जानिए 92 साल के उस रामभक्त के बारे में जिसके बिना शायद ना बन पाता राम मंदिर

ram mandir

कल का दिन सभी रामभक्तों के लिए एक ऐतिहासिक दिन था क्योंकि कोर्ट में इतने सालों के विवाद के बाद आखिरकार मंदिर की नींव पड़ गई। पीएम मोदी ने मंदिर का भूमि पूजन संपन्न करने के बाद देशवासियों को संबोधित भी किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने बुधवार को अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन किया। 5 अगस्त यानि कल का दिन सभी रामभक्तों के लिए एक ऐतिहासिक दिन था क्योंकि कोर्ट में इतने सालों के विवाद के बाद आखिरकार मंदिर की नींव पड़ गई। पीएम मोदी ने मंदिर का भूमि पूजन संपन्न करने के बाद देशवासियों को संबोधित भी किया। कल पूरे देश ने टीवी पर भूमि पूजन का लाइव प्रसारण देखा और सोशल मीडिया पर तस्वीरों और पोस्ट के जरिए अपनी खुशी जाहिर की। इसी बीच बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष ने भी ट्विटर पर एक तस्वीर शेयर की जिसमें 92 वर्षीय वरिष्ठ वकील अपने घर से ही टीवी पर राम मंदिर भूमि पूजन का पूरा कार्यक्रम देख रहे थे। राम मंदिर केस को सफलता दिलाने में के. परासरन की अहम भूमिका है। आइए जानते हैं परासरन से जुड़ी कुछ ख़ास बातें - 

राम मंदिर केस की सफलता में सराहनीय योगदान

राम मंदिर केस में सफलता दिलाने के लिए परासरन के योगदान को देखते हुए उन्हें राममंदिर के निर्माण के लिए बने ट्रस्ट 'श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' का अध्यक्ष बनाया गया है। उनके ग्रेटर कैलाश पार्ट 1 निवास के पते पर ही ट्रस्ट का रजिस्टर्ड ऑफिस है।  ये वही वकील हैं जिन्होंने 92 वर्ष की उम्र में भी अदालत में घंटों खड़े होकर अयोध्या विवाद में रामलला विराजमान का पक्ष रखा था और उनका केस लड़ा था।

अदालत में कहा था - अंतिम से पहले चाहता हूँ केस में न्याय

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान जब मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने हर रोज सुनवाई पर आपत्ति जताई थी तब क। परासरन ने कहा था कि वे अपनी अंतिम सांस से पहले इस केस को पूरा करना चाहते हैं और इस केस में न्याय चाहते हैं।

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सुनवाई के दौरान रोज़ाना 18 घंटे तक काम करते थे  

परासरन के एक सहयोगी ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि अयोध्या मामले में सुनवाई के दौरान परासरन ढाई महीने तक रोज़ाना केवल 5 घंटे ही सोते थे। उनके साथ 40 लोगों की टीम थी जो रोज 18 घंटे काम करते थे। यहाँ तक की आँख में तकलीफ होने के बावजूद भी वे केस के चलते डॉक्टर के पास नहीं गए और फोन पर ही दवाई पूछकर काम चलाया।

विरासत में मिली वकालत

1927 में तमिलनाडु के श्रीरंगम में जन्में परासरन को वकालत उनके पिता से विरासत में मिली है। उन्हें वकालत में 60 साल से भी ज़्यादा का अनुभव है। वे 1980 में देश के सॉलिसिटर जनरल रह चुके हैं और 1983 से 1989 तक वह देश के अटॉर्नी जनरल रहे। मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे संजय किशन कॉल ने के। परासरन को इंडियन बार का 'पितामह' कहा था। कॉल ने कहा था कि परासरन ने अपने धर्म से समझौता किए बिना कानून में अगाध योगदान दिया।

पद्मभूषण और पद्मविभूषण से सम्मानित

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान  के। परासरण को पद्मभूषण से नवाजा गया था। इसके बाद मनमोहन सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया और राज्यसभा के लिए नॉमिनेट भी किया।  2019 में उन्हें उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के द्वारा मोस्ट एमिनेंट सीनियर सिटीजन का अवॉर्ड भी मिला था।

 सबरीमाला केस में भी थी वकालत

अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद के अलावा उन्होंने सबरीमाला मंदिर विवाद के दौरान परासरन ने नायर सोसाइटी के पक्ष में  दलीलें रखी थीं।

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