महिलाओं के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता बेहद जरूरी

प्राची थापन । Dec 17 2016 12:22PM

महिला सशक्तिकरण तभी संभव है जब आत्म निर्भरता और आर्थिक आत्मा निर्भरता भी हो। महिलाओं को जरूरत है अपने अस्तित्व को पहचानने की और इसको बनाये रखने की और एक कदम बढ़ाने की।

देश बदल रहा है महिलाओं की दशा में सुधार आ रहा है, समय के साथ साथ नारी शक्ति और सशक्त होती जा रही है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है ये बात तो सत्य है, किन्तु परिवर्तन का क्या परिणाम हुआ है और क्या होगा और उस परिवर्तन को आने वाली पीढ़ी को किस प्रकार स्वीकार करती है और इससे क्या सीख लेती है ये बात अधिक महत्त्व रखती है। देखा जाए तो हर युग में प्रतिभाशाली महिलाएँ रही हैं और हर युग में उन्होंने अपनी प्रतिभा से समाज में उदाहरण प्रस्तुत किया है जैसे- सीता, सावित्री, द्रौपदी, गार्गी आदि पौराणिक देवियों से लेकर रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्या बाई होल्कर, रानी चेनम्मा, रानी पद्मिनी, हाड़ी रानी आदि महान रानियों से लेकर इंदिरा गाँधी और किरण बेदी से लेकर सानिया मिर्ज़ा आदि आधुनिक भारत की महिलाओं ने भारत को विश्व भर में गौरवान्वित किया और महिलाओं ने धरती पर ही नहीं अपितु अन्तरिक्ष में भी अपना परचम लहराया है इनमें सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला प्रमुख हैं।

यह सही है कि हर युग में महिलाओं ने अपनी योग्यता का परचम लहराया है, लेकिन फिर भी यह देखने को मिलता है कि हर युग में उन्हें भेदभाव और उपेक्षा का भी सामना करना पड़ा है। महिलाओं के प्रति भेदभाव और उपेक्षा को केवल साक्षरता और जागरूकता पैदा कर ही खत्म किया जा सकता है। महिलाओं का विकास देश का विकास है। महिलाओं की साक्षरता, उनकी जागरूकता और उनकी उन्नति ना केवल उनकी गृहस्थी के विकास में सहायक साबित होती है बल्कि उनकी जागरूकता एवं साक्षरता देश के विकास में भी अहम् भूमिका निभाती है। इसीलिए सरकार द्वारा आज के युग में महिलाओं की शिक्षा और उनके विकास पर बल दिया जा रहा है, गाँव और शहर में शिक्षा के प्रचार प्रसार के व्यापक प्यास किये जा रहे हैं। महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और अन्याय के प्रति आवाज उठाने की हिम्मत प्रदान ही असल में नारी सशक्तिकरण है। 

इधर कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों में वृद्धि हुई है जोकि बहुत ही चिन्तनीय है। शहर भी महिलाओं के लिए असुरक्षित हो चले हैं। कुछ असामाजिक तत्वों के कारण महिलाओं को पर्दे में रखने की सोच का जन्म होता है किन्तु सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वह पर्दे में सुरक्षित रहेंगी? घर से बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी महिलाओं के साथ आपराधिक घटनाओं के साथ ही घरेलू हिंसा और यौन अपराधों में वृद्धि हो रही है। पर्दे में या दरवाजों के भीतर महिलाओं को बन्दिनी बनाकर रखना इन सबका हल नहीं है। जरूरत है उन बंद दरवाजों को खोलने की, रौशनी को अंदर आने देने की, उस प्रकाश में अपना प्रितिबिम्ब देखने की, उसे निहारने की, निखारने की। इस कड़ी में एक और अहम दरवाजा आत्म निर्भरता और आर्थिक आत्मा निर्भरता का भी है। जरूरत है हमें अपने अस्तित्व को पहचानने की और इसको बनाये रखने की और एक कदम बढ़ाने की।

हम लड़कियों को बचपन से ही सिखाया जाता है की पाक कला और गृहकार्य में निपुणता ही एक नारी के लिये परिपूर्णता है। क्या कभी किसी ने इस बात पर जोर दिया कि उनका पढ़ना लिखना भी उतना ही जरूरी है जोकि उनके बेहतर भविष्य के लिए बहुत ज़रूरी है। महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और सक्षम बनाना भी आज के समय में उतना ही आवश्यक है। आर्थिक रूप से सक्षम होना केवल परिवार के लिए नहीं अपितु अपने लिए भी आवश्यक है। शिक्षा का महत्त्व तब पता चलता है जब परिवार आर्थिक संकट से गुज़र रहा हो या किसी भी लड़की के वैवाहिक जीवन में अचानक परेशानी आ जाए। तब शिक्षा और आत्म निर्भरता से ही एक लड़की को ना तो अपने माता पिता पर और ना ही अपने पति पर निर्भर रहना पड़ता है। पैसे से खुशियां नहीं खरीदी जा सकतीं लेकिन एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए के लिए धन की आवश्यकता होती है। 

एक सुखी जीवनयापन के लिए किताबी ज्ञान के साथ व्यावहारिक ज्ञान भी अति आवश्यक है है जोकि हमारे कौशल में निखार लाता है और हमारे व्यावहारिक ज्ञान और अनुभव में वृद्धि करता है। व्यवहारिकता, अनुभव और कौशल विपरीत से विपरीत स्थिति में भी जीवनयापन में सहायता करता है। ऐसा नहीं है कि अशिक्षित महिलाओं में कौशल एवं हुनर कम है। कृषि, कुटीर उद्योग, पारम्परिक व्यवसाय, पशुपालन, दुग्ध व्यवसाय जैसे कार्यों से महिलाओं को अपने इस हुनर को बाहर लाना है और देश की अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनना है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ शिक्षा के अभाव और आर्थिक पिछड़ेपन के और विकृत मानसिकता के कारण विभिन्न आडम्बरों एवं अन्धविश्वासों के चलते महिलाओं का शोषण किया जाता है। ऐसे स्थानों पर महिलाओं को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाना चाहिये एवं आत्मरक्षा के तरीके भी सिखाये जाने चाहिये।

पुरूषों की भाँति महिलाएँ भी देश की समान नागरिक हैं और उन्हें भी स्वावलम्बी होना चाहिये ताकि समय आने पर वह व्यवसाय कर सकें और अपने परिवार को चलाने में मदद कर सकें। यही जागरूकता ही तो उनके, उनके परिवार के व देश के विकास को गति देगी एवं एक नई दिशा देगी। एक खुशहाल भविष्य की कामना करते हुए इस बात का संकल्प कीजिये- मैं अपने हुनर को पहचानूँगी और स्वावलम्बी बनकर दूसरों के लिए भी प्रेरणास्रोत बनूँगी, मैं खुद एक आत्मनिर्भर लड़की हूँ जोकि घर और ऑफिस दोनों को मैनेज करती हूँ। ना मैं डॉक्टर हूँ, ना मैं वकील और ना ही अध्यापिका ही, पर हाँ मैं शिक्षित हूँ और एक प्राइवेट कंपनी में काम करती हूँ और इस बात से खुश हूं कि मैं आत्मनिर्भर हूँ।

- प्राची थापन

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