श्रद्धालु ही नहीं कलाप्रेमी भी बहुत आते हैं सारनाथ में

प्रीटी । Oct 12, 2016 12:45PM
सारनाथ सिर्फ दर्शनीय स्थल ही नहीं है यह अपनी धार्मिक परम्परा एवं ऐतिहासिक अवशेषों की वजह से देश−विदेश से आए सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

यदि भारत के सबसे महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थलों की सूची बनाई जाए तो सारनाथ का नाम पहली पंक्ति में आएगा। सारनाथ सिर्फ दर्शनीय स्थल ही नहीं है यह अपनी धार्मिक परम्परा एवं ऐतिहासिक अवशेषों की वजह से देश−विदेश से आए सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां सिर्फ पर्यटक ही नहीं अपितु इतिहासकार व कलाप्रेमी भी काफी संख्या में आते हैं।

वैसे तो सारनाथ में देखने योग्य बहुत कुछ है लेकिन आइए आपको पहले लिए चलते हैं ध्वंसावशेष दिखाने। यहां पर अब तक हुई खुदाई में सात बिहार, दो महास्तूप, दो मंदिर और अशोक स्तंभ आदि मिले हैं। सारनाथ को जो सड़क जाती है उसके बाएं किनारे पर बना हुआ चौखंडी स्तूप इस स्थल की विशेषता को भी दर्शाता है।

सारनाथ के दक्षिण−पश्चिम में काफी ऊंचा ईंटों का थूहा है। युवान चुआई ने लिखा भी है कि सारनाथ से दक्षिण−पश्चिम में जंगलों के बीच मौजूद 91.44 मीटर ऊंचा एक स्तूप था जिसकी पहचान चौखंडी स्तूप से ही ठीक प्रकार मिलती है। इस समय तो चौखंडी स्तूप के ऊपर मुगल काल की एक अठपहलू बनी हुई है। इसे राजा गोवर्धन ने अकबर के आदेश पर सन् 1588 में बनवाया था। यहां से जब आप थोड़ी दूर उत्तर दिशा की ओर चलेंगे तो आपको धर्मराजिका स्तूप मिलेगा। इस स्तूप को सम्राट अशोक ने बनवाया था। इस समय तो केवल इस स्तूप की बुनियाद भर बची है। आइए अब चलते हैं मुख्य मंदिर में। धर्मराजिका स्तूप से उत्तर की ओर स्थित जो भव्य इमारत आपको दिखेगी वही मुख्य मंदिर है। इसकी कुर्सी 18.29 मीटर चौकोर है और इसका मुंह पूर्व दिशा की ओर स्थित है। 

यहां महात्मा बुद्ध से संबंधित मूलगंधकुटी है जोकि कभी 61 मीटर ऊंची थी। इसका आभास बचीखुची दीवारों के चौड़े आसारों से लगाया जा सकता है। यह मंदिर ईंट और चूने का बना हुआ है इसमें कहीं−कहीं पर पुराने भग्नप्राय मंदिरों से उकेरे हुए पत्थर भी लगा दिए गए हैं। बीच के गर्भगृह में आप आएंगे तो देखेंगे कि यहां पर कुछ और दीवारें बनाईं गई हैं जो ऊंची छत को रोक सकें।

आइए अब चलते हैं अशोक स्तंभ देखने को। मुख्य मंदिर से पश्चिम दिशा की ओर सम्राट अशोक के काल का पत्थर का खंभा मौजूद है। कहा जाता है कि एक समय इस खंभे की ऊंचाई 15.25 मीटर थी जोकि अब सिर्फ 2.03 मीटर ऊंची ही रह गई है। इस स्तंभ का सिरा बहुत भव्य था जिसे कि संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है। इस स्तंभ का ही ऊपरी हिस्सा भारत का राष्ट्रीय चिन्ह भी है। आप धमेख स्तूप भी देखने जा सकते हैं। इस स्तूप की खास बात यह है कि यह स्तूप ठोस गोलाकार शिखर की भांति है। इसका व्यास 28.80 मीटर और ऊंचाई 33.53 मीटर है। इस स्तूप की 11.20 मीटर ऊंचाई तो अलंकृत शिलापट्टों से ही ढकी हुई है। यहीं पास में ही स्थित जैन मंदिर भी देखने योग्य है। इस आधुनिक मंदिर का निर्माण सन् 1824 में जैन धर्म के 11वें तीर्थकर श्रेयंशनाथ की तपस्थली होने की स्मृति में किया गया था। 

आप जब यहां आए ही हैं तो संग्रहालय जाना तो कदापि न भूलें। इस संग्रहालय की स्थापना स्थानीय मूर्तियों के प्रदर्शन के लिए की गई थी। इस समय भवन के मुख्य कक्ष, चार वीथिकाओं तथा बरामदे में भी मूर्तियां सजी हुई हैं। संग्रहालय में सारनाथ की प्रसिद्ध मूर्ति अशोक स्तंभ के सिरे पर लगा हुआ सिंह शीर्ष है। 

यह संग्रहालय सैलानियों के लिए प्रातः नौ बजे से सायं 5 बजे तक खुला रहता है। आप यदि सारनाथ की यात्रा का कार्यक्रम बना रहे हैं तो आपको बता दें कि सारनाथ भ्रमण का कार्यक्रम वाराणसी भ्रमण के दौरान ही बनाया जा सकता है क्योंकि यह वाराणसी का ही एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है

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