Artificial Intelligence ने किया कमाल, 12 साल बाद लकवाग्रस्त व्यक्ति को चलने में की मदद

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रितिका कमठान । May 29 2023 6:00PM

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग इन दिनों कई कार्यों के लिए किया जा रहा है। खासतौर से कुछ महीनों में ही चैटजीपीटी के आने से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में काफी बदलाव देखने को मिला है। इसके बढ़ते उपयोग से साफ है कि भविष्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का है।

इन दिनों आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का हर तरफ बोलबाला देखने को मिल रहा है। हाल ही के कुछ महीनों में ही चैटजीपीटी जैसे एआई टूल तेजी से अपनी बैठ बढ़ा रहे है। बीते वर्ष जब चैटजीपीटी लॉन्च हुआ उसके बाद से इसकी लोकप्रियता में काफी बढ़ावा देखने को मिल रहा है। वर्तमान में लोग ऐसे समय में जी रहे हैं जहां हर चीज को असलियत में बदलने के लिए कई कोशिशें की जा रही है।

ऐसा ही कुछ दम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी है, जो कई असाधारण क्षमताओं को बदलने में सक्षम है। ऐसा ही एक मामला स्विट्जरलैंड में देखने को मिला है जहां वैज्ञानिकों ने 12 वर्ष से लकवाग्रस्त व्यक्ति को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से नया जीवन दिया है। वैज्ञानिकों ने यहां लकवाग्रस्त व्यक्ति को निचले शरीर पर नियंत्रण करने में मदद पहुंचाई, जिसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया गया। गौरतलब है कि वर्तमान में कई टूल्स हैं जिनकी मदद से एआई की पॉपुलैरिटी में इजाफा हुआ है। इसमें चैटजीपीटी के लॉन्च के बाद से गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा जैसी कंपनियां शामिल हो गई है।

ये है मामला
जानकारी के मुताबिक वर्ष 2011 में एक व्यक्ति गर्ट-जैन ओस्कम के शरीर के कमर के नीचे का हिस्सा लकवा ग्रस्त हो गया था। इसके बाद से वो कभी अपने पैरों पर खुद से चल नहीं सके। मगर बीते 12 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से पहली बार ओस्कम को चलने में कामयाबी मिली है। इसके लिए उसने यूरोपीय वैज्ञानिकों को धन्यवाद दिया है। 

बता दें कि ओस्कम की उम्र 40 वर्ष है, जिसे चलने में मदद करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ अपने विचारों का इस्तेमाल करके अपने अंगों पर नियंत्रण हासिल किया। ये सब दो इम्प्लांट्स की मदद से संभव हुआ है। इन इम्प्लांट्स के बाद व्यक्ति ने अपनी मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बीच कनेक्शन को दोबारा जोड़ा था।

इस संबंध में ओस्कम ने बताया कि शुरुआत में डॉक्टरों को उम्मीद नहीं थी की वो चल सकेंगे। उन्हें कहा गया कि उनकी कोई मदद नहीं की जा सकती है। ओस्कम ने कहा कि वो अपने हाथों को हिलाने में सक्षम थे। इस पर डॉक्टरों ने उन्हें सुझाव दिया था कि इसी के साथ वो खुश रहें। हालांकि ओस्कम ने सिर्फ इतने से ही हार नहीं मानी और कभी ये नहीं माना की वो जीवन में दोबारा चलने में सक्षम नहीं हो सकेंगे। इसके बाद उन्होंने फ्रांस और स्विट्जरलैंड के शोधकर्ताओं की टीम के संपर्क किया। इस टीम ने ओस्कम के मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बीच एक डिजिटल ब्रिज बनाने का फैसला किया और इसका सफल तरीका खोजा गया। इस ब्रिज ने सभी परेशानियों को दूर करते हुए सफलता के साथ ओस्कम की दोबारा चलने में मदद की।

बता दें कि इस सफलता को मिलने में पूरे 10 वर्षों का लंबा समय लगा है। जानकारी के मुताबिक वर्ष 2011 में साइकिल से हुई दुर्घटना के कारण ओस्कम लकवा का शिकार हो गए थे। मगर वैज्ञानिकों की 10 वर्षों की मेहनत और ओस्कम की दृढ़निश्चय शक्ति के दम पर ही ये प्रयोग सफल हुआ है। वैज्ञानिकों द्वारा बनाए गए ब्रिज के जरिए विचारों को एक्शन में बदला जा सकता था। इसका संबंध पैरों की मांसपेशियों और मस्तिष्क के उस हिस्से से था जो पैरों को कंट्रोल कर सकता था।

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