कालाष्टमी व्रत से होते हैं सभी कष्ट दूर, जानिए इसका महत्व और पूजा-विधि

Kalashtami

काल भैरव की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी शिव भगवान का वेश धारण उनके गणों को भी साथ लेकर अशिष्ट टिप्पणी की। उसके बाद शिव जी बहुत क्रुद्ध हुए और वहां विशाल प्रचंड काया उत्पन्न हुई जिसने ब्रह्मा जी का संहार के लिए उन्हें दौड़ाया

ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी के रूप में माना जाता है। इसे भैरव जयंती के रूप में भी मनाया जाता है तो आइए हम आपको कालाष्टमी के महत्व तथा पूजा –विधि के बारे में बताते हैं। 

जानें कालभैरव के बारे में 

कालभैरव को शिव का पांचवा अवतार माना गया है। इनके दो रूप है पहला बटुक भैरव जो भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में जाना जाता है। लेकिन काल भैरव का रूप बटुक भैरव से अलग माना जाता है। उन्हें अपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण करने वाले भयंकर दंडनायक के रूप में जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि कालाष्टमी का व्रत रखने वाले व्यक्ति के जीवन से बहुत सी परेशानियां दूर हो जाती है। साथ ही कालाष्टमी के व्रत से जीवन में यश तथा कीर्ति प्राप्त होती है। 

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काल भैरव से जुड़ी कथा 

काल भैरव की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी शिव भगवान का वेश धारण उनके गणों को भी साथ लेकर अशिष्ट टिप्पणी की। उसके बाद शिव जी बहुत क्रुद्ध हुए और वहां विशाल प्रचंड काया उत्पन्न हुई जिसने ब्रह्मा जी का संहार के लिए उन्हें दौड़ाया। उस काया ने अपने नाखून से ब्रह्मा जी के शीर्ष को काट दिय। उसके बाद शिव जी ने उसे काया को शांत किया। यह वीभत्स काया जिस दिन प्रकट हुई उस दिन अष्टमी थी। उस काया का नाम बाद में भैरव पड़ा। भैरव को बाद में काल भैरव तथा बटुक भैरव के नाम से पूजा जाने लगा। ब्रह्मा जी एक शीर्ष काटने के भैरव के ऊपर ब्रह्म हत्या का आरोप लगा। जिसके कारण वह बहुत दिनों तक जंगल में विचरण करते रहे। उसके बाद उन्हें काशी में जाकर मुक्ति मिली। 

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कालाष्टमी पर ऐसे करें पूजा 

कालाष्टमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त हो स्वच्छ हो जाएं। उसके बाद पवित्र मन से कालाष्टमी व्रत का संकल्प लें। पवित्र संकल्प के साथ पितरों का तर्पण करें उसके बाद ही कालभैरव की पूजा करनी चाहिए। कालाष्टमी के दिन व्यक्ति को पूरे दिन व्रत रखना चाहिये व मध्यरात्रि में धूप, दीप, गंध, काले तिल, उड़द और सरसों के तेल से पूजा कर भैरव आरती करनी चाहिये। कालाष्टमी के दिन व्रत के साथ ही रात्रि जागरण का भी खास महत्व होता है। काले कुत्ते को काल भैरव की सवारी माना जाता है इसलिये व्रत खत्म होने पर सबसे पहले कुत्ते को भोग लगाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कुत्ते को भोजन करवाने से भैरव बाबा प्रसन्न होते हैं और भक्त को आर्शीवाद देते हैं।

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कालाष्टमी पर इन कामों से बचें

- कालाष्टमी का दिन बहुत खास होता है इसलिए इस अवसर पर आपके द्वारा किए गए कामों का फल अवश्य मिलता है। इसलिए कालाष्टमी के दिन इन कामों को करने से जरूर बचें।  

- अपने दुश्मनों के नाश के लिए कभी भी कालाष्टमी पर पूजा न करें, यह आपके लिए फायदेमंद नहीं होगा।

- कालभैरव के साथ शिव-पार्वती की पूजा जरूर करें।

- कालाष्टमी के दिन नमक नहीं खाएं, अगर आपको कमजोरी होती हो तो सेंधा नमक खाने में इस्तेमाल कर सकते हैं।

- इस दिन कोशिश करके झूठ नहीं बोले, बल्कि हमेशा सच्चाई का साथ देकर सत्य बोलने का प्रयास करें।

- कालाष्टमी के दिन व्रत रहकर फलाहार करें। 

- बटुक भैरव की ही पूजा करें इससे आपको फायदा मिलेगा।

- कालाष्टमी के दिन ध्यान दे कर माता-पिता और गुरु का अपमान न करें।

- कालाष्टमी के दिन घर में साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखें, गंदगी नहीं करें। 

- प्रज्ञा पाण्डेय

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