आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए बड़ी संख्या में फैलाई जा रही भ्रामक जानकारी, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव हो सकते हैं प्रभावित

आर्थिक भाषा में कहें तो गलत सूचना की समस्या मांग है, आपूर्ति नहीं। उदाहरण के लिए 2020 का चुनाव पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प से चुराया गया था। आसान भाषा में समझें कि गलत सूचना उस समय की मांग थी।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में एक साल से थोड़ा अधिक समय शेष रह गया है। इस दौरान उम्मीदवारों के संबंध में एआई द्वारा कई तरह की गलत जानकारियां मतदाताओं को दी जा रही है। इसी बीच सामने आया है कि कई रिसर्च प्रोग्रामों को बंद किया जा रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य गलत सूचनाओं का अध्ययन करना और उनका मुकाबला करना था। इन सभी के बीच ये साफ हो गया है कि एआई द्वारा जारी की गई सूचना 2024 के चुनाव अभियान में बड़ी समस्या नहीं होगी।
आर्थिक भाषा में कहें तो गलत सूचना की समस्या मांग है, आपूर्ति नहीं। उदाहरण के लिए 2020 का चुनाव पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प से चुराया गया था। आसान भाषा में समझें कि गलत सूचना उस समय की मांग थी। ये एआई आपूर्ति के अुरूप हुई। इस समय मुद्दा भी गंभीर था, और गलत सूचनाएं भी जारी हुई, जिससे कई बदलाव देखने को मिले। किसी को भी राज्य के अधिकारियों द्वारा मतपत्र तैयार करने के एआई-जनित नकली वीडियो की आवश्यकता नहीं थी।
यहां तक कि फोटो हेरफेर जैसी तकनीक के बाद भी फर्जी खबरें नहीं चल रही थीं। अमेरिकी चुनाव के दौरान महत्वपूर्ण यह था कि कई ट्रम्प समर्थक यह विश्वास करना चाहते थे कि उनके उम्मीदवार के साथ अन्याय हुआ है। ऐसे में ट्रम्प ने उत्पीड़न की कहानी पेश की। हालांकि ये कहना गलत नहीं होगा कि गलत सूचना कई मामलों में मौलिक तौर पर कम तकनीक वाला उत्पाद है।
ये भी सामने आया है कि पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा का जन्म अमेरिका में नहीं हुआ था। इसके साथ ही इंडोनिशिया में जन्म होने की सूचना वाला एक नकली बर्थ सर्टिफिकेट भी वायरल हुआ था।
इस सर्टिफिकेट के जरिए कई लोगों ने विश्वास किया था कि बराक ओबामा असल में अमेरिकन नहीं थे। झूठ, गलतफहमी को लंबे अर्से से बांटा जा रहा है। चीन, रूस, सोशल मीडिया, मीडिया को भी इस संदर्भ में दोष दिया जा सकता है। विभिन्न प्लेटफॉर्म पर ऐसी जानकारी पढ़ने के बाद जनता काफी भ्रमित हो जाती है। गौरतलब है कि एआई की मदद से स्थिति खराब होने की उम्मीद नहीं होती है। कई मामलो में जानकारी को भ्रामक के तौर पर फैलाया गया मगर असल में वो गलत सूचना नहीं थी, जैसा की कोरोना के समय में हुआ था।
वहीं एआई द्वारा जारी तथ्यों की जांच के लिए आर्थिक तौर पर टिकाउ चीजें उपलब्ध नहीं है। आमतौर पर तकनीक के उपयोग को माना जाता है कि ये लोगों को अधिक शिक्षित करने में मददगार हो सकती है मगर शिक्षित लोग ही षडयंत्रों के सिद्धांत को स्पष्ट करते है। वहीं अशिक्षित लोग ऐसे विचारों से भ्रमित होते है।
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