यूके-भारत विश्वविद्यालय सहयोग के तहत नया शोध कार्यक्रम शुरू

UK India university collaboration
ISW

ब्रुनेल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एंड्रयू जोन्स की भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) परिसर की यात्रा के दौरान इस कार्यक्रम की घोषणा की गई है। इस कार्यक्रम को दीर्घकालिक शोध और शैक्षिक उद्देश्य को बल प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण बताया जा रहा है।

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु और ब्रुनेल यूनिवर्सिटी, लंदन, ने दहन, उत्पादन, डिजाइन और ऊर्जा सहित विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं के लिए ब्रुनेल-आईआईएससी अंतरराष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रम शुरू किया है।

यह कार्यक्रम एक करोड़ रुपये के आरंभिक अनुदान से शुरू किया गया है। इसके अंतर्गत, जुलाई 2023 के अंत तक चलने वाली विभिन्न लघु एवं संयुक्त 'सीड' अनुसंधान परियोजनाओं का समर्थन इस उम्मीद के साथ किया जा रहा है कि आगे चलकर वो बाहरी रूप से वित्त पोषित अनुसंधान परियोजना के रूप में आकार ले सकती हैं।  

ब्रुनेल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एंड्रयू जोन्स की भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) परिसर की यात्रा के दौरान इस कार्यक्रम की घोषणा की गई है। इस कार्यक्रम को दीर्घकालिक शोध और शैक्षिक उद्देश्य को बल प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। 

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ब्रुनेल-आईआईएससी अंतरराष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रम लॉन्च को चिह्नित करने के लिए दोनों संस्थानों के बीच एक हस्ताक्षरित प्रमाण पत्र का आदान-प्रदान किया गया है। प्रोफेसर जोन्स के दौरे में उनके साथ ब्रुनेल विश्वविद्यालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे।

प्रोफेसर जोन्स ने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में, दोनों संस्थानों के शोधकर्ता दहन, उत्पादन, डिजाइन और ऊर्जा में संयुक्त अनुसंधान क्षमताओं की समझ विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं। दोनों संस्थानों के लिए ये सभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट शोध के प्रमुख क्षेत्र हैं। नया सहयोग कार्यक्रम हमारे शोधकर्ताओं को एक साथ मिलकर काम करने और प्रभावशाली शोध का अवसर प्रदान करेगा, जो यूके एवं भारत दोनों को लाभान्वित करेगा, और दोनों देशों के बीच संबंधों को बेहतर करेगा।"

आईआईएससी के निदेशक प्रोफेसर गोविंदन रंगराजन ने कहा है कि "पिछले कुछ वर्षों में ब्रुनेल के साथ विभिन्न संयुक्त कार्यशालाओं, वेबिनार और शोध परियोजनाओं तथा परस्पर आदान-प्रदान पर आधारित हमारा सहयोग रहा है। यह नया कार्यक्रम हमारे संबंधों को पहले से अधिक मजबूत करेगा। हम इस सहयोग के अन्य अंतःविषयक क्षेत्रों में विस्तार की उम्मीद करते हैं, जहाँ वैश्विक समस्याओं को हल करने के लिए एक साथ काम किया जा सके।"

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