फौज और उससे जुड़े लोग, जो यहां पर विदेशी आक्रमणकारी बनकर आए, यहां के शांतिप्रिय लोगों पर जुल्म ढाए और फिर यहीं रच-बस गए हैं। इन्होंने हथियार के बल पर धर्मांतरण कराया और सनातन मंदिरों उनके संरक्षक रजवाड़ों को नष्ट किया।
चूंकि ये सभी बाहरी आक्रांता हैं, मंगोल या अरब से आये हैं, इसलिए इनकी असली जगह इनके मूल देशों में है, न कि सनातन भूमि में! क्योंकि इनकी सहानुभूति भारत से नहीं, बल्कि उन्हीं मुल्कों से है। हिंदुओं के नाम पर देश विभाजन करके फिर से भारत में फिरकापरस्त सियासत को बढ़ावा देना, वैसे ही संविधान का निर्माण करवाना कांग्रेस की ऐसी गलती रही है, जिसकी सजा उसे हिन्दू समाज देता आया है। क्योंकि आजादी के बाद मुसलमानों और ईसाइयों को देश से बाहर करवाना, उनसे जुड़ी स्मृतियों को समाप्त करना और भारतीय शासकों, ऋषियों-मुनियों और देवताओं की स्मृतियां कायम करवाना उसका दायित्व था, लेकिन उसने धर्मनिरपेक्षता और गंगा-यमुना संस्कृति के नाम पर हिन्दू समाज को धोखा दिया।
ऐसा इसलिए कि सनातन भूमि, देव भूमि समझी जाती है। यही ऋषियों-मुनियों की तपोभूमि है। यह अहिंसक भूमि है। जबकि मुस्लिमों-ईसाइयों का स्वभाव ही हिंसक है। ये लोग मांसभक्षी हैं और क्रूर भी होते हैं। इनके राजकाज वश, इनके संसर्ग में रहने वाले हिन्दू भी वैसे ही हो गए, जैसे ये हैं। इन्होंने फुट डालो और शासन करो की नीतियों से हिंदुओं में सामाजिक व जातीय दुर्भावना को जन्म दिया है।आधुनिक संवैधानिक व्यवस्था भले ही ऐसे तत्वों को धर्मनिरपेक्ष कहती है। लेकिन सदियों से इनका जो स्वभाव रहा है, लड़ाई-झगड़े, दंगा-फसाद की जो नियति रही है, उसके दृष्टिगत तो यही कहना उचित रहेगा कि इन्हें या तो खुद को बदलने का अवसर दिया जाए या फिर भारतीय उपमहाद्वीप से निकाल बाहर किया जाए।
बदलते वक्त की मांग है कि सनातन भूमि की नैसर्गिक जरूरतों के मद्देनजर भारतीय संविधान का पुनर्निर्माण हो। इससे पहले कोई इतना मजबूत शासक बने, जो अखण्ड भारत का निर्माण करे। साथ ही आसेतु हिमालय में रच-बस चुके सनातन द्रोहियों को हृदय परिवर्तन, स्वभाव और संस्कार परिवर्तन यानी धर्मपरिवर्तन कर हिंदुओं में शामिल होने का अवसर दे, अन्यथा जिद्दी बनकर अपने धर्म पर अडिग रहने वालों को उसी प्रकार से आसेतु हिमालय यानी भारतीय उपमहाद्वीप से निकाल बाहर करे जैसे कि अमेरिका अपने यहां के अवैध प्रवासियों को कर रहा है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि मुस्लिम और ईसाई आदि रह तो रहे हैं भारतीय उपमहाद्वीप में, लेकिन यशोगान करते फिरते हैं अरब और ईसाई देशों का। भारतवर्ष पर शासन करने वाले क्रूर शासकों या अधिकारियों का। खासकर सियासत में तो इनका यशोगान करने वालों पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। आज देश में जिस क्रूर बादशाह औरंगजेब, जो अपने पिता और भाइयों का नहीं हुआ, को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तेज हो चुके हैं।
ऐसे में औरंगजेब के उस आखिरी खत की चर्चा यहां मुनासिब है, जो खोल देगा उसका महिमामंडन करने वालों का दिमाग। क्योंकि औरंगजेब के उस आखिरी खत का जिक्र इतिहास की किताबों में हुआ है। इसमें औरंगजेब अपने पापों की कहानी खुद कहता है। विवादास्पद मुगल शासक ने अपनी मृत्यु से पहले के पछतावे में अपने किये गुनाहों का जिक्र किया है। प्रख्यात इतिहासकार राम कुमार वर्मा की लिखी किताब 'औरंगजेब की आखिरी रात' में उस खत का मजमून दिया गया है। उसे आपको पढ़ना इसलिए जरूरी है ताकि मुंबई के समाजवादी पार्टी विधायक अबू आजमी ने औरंगज़ेब का जो महिमामंडन किया है और उस पर विवाद बढ़ा है, उसकी असली हकीकत आप भी जान लें।
इतिहास के पन्नों में देखेंगे तो पाएंगे कि विवादास्पद मुगल शासकों में सबसे बड़ा नाम औरंगजेब का है। जिसने ने गैर-मुसलमानों पर जजिया कर जैसी भेदभावपूर्ण नीतियां लागू कीं। उसने सिखों के गुरु तेग बहादुर का सिर कलम करवा दिया था। उसने गुरु गोविंद सिंह के बेटों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया। उसने छत्रपति शिवाजी के पुत्र संभाजी महाराज की आंखें फोड़ दीं और नाखून उखाड़ लिए। इसके शासन काल में भारत में शरियत के आधार पर फतवा-ए-आलमगीरी लागू किया और बड़ी संख्या में हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। उसने काशी विश्वनाथ और सोमनाथ मंदिरों को नष्ट करवाया और लाखों हिंदुओं की हत्या करवाई। इसकी क्रूरता के कारण करीब-करीब पूरे भारतीय उपमहादीप में मुगल साम्राज्य अपना सबसे ज्यादा विस्तार कर पाया। औरंगजेब की मृत्यु 1707 ईस्वी में हुई थी।
कहा जाता है कि मौत से पहले इसको अपने किये गुनाहों पर पछतावा था। औरंगजेब ने अपने बेटों, आजम शाह और काम बख्श को अपने खेद व्यक्त करने के लिए पत्र लिखे थे। इन पत्रों में उसने अपने पापों और असफलताओं के बारे में जिक्र किया था। औरंगजेब ने अपने आखिरी पत्र में जो लिखा था, वह उसके पछतावे की कहानी है। औरंगजेब ने मरने से पहले अपने बेटों को लिखी एक चिट्ठी में अपने पापों का जिक्र किया था। इस चिट्ठी में उन्होंने लिखा था कि उन्होंने लोगों का भला नहीं किया और उनका जीवन निरर्थक बीत गया। उन्होंने यह भी लिखा था कि उन्हें अपने पापों का परिणाम भुगतना होगा।
प्रख्यात इतिहासकार राम कुमार वर्मा की लिखी किताब ‘औरंगजेब की आखिरी रात’ में औरंगजेब के खत के मजमून का कुछ यूं जिक्र किया गया है-. "अब मैं बूढ़ा और दुर्बल हो गया हूं। मैं नहीं जानता मैं कौन हूं और इस संसार में क्यों आया? मैंने लोगों का भला नहीं किया, मेरा जीवन ऐसे ही निरर्थक बीत गया! भविष्य को लेकर मुझे कोई उम्मीद नहीं है, मेरा बुखार अब उतर गया है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि शरीर पर केवल चमड़ी बची हो। दुनिया में कुछ लेकर नहीं आया था, लेकिन अब पापों का भारी बोझ लेकर जा रहा हूं! मैं नहीं जानता कि अल्लाह मुझे क्या सजा देगा, मैंने लोगों को जितने भी दुख दिए हैं, वो हर पाप जो मुझसे हुआ है उसका परिणाम मुझे भुगतना होगा। बुराईयों में डूबा हुआ गुनाहगार हूं मैं।”
गौरतलब है कि औरंगजेब के पिता शाहजहां थे। औरंगजेब ने अपने पिता पर भी काफी जुल्म किये थे। औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को आगरा के किले में कैद करके रखा और उन्हें पानी के लिए तरसाया था। शाहजहां ने अपनी आत्मकथा ‘शाहजहांनामा’ में औरंगजेब के लिए बहुत कठोर शब्दों का प्रयोग किया था। शाहजहां ने लिखा कि खुदा करे कि ऐसी औलाद किसी के यहां पैदा ना हो। शाहजहां ने औरंगजेब को उन हिंदुओं से सीख लेने की बात कही, जो अपने माता-पिता की सेवा ताउम्र करते हैं और उनकी मृत्यु के बाद जल से तर्पण करते हैं। उन्होंने लिखा है कि औरंगजेब से अच्छे तो हिंदू हैं, जो अपने माता-पिता की सेवा करते हैं और उनकी मृत्यु के बाद तर्पण करते हैं।
यही वजह है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, असम के मुख्यमंत्री हिमंता विश्वशर्मा आदि ने औरंगजेब की महानता का गुणगान करने वाले सपा नेता अबू आजमी और उनके पक्षधरों की बखिया उधेड़ दी है। योगी आदित्यनाथ ने तो दो टूक कहा है कि जो औरंगजेब को आदर्श मानते हैं...उस कम्बख्त को निकालो पार्टी से। फिर अबू आजमी.. ऐसे नेता को यूपी भेजो, इलाज कर देंगे, हम देर नहीं करते।
उल्लेखनीय है कि औरंगज़ेब अपने साम्राज्य को अपने पुत्रों में विभाजित कर देना चाहता था। वह उत्तराधिकार खत्म करना चाहता था, लेकिन उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। उनके बेटों के बीच भी सिंहासन के लिए यद्ध हुआ। उसके तीन बेटे मुहम्मद मुअज्जल, मुहम्मद आजम और कामबख़्श के मध्य उत्तराधिकार का युद्ध हुआ। युद्ध में उनका बड़ा पुत्र शाहजादा मुअज्जल जीता और उसने अपने भाई मुहम्मद आजम को 18 जून 1707 ईस्वी को जजाऊ में और कामबख़्श को हैदराबाद में जनवरी 1709 ईस्वी में मार डाला।
बता दें कि औरंगजेब के शासनकाल में मुगल साम्राज्य का विस्तार करीब-करीब पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में था। औरंगजेब की मृत्यु 1707 ईस्वी में हुई थी। महाराष्ट्र के औरंगाबाद के निकट खुल्दाबाद नामक छोटे से गांव में जो औरंगजेब आलमगीर का मकबरा बनाया गया, उसमें उसे सीधे सादे तरीके से दफन किया गया। उसकी क़ब्र कच्ची मिटटी की बनाई गई, जिस पर आसमान के सिवाय कोई दूसरी छत नहीं रखी गई। कब्र के मुजाविर उसकी कब्र पर जब तब हरी दूब लगा देते हैं। इसी कच्चे मजार में पड़ा हुआ भारत का यह सम्राट प्रायश्चित की आग में जलते हुए आज भी परमात्मा से रूबरू होने के इंतजार में है। सवाल यह भी है कि औरंगजेब जब दिल्ली पर राज करता था तो उसकी कब्र औरंगाबाद, महाराष्ट्र में क्यों? क्या उसे दिल्ली में दो गज जमीन भी उसके वारिसों ने नहीं दी?
चूंकि देश की राजनीति में इन दिनों फिर से क्रूर मुगल शासक औरंगजेब चर्चा में है और समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी ने जब इसके महिमामंडन की कोशिश की, तो उसको लेकर विवाद बढ़ गया है। एक तरफ देशभक्त भाजपा के नेतागण हैं तो दूसरी तरफ देशद्रोही धर्मनिरपेक्ष नेता हैं, जो हिंदुस्तान के आक्रांताओं का महिमामंडन सिर्फ मजहबी आधार पर कर रहे हैं। इसमें कांग्रेस, सपा, राजद, जदयू, एआईएमआईएम, नेशनल कॉन्फ्रेंस, आप आदि सियासी दलों के नेता भी मुस्लिम परस्त सियासत के नजरिए से उल्टी सीधी बयानबाजी कर रहे हैं। यह राष्ट्रहित में नहीं है। क्या धर्मनिरपेक्षता इस बात की इजाजत देती है कि देश के दुश्मनों की तारीफ की जाए। यदि हां तो समझिए कि भारतीय प्रशासन अपनी लोकतांत्रिक चिता खुद सजा रहा है।
वहीं, हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने भारत सरकार से मुगल शासक औरंगजेब को आधिकारिक रूप से 'बर्बर शासक' घोषित करने की मांग की है। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखकर औरंगजेब के नाम पर बनी सभी सड़कों और स्थानों के नाम बदलने और उनकी कब्र को खोदकर अवशेषों को अरब सागर में बहाने की अपील की है। विष्णु गुप्ता ने पत्र में लिखा, 'औरंगजेब ने अपने शासनकाल में हिंदुओं और अन्य धर्मों के लोगों पर अत्याचार किए। उन्होंने अपने सगे भाइयों की हत्या कर गद्दी हथियाई, पिता शाहजहां को कैद में डाला। अपनी बेटियों की शादी तक नहीं होने दी। औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर, गोकुला जाट और छत्रपति संभाजी महाराज की नृशंस हत्या करवाई। इसके अलावा उसने कई हिंदू मंदिरों और मठों को तोड़ा और गैर-मुस्लिमों पर जजिया कर लगाया।'
गृहमंत्री को लिखी चिट्ठी में हिंदू सेना चीफ ने कहा कि औरंगजेब की असहिष्णुता और कट्टरता से करोड़ों लोगों को कष्ट झेलना पड़ा। भारत एक शांति और बहुसंस्कृति वाला देश है, जहां ऐसे व्यक्ति का गौरवगान नहीं होना चाहिए। उन्होंने अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह ओसामा बिन लादेन के अवशेषों को समुद्र में बहा दिया गया, उसी तरह औरंगजेब की कब्र को हटाकर वहां गरीबों के लिए स्कूल या अस्पताल बनाया जाए।
हिंदू सेना की मांगें हैं कि पहला, औरंगजेब को बर्बर शासक घोषित कर उसकी प्रशंसा को दंडनीय अपराध बनाया जाए। दूसरा, औरंगजेब के नाम पर बनी सभी सड़कों और स्थानों के नाम बदले जाएं। तीसरा, औरंगजेब की कब्र को खोदकर अवशेषों को नष्ट किया जाए और उस स्थान पर गरीबों के लिए स्कूल या अस्पताल बनाया जाए। उल्लेखनीय है कि औरंगजेब (1658-1707) ने लगभग 50 साल तक भारत पर शासन किया। अपने शासनकाल में उसने धार्मिक भेदभाव और कट्टरता को बढ़ावा दिया। कई इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब ने सत्ता पाने के लिए अपने परिवार तक को नहीं बख्शा। उसके फरमानों के कारण अनेकों मंदिर ध्वस्त किए गए, कई राज्यों के राजाओं को बंधक बनाया गया और आम जनता पर धार्मिक कर लगाए गए। हिंदू सेना ने सरकार से इस मांग पर जल्द कार्रवाई करने की अपील की है।
सवाल है कि सिर्फ औरंगजेब ही क्यों, मुहम्मद बिन कासिम से लेकर देश के सभी मुस्लिम आक्रांताओं, ईसाई आक्रांताओं और अंग्रेजी अधिकारियों से जुड़ी स्मृतियों को विलोपित यानी नष्ट किया जाए। उनसे सम्बन्धित हतोत्साहित करने वाले साहित्यिक दस्तावेजों और इतिहास के ग्रंथों पर प्रतिबंध लगाया जाए। उनके वंशजों को बाहरी घोषित करके उन्हें देश से निकाला जाए या फिर सनातनी मर्यादा में जीवन यापन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाए। इसमें आड़े आ रहे कानूनों को बदला जाए और भारतीय परंपरा के विपरीत आये न्यायदेशों की समीक्षा करवायी जाए। सनातन भूमि से क्रूरता मिटाई जाए और इसे पुनः विश्व गुरु बनाया जाए। जो शासक इन उद्देश्यों की पूर्ति करने में विफल हो, उसे भी बदला जाए। इसे जनमुहिम बनाया जाए। इसी में जम्बूद्वीप का हित निहित है।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
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