भाजपा को भारी पड़े ये दांव तो कांग्रेस के वोट बैंक पर लग गई झाड़ू

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दिल्ली विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो गए और नतीजे भी आ गए। आम आदमी पार्टी ने लगातार दूसरी बार बहुमत हासिल किया और अरविंद केजरीवाल लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे। चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक 70 विधानसभा वाली दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने 62 सीटों पर तो भाजपा ने 8 सीटों पर कब्जा किया।

दिल्ली विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो गए और नतीजे भी आ गए। आम आदमी पार्टी ने लगातार दूसरी बार बहुमत हासिल किया और अरविंद केजरीवाल लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे। चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक 70 विधानसभा वाली दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने  62 सीटों पर तो भाजपा ने 8 सीटों पर कब्जा किया और देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने अपने पुराने प्रदर्शन को जारी रखते हुए जीरो पर काबिज रही। आज हम सवाल-जवाब नहीं बल्कि दिल्ली चुनाव का सटीक विश्लेषण करेंगे।

AAP ने कैसे हासिल की 62 सीटें ?

आम आदमी पार्टी ने ज्यादा कुछ किया नहीं, बस अपने काम और स्थानीय मुद्दों को लेकर जनता के बीच गए। सबसे मजबूत कड़ी पार्टी के लिए अरविंद केजरीवाल का चेहरा था क्योंकि अरविंद केजरीवाल के सामने कौन, यह न तो भाजपा बता पाई थी और न ही कांग्रेस बताने में सफल रही। अगर हम कांग्रेस की बात करें तो वह कभी भी शीला दीक्षित से बाहर निकल ही नहीं पाई। इतना ही नहीं जो चुनाव नतीजे सामने आए उसके मुताबिक तो 63 सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हो गई।

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खैर ये तो चुनाव है आरोप-प्रत्यारोप लगते रहते हैं और फिर जीती हुई पार्टी को बधाईयां भी दी जाती हैं और यही देखने को भी मिला। दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अरविंद केजरीवाल को जीत की बधाई दी और साथ ही हार की समीक्षा करने की बात कही। अगर हम इसकी समीक्षा करें तो भाजपा को एक-दो नहीं बल्कि कई सारे दांव भारी पड़ गए।

जैसा कि हम पहले कई बार आपको चुके हैं कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों की बात की ही नहीं बल्कि वह धारा-370, नागरिकता संशोधन कानून, शाहीन बाग, जेएनयू, राम मंदिर जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा। इसके अलावा भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा भी नहीं था। जिसके आधार पर वह जनता के बीच जाकर वोट मांग सकें तभी तो पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा था और जनता यह तो जानती ही है कि प्रधानमंत्री मोदी थोड़े ने मुख्यमंत्री बनेंगे।

क्या हार की सिर्फ इतनी ही वजह थी ?

नहीं, भाजपा को सबसे भारी उनके नेताओं द्वारा दिए गए बड़बोले बयान पड़े। प्रवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा जैसे नेताओं पर तो चुनाव आयोग का डंडा तक चला था। सीधे तौर पर प्रवेश वर्मा ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी कहा और तो और चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर ने भी माना कि केजरीवाल आतंकवादी हैं। ये तो छोड़िए अनुराग ठाकुर द्वारा दिया गया नारा तो आप सभी को याद होगा ही... जिसमें कहा गया- देश के गद्दारों को गोली मारो... यह इतना ज्यादा विवादित था कि हम आपको यह नारा पूरा सुना तक नहीं सकते।

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खैर जब चुनाव देश की राजधानी में हो और उसे पाकिस्तान से जोड़ा जाए तो परिणाम कैसे होंगे यह तो आपने देख ही लिया और भाजपा का आला नेतृत्व जरूर समीक्षा करेंगे और आगे कभी भी ऐसी गलतियां नहीं दोहराए। खासकर कपिल मिश्रा कि तरह जिन्होंने कहा था कि 8 फरवरी को हिन्दुस्तान बनाम पाकिस्तान का मैच होगा। 

यह तो अब सब समझ ही गए होंगे कि 8 फरवरी को आम आदमी पार्टी के पक्ष में वोट पड़े थे। तभी तो जीत के बाद AAP नेता संजय सिंह ने बयान का जिक्र करते हुए कहा कि हिन्दुस्तान जीत गया।

भाजपा को शाहीन बाग मुद्दा भी भारी पड़ा क्योंकि उन्होंने उस मुद्दे को काफी लंबा खींच दिया था। जिसकी वजह से जनता परेशान हो गई थी। और तो और भाजपा को कांग्रेस का चुनावों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाना सबसे ज्यादा भारी पड़ा।

धरने वाले नेता ने कैसे सुधारी थी अपनी छवि ?

साल 2015 में बहुमत हासिल करने के बाद आम आदमी पार्टी के किस्से आए दिन अखबार में छपते थे। कभी वह गृह मंत्रालय से आईपीएस अधिकारियों की नियुक्ति के लिए तो कभी उपराज्यपाल के दफ्तर में धरने के लिए बैठ जाते थे। इतना ही नहीं उन्होंने उस समय सीधे तौर पर मोदी सरकार पर हमले भी किए थे। इसका खामियाजा यह हुआ कि उनके सबसे विश्वसनीय लोगों में शामिल प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और कुमार विश्वास जैसे नेताओं ने उनका साथ छोड़ दिया और यह कहा जाने लगा कि आम आदमी पार्टी अब गर्त में जाने वाली है। लेकिन पार्टी ने अपना रवैया बदला।

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अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी पर सीधे हमले करने बंद कर दिए। केंद्र की परियोजना का स्वागत भी किया और उन्हें शाबाशी भी दी। राज्य के मुद्दे को बनाए रखा। शिक्षा, स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे पर काम करना शुरू कर दिया और अपनी छवि को धरने वाले नेता से बदलकर विकास की दिशा में आगे बढ़ने वाले की छवि बना ली थी। और आप सभी ने मंगलवार को देखा ही था कि जीत के बाद केजरीवाल ने जब दिल्ली की जनता को संबोधित किया था तो एक फैमली मैन की छवि बनाने का प्रयास भी किया लेकिन इस प्रयास पर कभी विस्तृत चर्चा करेंगे।

NRC का कांग्रेस ने तो खुलकर विरोध किया था फिर क्या हो गया ?

कांग्रेस ने एनआरसी का खुलकर विरोध किया था लेकिन लगभग सभी मुस्लिम बहुल इलाकों में आम आदमी पार्टी को सफलता मिली है। इससे हम यह तो कह सकते हैं कि मतदान का मुख्य केंद्र तो ध्रुवीकरण बिल्कुल नहीं था। कांग्रेस को भारी यह भी पड़ा कि अंत में राहुल और प्रियंका गांधी रैली करने आए। रैली तो हुई लेकिन राहुल ने प्रधानमंत्री मोदी को डंडे से मारने वाली बात कहकर वोटर्स को यह साफ कर दिया कि आपको वोट किसे देना है। समझिए इस बात को केजरीवाल ने सीधे तौर पर हमले बंद कर दिए और राहुल ने अंत में सीधा हमला कर दिया। नुकसान तो होना ही था।

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लेकिन इसकी शुरुआत उस वक्त होती है जब दिल्ली को साधने के लिए रामलीला मैदान में एक रैली की गई। जिसे भारत बचाओ रैली का नाम दिया गया। पार्टी के तमाम दिग्गजों ने अपनी बात रखी लेकिन राहुल ने यह कहकर पानी फेर दिया कि मैं राहुल सावरकर नहीं हूं मैं माफी नहीं मागूंगा। यह बात दिल्ली के पक्ष में होनी थी लेकिन बहस दिल्ली से हटकर वीर सावरकर पर शिफ्ट हो गई। 

इतना ही नहीं चुनाव दिल्ली में थे मगर राहुल कभी जयपुर तो कभी वायनाड में रैली कर रहे थे। खैर कांग्रेस को शून्य का स्वाद काफी पसंद है तभी तो 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में और 2015 और 2020 के विधानसभा में शून्य में ही समाए रहे। खैर भाजपा के लिए तो खुशी का पल है क्योंकि 2015 की तुलना में 5 सीटें बढ़ीं हैं और वोट प्रतिशत में भी इजाफा हुआ है और भाजपा इस बात से भी खुश हो सकती है कि जितने उनके वोट प्रतिशत बढ़े हैं उनसे भी कम पूरे दिल्ली में कांग्रेस को वोट मिले हैं।

बस अब आम आदमी पार्टी से इतना ही कहना है कि जीत में मदहोश होकर दिल्ली की जनता को न भूले और उनके लिए काम करती रहें।

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