क्या उत्तर प्रदेश में धर्म के सहारे ही चुनावी नैय्या लगेगी किनारे, एक दूसरे पर हमलावर हुए नेता

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अंकित सिंह । Dec 18 2021 4:16PM

कुल मिलाकर देखें तो वर्तमान में उत्तर प्रदेश की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है। अखिलेश यादव जहां छोटे दलों के साथ-साथ अपने चाचा के साथ गठबंधन कर रहे हैं। तो वहीं मायावती भी शांत होकर अपने वोटर्स के पास पहुंचने की कोशिश कर रही हैं।

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने है। विधानसभा चुनाव में लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपने-अपने स्तर पर अब समीकरणों को साधने की शुरुआत कर दी है। भाजपा अपने मुख्य एजेंडे हिंदुत्व को लेकर आगे बढ़ने की कोशिश में है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में हमने देखा कि किस तरीके से भव्य काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से इसका उद्घाटन किया गया और तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों को इसमें निमंत्रित भी किया गया। भाजपा जहां लगातार हिंदुत्व को लेकर आगे बढ़ती हुए दिखाई दे रही है। वहीं विपक्ष अब हिंदू, हिंदुत्व और हिंदुत्ववादी के जरिए सरकार पर निशाना साधा रहा है। हमने प्रभासाक्षी के सप्ताहिक कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इसी बात पर चर्चा की। हमारे संपादक नीरज कुमार दुबे भी इस कार्यक्रम में हमेशा की तरह शामिल रहे।

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हमने इसी को लेकर जब नीरज दुबे से सवाल किया तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि विपक्ष वही मुद्दा उठाता है जो भाजपा को सूट करता है। यही कारण है कि विपक्ष की राजनीति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के सामने फीके पड़ जाती है। नीरज दुबे ने कहा कि उत्तर प्रदेश की राजनीति अलग है। हिंदुत्व का मुद्दा ज्यादा प्रमुखता से भाजपा हमेशा उठाती रही है और शायद यही कारण है कि भाजपा भव्य काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के बाद यह संदेश देने की कोशिश कर रही है। भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश बड़ी चुनौती है। यहां वह सरकार बनाने के लिए पूरी मजबूती के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। इसका संकेत भाजपा ने काशी से दे दिया। 

इसी के साथ अपने नीरज दुबे से यह भी पूछा कि आखिर 12 राज्यों के मुख्यमंत्रियों से काशी से लेकर अयोध्या तक की परेड क्यों करवाई गई? इसके जवाब में उन्होंने साफ तौर पर कहा कि भाजपा चाहती है  कि उसका जो एजेंडा है वह जीवंत रहे। किसी न किसी राज्य में समय-समय पर चुनाव होते रहते हैं। ऐसे में वहां भाजपा के लिए हिंदुत्व कोई नया मुद्दा नहीं रहेगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री काशी और अयोध्या में विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हैं। इन मुख्यमंत्रियों की तस्वीर उन राज्यों में छपी होगी जहां से वे आते हैं। ऐसे में भाजपा के हिंदुत्व का एजेंडा काफी आसानी से और अच्छे तरीके से आम लोगों तक देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंच सकता है। 

कुल मिलाकर देखें तो वर्तमान में उत्तर प्रदेश की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है। अखिलेश यादव जहां छोटे दलों के साथ-साथ अपने चाचा के साथ गठबंधन कर रहे हैं। तो वहीं मायावती भी शांत होकर अपने वोटर्स के पास पहुंचने की कोशिश कर रही हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी बहन तथा उत्तर प्रदेश की महासचिव प्रियंका गांधी भी गांधी परिवार के गढ़ रायबरेली और अमेठी पहुंचे। जिस तरह से रेड अलर्ट से लेकर हनुमान जी तक की राजनीति उत्तर प्रदेश में हो रही है, वह कहीं ना कहीं यह दिखाने के लिए काफी है कि आने वाले दिनों में राजनेताओं के बयानों में और भी तल्ख़ियां दिखाई दे सकती हैं।

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हमने नीरज दुबे से विपक्षी एकता पर भी सवाल किया। हमने पूछा कि एक और शरद पवार ममता बनर्जी मुलाकात करते हैं और नए मोर्चे का एक गठबंधन बनाने के संकेत देते हैं। तो वहीं दूसरी ओर वही शरद पवार दिल्ली में सोनिया गांधी से भी मुलाकात करते हैं। इस पर नीरज दुबे ने कहा कि विपक्ष इस पर बंटा हुआ है। कई विपक्षी दलों का मानना है कि कांग्रेस के बगैर विपक्ष मजबूत नहीं हो सकता है। यही कारण है कि सोनिया गांधी के साथ विपक्षी दलों के कई बड़े नेताओं ने बैठक की है। दूसरी ओर ममता बनर्जी को यह लगता है कि भाजपा का एकमात्र विकल्प वही बन सकती हैं। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी गठबंधन का नेतृत्व कर सकती हैं। नीरज दुबे ने यहां पर कहा कि कहीं ना कहीं ममता बनर्जी को यह भी लगता है कि अगर वह छोटी पार्टियों को भरोसे में लेकर आगे बढ़ती हैं तो दिल्ली उनके लिए दूर नहीं है।

- अंकित सिंह

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