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बसन्त के आगमन का पर्व है वसंत पंचमी, हर ओर दिखती है हरियाली
- रमेश सर्राफ धमोरा
- फरवरी 15, 2021 16:05
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भारत में पतझड़ ऋतु के बाद बसन्त ऋतु का आगमन होता है। हर तरफ रंग-बिरंगें फूल खिले दिखाई देते हैं। इस समय गेहूं की बालियां भी पक कर लहराने लगती हैं। जिन्हें देखकर किसान हर्षित होते हैं। चारों ओर सुहाना मौसम मन को प्रसन्नता से भर देता है।
वसंत पंचमी का दिन सरस्वती जी की साधना को अर्पित ज्ञान का त्योहार है। इस दिन पूरे देश में विद्या की देवी माँ सरस्वती की बड़े उल्लास के साथ पूजा की जाती है। इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण करती हैं। शास्त्रों में भगवती सरस्वती की आराधना व्यक्तिगत रूप में करने का विधान है। किंतु आजकल सार्वजनिक पूजा-पाण्डालों में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने का रिवाज चल पड़ा है।
बसन्त उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है। जो फरवरी मार्च और अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है। माना गया है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बसन्त ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास बसन्त ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इस प्रकार हिंदू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ बसन्त में ही होता है। इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है। मौसम सुहावना हो जाता है। पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं। खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं। अतः राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।
बसन्त पंचमी के पर्व से ही बसंत ऋतु का आगमन होता है। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श करती है। बसन्त ऋतु तथा पंचमी का अर्थ है शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन। अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार यह पर्व जनवरी-फरवरी तथा हिन्दू तिथि के अनुसार माघ के महीने में मनाया जाता है।
भारत में पतझड़ ऋतु के बाद बसन्त ऋतु का आगमन होता है। हर तरफ रंग-बिरंगें फूल खिले दिखाई देते हैं। इस समय गेहूं की बालियां भी पक कर लहराने लगती हैं। जिन्हें देखकर किसान हर्षित होते हैं। चारों ओर सुहाना मौसम मन को प्रसन्नता से भर देता है। इसीलिये वसन्त ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा अर्थात ऋतुराज कहा गया है। इस दिन भगवान विष्णु, कामदेव तथा रति की पूजा की जाती है। इस दिन ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की रचना की थी। इसलिए इस दिन देवी सरस्वती की पूजा भी की जाती है।
ग्रंथों के अनुसार देवी सरस्वती विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघमास की पंचमी तिथि निर्धारित की गयी है। बसन्त पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। ऋग्वेद में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन है। मां सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। कहते हैं जिनकी जिव्हा पर सरस्वती देवी का वास होता है। वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं।
बसन्त पंचमी का दिन भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार समशीतोष्ण वातावरण के प्रारंभ होने का संकेत है। मकर सक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण प्रस्थान के बाद शरद ऋतु की समाप्ति होती है। हालांकि विश्व में बदलते मौसम ने मौसम चक्र को बिगाड़ दिया है। पर सूर्य के अनुसार होने वाले परिवर्तनों का उस पर कोई प्रभाव नहीं है। हमारी संस्कृति के अनुसार पर्वों का विभाजन मौसम के अनुसार ही होता है। इन पर्वो पर मन में उत्पन्न होने वाला उत्साह स्वप्रेरित होता है। सर्दी के बाद गर्मी और उसके बाद बरसात फिर सर्दी का बदलता क्रम देह में बदलाव के साथ ही प्रसन्नता प्रदान करता है।
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि देवताओं का एक अहोरात्र (दिन-रात) मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर होता है। अर्थात उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन रात्रि कही जाती है। सूर्य की क्रांति 22 दिसम्बर को अधिकतम हो जाती है और यहीं से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं और अगले 6 माह तक उत्तरायण रहते हैं। सूर्य का मकर से मिथुन राशियों के बीच भ्रमण उत्तरायण कहलाता है। देवताओं का दिन माघ के महीने में मकर संक्रांति से प्रारम्भ होकर आषाढ़ मास तक चलता है।
चूंकि बसन्त पंचमी का पर्व इतने शुभ समय में पड़ता है। अतः इस पर्व का स्वतः ही आध्यात्मिक, धार्मिक, वैदिक आदि सभी दृष्टियों से अति विशिष्ट महत्व परिलक्षित होता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी ने विष्णु जी के कहने पर सृष्टि की रचना की थी। एक दिन वह अपनी बनाई हुई सृष्टि को देखने के लिए धरती पर भ्रमण करने के लिए आए। ब्रह्मा जी को अपनी बनाई सृष्टि में कुछ कमी का अहसास हो रहा था। लेकिन वह समझ नहीं पा रहे थे कि किस बात की कमी है। उन्हें पशु-पक्षी, मनुष्य तथा पेड़-पौधे सभी चुप दिखाई दे रहे थे। तब उन्हें आभास हुआ कि क्या कमी है। वह सोचने लगे कि एसा क्या किया जाए कि सभी बोले और खुशी में झूमे। ऐसा विचार करते हुए ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल लेकर कमल पुष्पों तथा धरती पर छिडका। जल छिडकने के बाद श्वेत वस्त्र धारण किए हुए एक देवी प्रकट हुई। इस देवी के चार हाथ थे। एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में कमल, तीसरे हाथ में माला तथा चतुर्थ हाथ में पुस्तक थी।
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ब्रह्मा जी ने देवी को वरदान दिया कि तुम सभी प्राणियों के कण्ठ में निवास करोगी। सभी के अंदर चेतना भरोगी, जिस भी प्राणी में तुम्हारा वास होगा वह अपनी विद्वता के बल पर समाज में पूज्यनीय होगा। ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम्हें संसार में देवी सरस्वती के नाम से जाना जाएगा। ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती को वरदान देते हुए कहा कि तुम्हारे द्वारा समाज का कल्याण होगा इसलिए समाज में रहने वाले लोग तुम्हारा पूजन करेगें।
बसन्त पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। मुख्यतः विद्यारम्भ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह प्रवेश के लिए बसन्त पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। बसन्त पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे अनेक कारण हैं। यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं। इसलिए प्राचीन काल से बसन्त पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है अथवा कह सकते हैं कि इस दिन को सरस्वती के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है।
बसन्त पंचमी के दिन विद्यालयों में भी देवी सरस्वती की आराधना की जाती है। भारत के पूर्वी प्रांतों में घरों में भी विद्या की देवी सरस्वती की मूर्ति की स्थापना की जाती है और वसन्त पंचमी के दिन उनकी पूजा की जाती है। उसके बाद अगले दिन मूर्ति को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। देवी सरस्वती को ज्ञान, कला, बुद्धि, गायन-वादन की अधिष्ठात्री माना जाता है। इसलिए इस दिन विद्यार्थी, लेखक और कलाकार देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। विद्यार्थी अपनी किताबें, लेखक अपनी कलम और कलाकार अपने संगीत उपकरणो और बाकी चीजें मां सरस्वती के सामने रखकर पूजा करते हैं।
कडकड़ाती ठंड के बाद बसंत ऋतु में प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। पलाश के लाल फूल, आम के पेड़ों पर आए बौर, हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को सुहाना बना देती है। यह ऋतु सेहत की दृष्टि से भी बहुत अच्छी मानी जाती है। मनुष्यों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। देश के कई स्थानो पर पवित्र नदियों के तट और तीर्थ स्थानों पर बसंत मेला भी लगता है। राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में तो बसंत पंचमी के दिन से ही लोग समूह में एकत्रित होकर रात में चंग ढफ बजाकर धमाल गाकर होली के पर्व का शुभारम्भ करते है।
रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)
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- कमलेश पांडेय
- फरवरी 24, 2021 11:21
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1932 की इस घटना ने उन दिनों एक बार फिर 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग गोलीकांड की बर्बरता की याद ताजा कर दी थी। तभी से हर साल तारापुर शहीद दिवस प्रत्येक वर्ष 15 फरवरी को मनाया जाता है।
# "उस दिन तिरंगा फहराने पर अंग्रेजी अफसरों ने चलवा दी अंधाधुंध गोलियां, जिससे लगभग तीन दर्जन लोग शहीद हो गए थे"
फरवरी का महीना भारतीयों के स्वाभिमान और आन बान शान का प्रतीक है। इसी महीने की 15 फरवरी 1932 को बिहार के मुंगेर जिला के तारापुर वासियों ने अपने अदम्य साहस और राष्ट्रप्रेम का परिचय देते हुए वह कुर्बानी दी, जिस पर राष्ट्र का बच्चा-बच्चा गौरव करता आया है। वैसे तो देश प्रेम में निजी अथवा सामूहिक कुर्बानी देने के अनेक उदाहरण मौजूद हैं, लेकिन तारापुर गोली कांड ने पूर्वी भारत में स्वतंत्रता प्रेम की जो अलख जगाई, उसने महज 15 साल बाद ही 15 अगस्त 1947 के शुभ मुहूर्त को और ज्यादा संभव बना दिया। वैसे तो बचपन से ही तारापुर शहीद स्मारक का दीदार करता आया हूँ जिसे भारतवासियों को यह प्रेरणा मिलती है कि भारत माता के स्वाभिमान की रक्षा के लिए और राष्ट्रध्वज तिरंगा के सम्मान के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने का वैसा ही जज्बा हमारे दिल में होना चाहिए, जैसा कि हमारे अमर शहीदों ने वक्त वक्त पर प्रदर्शित किया है।
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यूं तो तारापुर शहीद दिवस के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन इतिहास के पन्नों में आज से लगभग 9 दशक पहले क्या हुआ था, शायद कई लोग आज भी इससे अनजान होंगे। दरअसल, आजादी के लिए देश के कोने-कोने में लड़ी गई लड़ाइयां समय-समय पर कहानी और किताबों के माध्यम से सामने आती रही हैं। तारापुर के शहीदों की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में बिहार राज्य में स्थिति मुंगेर जिले के तारापुर के शहीदों का जिक्र किया था। जिससे इस घटना को एक बार पुनः चर्चा में आने का मौका मिला है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि तिब्बत सीमा पर 2020 की गलवान घाटी शहादत देने के पीछे भी हमारे देश के सैनिकों के समक्ष ऐसी ही गिनी चुनी घटनाओं से मिली प्रेरणाएं शामिल हैं। इसलिए हम सभी का यह पुनीत कर्तव्य है कि 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे राष्ट्रीय पर्व के मौके पर ऐसे बलिदान स्थलों पर वैसा स्वाभिमान रक्षा पर्व मनाएं कि भावी पीढ़ियों के लोग न केवल उस पर गौरव कर सकें, बल्कि वक्त आने पर वैसा ही उदाहरण प्रस्तुत करने का मौका मिलने पर कतई नहीं हिचकिचाएं। राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा के लिए और देश में आतंकवाद, नक्सलवाद और अंडरवर्ल्ड की कारगुजारियों से लोहा लेते हुए हमारे वीर जवानों ने और आम वीर पुरुषों ने जो शहादत दी है, उसी से स्थापित अमन-चैन के माहौल में हमलोग सांस ले पा रहे हैं, अन्यथा गुलामी की घुटन महसूस करनी हो तो इतिहास के पन्ने पलट लें।
बता दें कि पीएम मोदी ने 31 जनवरी 2021 को मन की बात कार्यक्रम में कहा, "इस वर्ष भारत अपनी आजादी के, 75 वर्ष का समारोह- अमृत महोत्सव शुरू करने जा रहा है। ऐसे में यह हमारे उन महानायकों से जुड़ी स्थानीय जगहों का पता लगाने का बेहतरीन समय है, जिनकी वजह से हमें आजादी मिली। साथियों, हम आजादी के आंदोलन और बिहार की बात कर रहें हैं, तो, मैं, NaMo App पर ही की गई एक और टिप्पणी की भी चर्चा करना चाहूंगा। मुंगेर के रहने वाले एक समाजसेवी ने मुझे तारापुर शहीद दिवस के बारे में लिखा है। 15 फरवरी 1932 को, देशभक्तों की एक टोली के कई वीर नौजवानों की अंग्रेजों ने बड़ी ही निर्ममता से हत्या कर दी थी। उनका एकमात्र अपराध यह था कि वे ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत मां की जय’ के नारे लगा रहे थे। मैं उन शहीदों को नमन करता हूं और उनके साहस का श्रद्धापूर्वक स्मरण करता हूं।"
# ......तब अंग्रेजी अफसरों के सामने ही थाने पर फहरा दिया तिरंगा और हंसते हंसते मौत को गले लगा लिया
मसलन, 1930 के दशक में तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के लिए देश के कोने-कोने से स्वतंत्रता आंदोलन की चिंगारी निकल रही थी। उनमें से एक बिहार राज्य के मुंगेर के तारापुर भी है। जहां 15 फरवरी की दोपहर में क्रांतिवीरों का जत्था घरों से बाहर निकला। क्रांतिवीरों का दल तारापुर तत्कालीन ब्रिटिश थाना पर राष्ट्रीय झंडा फहराने के लिए तिरंगा हाथों में लिए बेखौफ बढ़ते जा रहे थे और उनका मनोबल बढ़ाने के लिए जनता खड़ी होकर भारत माता की जय, वंदे मातरम आदि का जयघोष कर रही थी। तभी मौके पर मौजूद कलेक्टर ई ओली व एसपी डब्लू. एस. मैग्रेथ ने निहत्थे स्वतंत्रता सेनानियों पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दीं। गोलियां चलती रहीं और आजादी के दीवाने वहां से हिले तक नहीं। देखते ही देखते 34 लोगों की शहादत के बीच धावक दल के मदन गोपाल सिंह, त्रिपुरारी सिंह, महावीर सिंह, कार्तिक मंडल, परमानन्द झा ने ब्रिटिश थाने पर तिरंगा फहरा दिया। अंग्रेजी हुकूमत की इस बर्बर कार्रवाई में 34 स्वतंत्रता प्रेमी शहीद हुए। हालांकि विद्रोह को दबाने के लिए आनन-फानन में अंग्रेजों ने कायरतापूर्वक वीरगति को प्राप्त कई सेनानियों के शवों को वाहन में लदवाकर सुल्तानगंज भिजवाकर गंगा में बहवा दिया था।
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1932 की इस घटना ने उन दिनों एक बार फिर 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग गोलीकांड की बर्बरता की याद ताजा कर दी थी। तभी से हर साल तारापुर शहीद दिवस प्रत्येक वर्ष 15 फरवरी को मनाया जाता है। इतिहासकार डी सी डीन्कर ने अपनी किताब "स्वतंत्रता संग्राम में अछूतों का योगदान" में भी तारापुर की इस घटना का जिक्र किया है। इसके अलावा, लोक श्रुतियों, लोक गीतों, स्थानीय पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं में भी इस घटना के बारे में विस्तृत जानकारियां मौजूद हैं। इस पर कई शोध भी हो चुके हैं, लेकिन आधुनिक परिवेश के मद्देनजर इस पर नए सिरे से शोध होना चाहिए, ताकि राष्ट्रप्रेम के साथ साथ सामाजिक सद्भावना को भी बढ़ावा मिले, जिसका अकाल पड़ता जा रहा है।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
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- प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क
- फरवरी 20, 2021 14:34
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दुनिया ने शुक्रवार को मंगल ग्रह पर उतरते रोवर की पहली तस्वीर देखी। नासा ने लाल ग्रह के धूल भरे सतह पर उतरते रोवर की ‘विस्मित’ करने वाली तस्वीर जारी की। यह तस्वीर ‘पर्सविरन्स’ रोवर के मंगल ग्रह पर प्राचीन नदी के डेल्टा पर उतरने के 24 घंटे से भी कम समय में जारी की गई है।
केप केनावेरल (फ्लोरिडा)। दुनिया ने शुक्रवार को मंगल ग्रह पर उतरते रोवर की पहली तस्वीर देखी। नासा ने लाल ग्रह के धूल भरे सतह पर उतरते रोवर की ‘विस्मित’ करने वाली तस्वीर जारी की। यह तस्वीर ‘पर्सविरन्स’ रोवर के मंगल ग्रह पर प्राचीन नदी के डेल्टा पर उतरने के 24 घंटे से भी कम समय में जारी की गई है। यह रोवर प्राचीन जीवन के निशान को तलाश करेगा एवं एक दशक में धरती पर लाल ग्रह के चट्टान के प्रमाणिक नमूनों को लाने का भी प्रयास करेगा। नासा ने इस अंतरिक्ष यान में तस्वीर लेने के लिए 25 कैमरे लगाए गए हैं जबकि आवाज रिकॉर्ड करने के लिए दो माइक्रोफोन भी इसमें लगे हैं जिनमें से कई ने बृहस्पतिवार को सतह पर उतरने के दौरान काम करना शुरू दिया है।
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रोवर ने दो मीटर की दूरी से जमीन की असामान्य तौर पर बहुत साफ तस्वीर भेजी है जिसमें वह केबल के जरिये स्काई क्रेन से जुड़ा हुआ है और रॉकेट इंजन की वजह से लाल धूल उड़ रही है। कैलिफोर्निया के पेसाडेना स्थित नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी ने वादा किया है आने वाले कुछ दिनों में और तस्वीरें जारी की जाएंगी और संभवत: रोवर के उतरने के दौरान रिकॉर्ड आवाज भी सुनने को मिलेगी। फ्लाइट सिस्टम इंजीनियर एरन स्तेहुरा ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘ यह कुछ ऐसा है जिसे हमने पहले कभी नहीं देखा। यह चौंका देने वाली थी, टीम विस्मित थी। वहां जीत का भाव था कि हम इन तस्वीरों को कैद करने में सक्षम हुए और दुनिया के साथ साझा किया।’’ चीफ इंजीनियर एडम स्टेल्टज्नर ने कहा कि तस्वीर ‘खास’ है।
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जमीनी परिचालन की रणनीतिक मिशन प्रबंधक पॉवलिन ह्वांग ने कहा कि अबतक कई तस्वीरें मिली हैं। उन्होंने कहा, ‘‘टीम शुरुआती तस्वीरों को देख खुशी से झूम उठी।’’ उप परियोजना वैज्ञानिक कैटी स्टाक मॉर्गन ने कहा कि तस्वीर इतने स्पष्ट हैं कि शुरुआत में उन्हें लगा कि वे एनिमेशन हैं। गौरतलब है कि पिछले सात महीने में मंगल के लिए यह तीसरी यात्रा है। इससे पहले संयुक्त अरब अमीरात और चीन के एक-एक यान भी मंगल के पास की कक्षा में प्रवेश कर गए थे।
वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर कभी मंगल ग्रह पर जीवन रहा भी था तो वह तीन से चार अरब साल पहले रहा होगा। ‘पर्सविरन्स’ नासा का अब तक का सबसे बड़ा रोवर है और 1970 के दशक के बाद से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी का यह नौवां मंगल अभियान है। चीन ने अपने मंगल अभियान के तहत ‘तियानवेन-1’ पिछले साल 23 जुलाई को लाल ग्रह रवाना किया था। यह 10 फरवरी को मंगल की कक्षा में पहुंचा। इसके लैंडर के यूटोपिया प्लैंटिया क्षेत्र में मई 2021 में उतरने की संभावना है। यूएई का मंगल मिशन ‘होप’ भी इस महीने मंगल की कक्षा में प्रवेश कर गया है।
ऑनलाइन फूड ऑर्डर करने से पहले संभल जाएं वरना बिगड़ सकता है जायका
- अंकित सिंह
- फरवरी 19, 2021 15:26
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साइबर ठग फेसबुक पर भ्रामक प्रचार के जरिए मासूम ग्राहकों को फसाने की फिराक में रहते है। जब आप अपने फोन के जरिए पेमेंट करते हैं तो यह ठग आपके पर्सनल डिटेल्स निकाल लेते है और फिर सीधे आपके खाते से पैसे गायब कर देते है।
इंसान खाने को लेकर बड़ा सजग होता है। हालांकि, कभी-कभी अपने मूड के हिसाब से उसे खाना पसंद होता है। कभी उसका मूड घर में बना खाना खाने का कर सकता है तो कभी उसे बाहर से खाना मंगा कर खाने अच्छा लगता है। अक्सर जब हम घर में अकेले होते है या थके होते है तो खाना ऑनलाइन बुक कर के ही बाहर से मंगा लेते है। लेकिन अब आपको ऐसा करते वक्त सावधानी बरतने की जरूरत है और ऐसा इसलिए क्योंकि साइबर ठग आपके हर आर्डर पर नजर रहते हैं। दरअसल, साइबर ठग फेसबुक पर भ्रामक प्रचार के जरिए मासूम ग्राहकों को फसाने की फिराक में रहते है। जब आप अपने फोन के जरिए पेमेंट करते हैं तो यह ठग आपके पर्सनल डिटेल्स निकाल लेते है और फिर सीधे आपके खाते से पैसे गायब कर देते है।
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ऐसे में जब भी आप खाने का ऑर्डर ऑनलाइन दें तो संभल कर पेमेंट करें या फिर आप विश्वसनीय प्लेटफार्म पर जाकर ही अपना ऑर्डर बुक करें। वरना ठगी का शिकार होने के बाद आपके खाने पीने का जायका बिगड़ जाएगा। ऐसा ही कुछ हुआ शाहीन बाग में रहने वाले सहाब अहमद के परिवार के साथ हुआ। दरअसल, सहाब अहमद ने वैलेंटाइन डे के दिन दोपहर का खाना ऑर्डर से बुक किया। खास बात यह है कि उन्होंने नामी रेस्टोरेंट का विज्ञापन देखने के बाद यह आर्डर को किया था। खाने पर आकर्षक ऑफर भी था जो कि 1 प्लस 1 का था। सहाब अहमद ने फिर नंबर पर फोन किया जिसके बाद उन्हें बताया गया कि आप एक एप्लीकेशन डाउनलोड करें और फिर आप ऑर्डर बुक करें। ऐप पर तमाम जानकारी भरने के बाद उनके खाते से ₹99500 गायब हो गए।
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इस घटना के बाद से वह सहमे हुए हैं। डेबिट, क्रेडिट या फिर बैंक अकाउंट से लेनदेन कम ही कर रहे हैं। आगे भी वह ऐसे लेनदेन नहीं करना चाहते। इतना ही नहीं, होम मिनिस्ट्री के एक अफसर भी इस ठगी के शिकार हो गए हैं। होम मिनिस्ट्री के अफसर ने बताया कि वह इसी तरीके के ठगी का शिकार हुए और उनके अकाउंट से ₹33000 काट लिए गए। ऐसे में आप जब भी ऑनलाइन आर्डर करें तो चीजों को ठीक से पड़ताल कर लें। आर्डर करने के बाद पेमेंट के लिए किसी भी लिंक पर क्लिक ना करें। किसी भी तरह के एप्लीकेशन को डाउनलोड बिल्कुल भी ना करें। उन्ही के एप्लीकेशन पर जाकर आर्डर करें जो कि विश्वसनीय है। खाते की जानकारी साझा ना करें। ऑनलाइन फॉर्म भरने की कभी भी जरूरत नहीं होती है। खाने का ऑर्डर डिलीवरी होने के बाद ही पेमेंट करने की कोशिश करें।

