पृथ्वी दिवस विशेष: जानिये भारत में थार का मनभावन युवा मरुस्थल
जन-जीवन के नाम पर मरुस्थल में मीलों दूरी पर गांव मिलते हैं। थार के मरुस्थल में आज अनेक शहर ही नहीं गांव भी विकसित हो गये हैं। यहां हिंदू और मुसलमान ही नहीं कई धर्म के लोग निवास करते हैं।
पृथ्वी पर दुनिया में 17 मरुस्थल पाये जाते हैं। जिनमें भारत के पश्चिम में देश का एक मात्र विश्व का 17वाँ तथा एशिया का 7वॉ सबसे बड़ा मरूस्थल है। इसे सबसे युवा मरुस्थल एवं " ग्रेट इंडियन डेजर्ट" के नाम से पुकारा जाता है। यह हिंद-प्रशान्त क्षेत्र का सबसे कम आबादी वाला पारिस्थितिकी तंत्र है जो भारत-ईरान शुष्क क्षेत्र का हिस्सा है और केस्पियन सागर तक फैला है। भारत-ईरान शुष्क प्रदेश के अंतर्गत अनेक रेगिस्तान आते हैं जिनमें से थार रेगिस्तान भी एक है। थार रेगिस्तान का नामकरण पाकिस्तान के सिंध प्रांत के एक जिले ‘थारपारकर’ के नाम पर किया गया है। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में यह क्षेत्र चोलिस्तान के नाम से भी जाना है। यह रेगिस्तान अन्य क्षेत्रों से उपजाऊ घाटियों (सिंधु नदी तथा उसकी सहायक नदियों) द्वारा अलग होता है। थार का रेगिस्तान 259,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में विस्तारित है जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7.8 प्रतिशत है। इसका 69 प्रतिशत भाग भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में स्थित है। यह भारत के चार प्रदेशों, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात में फैला हुआ है परन्तु भारतीय थार क्षेत्र का करीब 61 प्रतिशत हिस्सा पश्चिमी राजस्थान में स्थित है।
राजस्थान का थार का मरुस्थल कार्बो_नि_फेरस युग में टेथिस सागर का अंश था, अकल जीवाश्म पार्क, जलोदभिद तलछट व लिग्नाइट, खनिज तेल और प्राकृतिक गैस का जमाव आदि इसकी पुष्टि करते हैं। पश्चिमी रेगिस्तान दो मुख्य भागों में बटा हुआ है। एक बांगड़ प्रदेश-- वह प्रदेश जो प्राचीन जलोढ मिट्टी से निर्मित है और जहां वर्तमान में नदियों का जल नही पहुंचता। इसके अंतर्गत चार प्रकार के क्षेत्र आते है। घग्घर क्षेत्र -गंगानगर, हनुमानगढ़ का क्षेत्र जहां घग्घर नदी बहती है। शेखावाटी क्षेत्र- घग्घर नदी के पाट/ नीचे वाला हिस्सा। नागौरी उच्च प्रदेश एवं लूणी बेसिन-जोधपुर, सिरोही, पाली, जालौर, राजसमंद का हिस्सा। दूसरा शुष्क मरुस्थल-- उत्तरी पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश जिसके दो उपभाग हैं। पथरीला मरुस्थल/ हम्माद-- जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर, जालौर क्षेत्र एवं मिश्रित मरुस्थल-- जैसलमेर के निकट रामगढ़ और लोद्रवा क्षेत्र शामिल है। मरुस्थल का सामान्य ढाल पूर्व में पश्चिम की ओर तथा उत्तर में दक्षिण की ओर है। समुंद्र तल से इसकी ऊंचाई 200 से 300 मीटर तक है। यह मरुस्थल पोलेयोआर्कटिक अफ्रीका का ही विस्तार माना जाता है। रेत के विशाल बालुका स्तूप यहाँ विशाल सागर की तरह फैले हैं। शुष्क दशाओं के कारण यहाँ की मिट्टी को अमेरिकी कृषि विभाग द्वारा"एरिस्टोडल मिट्टी" में वर्गीकृत किया गया है। क्षारीयता की समस्या होने से मिट्टी में जिप्सम खाद का प्रयोग किया जाता है। रेगिस्तानी क्षेत्रों में कृषि की दृष्टि से ज्वार, बाजरा, मोठ, ग्वार, गेहूं, सरसो, जो, कपास, मूंगफली,अलसी, तिल, मूंग ,जीरा एवं इसबघोल आदि की पैदावार होती हैं। रेगिस्तान में इंदिरा ग़ांधी नहर के आने से खेती को बढ़ावा मिला है। माल्टा,संतरा,अंगूर,अनार और चुकंदर की खेती भी खूब होने लगी हैं। आज गंगानगर को " राजस्थान का अन्नागार" कहा जाने लगा है।
मरुस्थलीय भाग में अनेक खारी झीलें पाई जाती हैं। बाड़मेर में पचपद्रा, जयपुर में सांभर, नागौर में डीडवाना,डेगाना, जोधपुर में फलोदी,जैसलमेर में पोकरण एवं बीकानेर में लूणकरणसर झीलें हैं। इनसे नमक बनाया जाता है। मरु भाग में अनेक खनिज जिप्सम, जेस्पर,चूना पत्थर,कोयला और प्राकृतिक गैस के भंडार पाये जाते हैं। नागौर और जयपुर ज़िलों के मध्य मकराना में सफेद संगमरमर पत्थर के विपुल भण्डार पाये जाते हैं। देश में 90 प्रतिशत से अधिक जिप्सम के भंडार यहाँ पाये जाते हैं। मरु जिला बाड़मेर आज पेट्रोकेमिकल उद्योग का प्रमुख केंद्र और प्रमुख तेल उत्पादक जिला बन गया है। पचपदरा तेल शोधक संयंत्र मरु भूमि की शान है। जैसलमेर जिला पवन से ऊर्जा उत्पादन का हब बन गया है। इस प्रकार राजस्थान का यह मरुस्थल खनिजों का भंडार और ऊर्जा संसाधनों में समृद्ध बन जाता है।
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जलवायु
भारतीय सीमा वाले थार रेगिस्तान में वर्षा की औसत वार्षिक मात्रा 345 मि.मी. तक होती है। यहां वर्षा की मात्रा पश्चिमी भाग में 100 मि.मी. तक तो पूर्वी सीमा के निकट यह 400 मि.मी. तक हो जाती है। मई तथा जून के महीनों में यहां रेतीली आंधी आती है जिसकी गति 150 कि.मी प्रति घंटा तक होती है। गर्मियों में यहां की रेत उबलती है। इस मरुभूमि में 52 डिग्री सेल्शियस तक तापमान रिकार्ड किया गया है। जबकि सर्दियों में तापमान शून्य से नीचे चला जाता है। जिसका मुख्य कारण हैं यहाँ की बालू रेत जो जल्दी गर्म और जल्दी ठंडी हो जाती है। गर्मियों में मरुस्थल की तेज गर्म हवाएं चलती हैं जिन्हें "लू" कहते हैं तथा रेत के टीलों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है और टीलों को नई आकृतियां प्रदान करती हैं और रेत के बड़े-बड़े टीलों को दूसरे स्थानों पर धकेल देती है जिससे यहां मरुस्थलीकरण की समस्या बढ़ती जाती है। इस रेगिस्तान का कुछ क्षेत्र सतलज नदी द्वारा सिंचित होता है। थार रेगिस्तान में रेत के विशाल स्थल के बीच चट्टानी पहाडि़यां तथा बजरी के समतल क्षेत्र भी पाये जाते हैं।
जन-जीवन
जन-जीवन के नाम पर मरुस्थल में मीलों दूरी पर गांव मिलते हैं। थार के मरुस्थल में आज अनेक शहर ही नहीं गांव भी विकसित हो गये हैं। यहां हिंदू और मुसलमान ही नहीं कई धर्म के लोग निवास करते हैं। प्रकृति की मार को सहन करते हुए भी यहां पर कुछ जातियां समृद्धि के चरम को छू रही हैं। राजपुरोहित समाज के लोगों ने यहां पर खूब तरक्की की है। यहां विश्नोई समाज के लोग वन एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करते हुए पाए जाते हैं । थार के मरुस्थल में रहने वाले लोग वीर एवं साहसी होते हैं। लोगों में देश प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी होती है। सेना को इस क्षेत्र से अनेक वीर सपूत मिलें हैं। पशुपालन यहां का मुख्य व्यवसाय है । मुख्य रूप से यहाँ ऊंट पाले जाते हैं, जिसे" रेगिस्तान का जहाज" कहा जाता है। पशुओं में गाय ,बैल, भैंस, बकरी, भेड़ ,घोड़े, गधे आदि जानवर पाले जाते हैं।
गोडावण पक्षी
रेगिस्तान में पाये जाने वाले अनेक पक्षियों में बाड़मेर और इससे लगे पाकिस्तान और गुजरात के सीमावर्ती रेतीले क्षेत्रों में "गोडावण" पाया जाता है। राजस्थान सरकार ने गोडावण को सम्मान प्रदान करते हुए राज्य पक्षी घोषित किया है। कभी सामान्य रूप से दिखाई देने वाला शतुरमुर्ग की तरह का सुंदर पक्षी गोडावण आज लुप्त होने के कगार पर आ गया है। राजस्थान सरकार समय-समय पर इसके संरक्षण के लिए प्रयास करती हैं। इसके संरक्षण की दृष्टि से 1980-81 में 3163 वर्ग किमी. क्षेत्र को राष्ट्रीय मरु उद्यान घोषित किया गया था। यह उद्यान गोडावण की शरण स्थली बन गया।गोडावण की बिजली के तारों से होने वाली मौतों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने विचाराधीन एक मामले में 18 अप्रेल 2021 को अहम फैसला देते हुए राजस्थान और गुजरात में बिजली के तारों को भूमिगत करने और उच्च स्तरीय समिति गठन करने के निर्देश दिए हैं,जो स्वागत योग्य है।
रेतीले धोरे
रेगिस्तान के रेतीले धोरों की वजह से राजस्थान की धरती को " धरती धोरां री " कह कर पुकारा जाता है। राजस्थान में दूर तक फैले ये धोरे कैसे अस्तित्व में आए? इसका जवाब है यहां किसी समय में टेथिस महासागर हुआ करता था, वैज्ञानिकों के अनुसार कालान्तर में यह सूख गया और इसकी सीमाएं अरब सागर तक सिमट गई और यहाँ मरुस्थल बन गया। थार का रेगिस्तान अपने ऊंचे रेतीले टीलों के लिए प्रसिद्ध है। थार रेगिस्तान में कहीं-कहीं टीले 150 मीटर तक ऊंचे होते हैं। इस रेगिस्तान के कुछ ही हिस्सों में रेत के सक्रिय टीले देखे जाते हैं जब कि अधिकतर टीले असक्रिय होते हैं। कुछ क्षेत्रों में यह टीले अस्थाई होकर स्थान परिवर्तन करते रहते हैं।
जैसलमेर में जिला मुख्यालय से 40 से 48 किलोमीटर दूर खुहड़ी और सम के धोरे हैं। पीले सुनहरी मिट्टी के धोरों पर शाम बिताने का मजा ही कुछ और है। यहां पहुंचने वाले पर्यटक स्वयं को प्रकृति के नजदीक महसूस करते हैं। इसी तरह बीकानेर में अनेक धोरे हैं जो कि 8 से 50 किलोमीटर के दायरे में फैले हुए हैं। इनमें बजरंग धोरा 8 किलोमीटर, बालकिया धोरा 15 किमी, रायसर 16 किमी, रासीसर देशनोक 30 किमी, लाडेरा 45 किमी.एवं कतरियासर 48 किमी आदि धोरे प्रमुख हैं। मरुस्थल में बरखाल, तारामती के टीलें, अनुप्रस्थ टीलें, आडा टीलें एवं परवलयाकार टीलें देखने को मिलते हैं। इनके बीच छोटी अस्थाई झीलों को लाया झीलें कहा जाता है। शेखावाटी क्षेत्र में कच्चे-पक्के कुएं पाये जाते हैं जिन्हें जोहड़ या नाडा भी कहा जाता हैं। पर्यटन संबंधी गतिविधियों का आयोजन सम, खुहड़ी , रायसर, लाडेरा, रासीसर, पिथरासर में ही अधिक होता है। जोधपुर के ओसियां में भी पर्यटन से जुड़ी गतिविधियां होती है। वर्तमान में पर्यटक धोरों पर होने वाले कार्यक्रमों में तो शामिल होते ही हैं वहां कुछ दिनों के लिए ठहराव करने की चाह रखते हैं।
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धोरों में कैम्प का बढ़ता चलन
रेत के धोरों में कैम्प का चलन तेजी से बढ़ रहा है। राजस्थान पहुंचने वाले अनेक पर्यटक अपनी यादगार शाम और रातें इन धोरों में बिताना पसन्द करते हैं। इन धोरों पर विभिन्न इवेन्ट्स की व्यवस्था बड़ी ट्रेवल कम्पनियों के माध्यम से की जाती है। ये कम्पनियां गाइड और एजेन्ट के माध्यम से पर्यटकों को धोरों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में शामिल करवाती हैं। यहां पर्यटन से जुड़ी कम्पनियों द्वारा लोक संगीत, कैम्प फायर, डीजे पार्टी आदि का आयोजन किया जाता है। होटलों और पर्यटन व्यवसाइयों द्वारा डायरेक्ट बुकिंग भी की जाती है। यह बुकिंग एक दिन, तीन दिन या सात दिन की होती है। यहां पर्यटन से जुड़ी कम्पनियों द्वारा लोक संगीत, कैम्प फायर, डीजे पार्टी आदि का आयोजन किया जाता है।
पर्यटन मेले
राजस्थान में पर्यटन विभाग द्वारा रेत के समंदर के धोरों पर अनेक पर्यटन मेलों का आयोजन किया जाता है। इनमें प्रमुख जैसलमेर का डेजर्ट फेस्टिवल एवं बीकानेर का कैमल फेस्टिवल आदि शामिल हैं। रेत के धोरों पर होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की वजह से राजस्थान का नाम विश्व पर्यटन मानचित्र में शामिल है। इन धोरों पर राजस्थान के लोक कलाकारों के वाद्ययंत्र और उनकी गायकी पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। इसके अलावा धोरों पर ऊंट, घोड़ों से जुड़ी अनेक प्रतियोगिताओं का भी आयोजन भी किया जाता हैं।
सेल्युलाइड पर चमक
थार का रेगीतान कितना मनभावन और अविभूत करने वाला है इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि फिल्मकारों की पसन्द बन कर तेजी से सेल्युलाइड पर उभरा है। यहाँ के महलों,किलों, होटलों और रेत धोरों पर अनेक बाॅलीवुड फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है जो अपने समय में हिट रही हैं। राजस्थान में रेत के समन्दर में जिन हिन्दी फिल्मों की शूटिंग हुई उनमें रेशमा और शेरा, सेहरा, लैला मजनूं, रजिया सुल्तान, गदर, एकलव्य, बाॅर्डर, सोल्जर, सौतन,हम साथ साथ हैं सहित अनेक फिल्में शामिल हैं।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
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