गुजरात के कच्छ में करें इतिहास और आधुनिकता के दर्शन एक साथ

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प्रीटी । May 16 2020 2:33PM

कच्छ को प्राचीन सिन्धु संस्कृति का हिस्सा माना जाता है। माना जाता है कि सन् 1270 में कच्छ एक स्वतंत्र देश था लेकिन 1815 में यह ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गया क्योंकि रजवाड़े के रूप में कच्छ के तत्कालीन महाराजा ने ब्रिटिश सत्ता स्वीकार कर ली थी।

गुजरात घूमने आये हैं और कच्छ का दौरा नहीं किया तो समझिये कि आपकी गुजरात यात्रा अधूरी रह गयी। एक समय भूकंप के चलते बर्बाद हो चुका कच्छ अपने पैरों पर खड़ा है और बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहाँ राज्य पर्यटन विभाग की ओर से हर वर्ष कच्छ महोत्सव आयोजित किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में लोग उमड़ते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते कच्छ महोत्सव की शुरुआत की थी जिससे इस इलाके में पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों को काफी लाभ हुआ और क्षेत्र का विकास भी हुआ। गुजरात के सबसे बड़े जिले कच्छ का जिला मुख्यालय भुज है। कच्छ का अधिकांश हिस्सा रेतीला है। जखाऊ, कांडला और मुन्द्रा यहां के मुख्‍य बंदरगाह हैं। कच्छ जिले में अनेक ऐतिहासिक इमारतें, मंदिर, मस्जिद और हिल स्टेशन आदि पर्यटन स्थलों को देखा जा सकता है।

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कच्छ को प्राचीन सिन्धु संस्कृति का हिस्सा माना जाता है। माना जाता है कि सन् 1270 में कच्छ एक स्वतंत्र देश था लेकिन 1815 में यह ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गया क्योंकि रजवाड़े के रूप में कच्छ के तत्कालीन महाराजा ने ब्रिटिश सत्ता स्वीकार कर ली थी। सन् 1947 में जब देश आजाद हुआ तो तत्कालीन 'महागुजरात' राज्य का एक जिला बना कच्छ। कच्छ की यात्रा देखिये कैसे आगे बढ़ती है। महागुजरात से अलग होकर सन् 1950 में कच्छ भारत का एक राज्य बना। 1 नवम्बर सन् 1956 को यह मुंबई राज्य के अंतर्गत आया। सन् 1960 में भाषा के आधार पर मुंबई राज्य का महाराष्ट्र और गुजरात में विभाजन हो गया तथा कच्छ गुजरात का एक हिस्सा बन गया।

कच्छ में देखने लायक कई स्थान है जिसमें कच्छ का सफ़ेद रण आजकल पर्यटकों को लुभा रहा है। इसके अलावा मांडवी समुद्रतट भी सुंदर आकर्षण है। भुज में कच्छ के महाराजा का आइना महल, प्राग महल, शरद बाग़ पैलेस एवं हमीरसर तलाव मुख्य आकर्षण है तथा मांडवी में स्थित विजय विलास पैलेस जो समुद्रतट पर स्थित है वह भी देखने लायक है। भद्रेश्वर जैन तीर्थ और कोटेश्वर में महादेव का मंदिर और नारायण सरोवर जो पवित्र सरोवरों में से एक है, वो भी घूमने लायक है।

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धौलावीरा

जिला मुख्यालय भुज से करीब 250 किलोमीटर दूर स्थित धौलावीरा यह बात साबित करता है कि एक जमाने में हड़प्पा संस्कृति यहां फली-फूली थी। यह संस्कृति 2900 ईसा पूर्व से 2500 ईसा पूर्व की मानी जाती है। सिंधु घाटी सभ्यता के अनेक अवशेषों को यहां देखा जा सकता है। वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग इसकी देखरेख करता है।

कच्छ मांडवी बीच

भुज से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित यह बीच गुजरात के सबसे आकर्षक बीचों में एक माना जाता है। दूर-दूर फैले नीले पानी को देखना और यहां की रेत पर टलहना पर्यटकों को खूब भाता है। साथ की अनेक प्रकार के जलपक्षियों को भी यहां देखा जा सकता है। सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा यहां से बड़ा आकर्षक प्रतीत होता हैं।

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कंठकोट किला

एक अलग-थलग पहाड़ी के शिखर पर बने इस किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था। अलग-अलग समय में इस पर सोलंकी, चावडा और वघेल वशों का नियंत्रण रहा। 1816 में अंग्रेजों ने इस पर अधिकार कर लिया और इसका अधिकांश हिस्सा नष्ट कर दिया। किले के निकट ही कंथडनाथ मंदिर, जैन मंदिर और सूर्य मंदिर को भी देखा जा सकता है।

नारायण सरोवर मंदिर

भगवान श्रीविष्णु के सरोवर के नाम से चर्चित इस स्थान में वास्तव में पांच पवित्र झीलें हैं। नारायण सरोवर को हिन्दुओं के अति प्राचीन और पवित्र तीर्थस्थलों में शुमार किया जाता है। साथ ही इन तालाबों को भारत के सबसे पवित्र तालाबों में गिना जाता है। श्री त्रिकमरायजी, लक्ष्मीनारायण, गोवर्धननाथजी, द्वारकानाथ, आदिनारायण, रणछोडरायजी और लक्ष्मीजी के आकर्षक मंदिरों को यहां देखा जा सकता है। इन मंदिरों को महाराज श्री देशलजी की रानी ने बनवाया था।

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भद्रेश्वर जैन मंदिर

भद्रावती में स्थित यह प्राचीन जैन मंदिर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अति पवित्र माना जाता है। भद्रावती में 449 ईसा पूर्व राजा सिद्धसेन का शासन था। बाद में यहां सोलंकियों का अधिकार हो गया जो जैन मतावलंबी थे। उन्होंने इस स्थान का नाम बदलकर भद्रेश्वर रख दिया।

कांडला बंदरगाह

यह राष्ट्रीय बंदरगाह देश के 11 सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाहों में एक है। यह बंदरगाह कांडला नदी पर बना है। इस बंदरगाह को महाराज श्री खेनगरजी तृतीय और ब्रिटिश सरकार के सहयोग से 19वीं शताब्दी में विकसित किया गया था।

मांडवी बंदरगाह

इस बंदरगाह को विकसित करने का श्रेय महाराज श्री खेनगरजी प्रथम को जाता है। लेखक मिलबर्न ने मांडवी को कच्छ के सबसे महान बंदरगाहों में एक माना है। बड़ी संख्या में पानी के जहाजों को यहां देखा जा सकता है।

मुंद्रा बंदरगाह

यह बंदरगाह मुंद्रा शहर से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है। ओल्ड पोर्ट और अदानी पोर्ट यहां देखे जा सकते हैं। यह बंदरगाह पूरे साल व्यस्त रहते हैं और अनेक विदेशी पानी के जहाजों का यहां से आना-जाना लगा रहता है। दूसरे राज्यों से बहुत से लोग यहां काम करने आते हैं।

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जखऊ बंदरगाह

यह बंदरगाह कच्छ जिले के सबसे प्राचीन बंदरगाहों में एक है। वर्तमान में मात्र मछली पकड़ने के उद्देश्य से इसका प्रयोग किया जाता है। कच्छ जिले के इस खूबसूरत बंदरगाह में तटरक्षक केन्द्र और बीएसफ का जलविभाग है।

कच्छ घूमने आना चाहते हैं तो बता दें कि भुज विमान क्षेत्र और कांदला विमान क्षेत्र यहां के दो महत्वपूर्ण एयरपोर्ट हैं इसके अलावा गांधीधाम और भुज रेलवे स्टेशन यहां से नजदीक पड़ते हैं। कच्छ सड़क मार्ग द्वारा भी देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़ा हुआ है।

-प्रीटी

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