पितृपक्ष में नहीं बरतीं ये सावधानियाँ तो उठाना पड़ेगा भारी नुकसान

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पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और तर्पण करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और आशीर्वाद देती है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, पितृपक्ष में कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। कहा जाता है कि यदि इन नियमों का पालन ना किया जाए तो पितृ नाराज हो जाते हैं और इससे जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष से लेकर अमवस्या तक का समय पितृपक्ष कहलाता है। इस साल पितृ पक्ष 20 सितम्बर 2021 से 06 अक्टूबर  2021 तक है। हिन्दू धर्म के अनुसार पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनका श्राद्ध करना बहुत जरूरी माना गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका श्राद्ध किया जाना बहुत जरूरी है। मान्यताओं के अनुसार यदि किसी मृत व्यक्ति का श्राद्ध ना किया जाए तो उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। इसलिए पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध किया जाता बहुत आवश्यक माना गया है। पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और तर्पण करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और आशीर्वाद देती है। इस साल 26 सितंबर को पितृ पक्ष की कोई तिथि नहीं है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, पितृपक्ष में कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। कहा जाता है कि यदि इन नियमों का पालन ना किया जाए तो पितृ नाराज हो जाते हैं और इससे जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि पितृपक्ष में किन नियमों का पालन करना चाहिए-

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श्राद्ध के दौरान खाने में इन चीजों से करें परहेज

श्राद्ध के दौरान खाने में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल न करें बल्कि सात्विक भोजन ग्रहण करें। इसके अलावा मूली, मसूर की दाल, सरसों का साग, लौकी, चना, सत्तू, जीरा, काला नमक और खीरा के इस्तेमाल से भी बचें। मांस–मछली का सेवन भी पितृपक्ष में उचित नहीं है।

ब्राह्मण को करें खुश

पितृपक्ष में श्राद्ध के समय ब्राह्मणों को भी भोजन कराएं और यथाशक्ति दान दें। ब्राह्मणों के भोजन के बाद घर में भी कुछ न खाएं। ब्राह्मणों को खीर या मिठाई जरूर खिलाएं। इसके अलावा ब्राह्मणों को लकड़ी, ऊन या कुशन की आसनी पर ही बैठाएं। ध्यान रखें लोहे के आसन पर ब्राह्मण को बैठाना उचित नहीं है।

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भोजन की थाली के साथ रखें सावधानी

पितृपक्ष के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराते समय थाली को दोनों हाथों से पकड़ें। अगर आप थाली को ढ़ंग से पकड़ते तो भोजन का अंश राक्षस के पास चला जाता है। ऐसे में ब्राह्मणों द्वारा किए गए भोजन को पितृ ग्रहण नहीं करते हैं।

किसी जीव के साथ बुरा बर्ताव न करें

ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान दरवाजे पर आए किसी भी अतिथि को न खाली हाथ न लौटाएं। उन्हें जरूर कुछ दान दें। ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष में पितृ अतिथि के रूप में आते हैं। इसके अलावा दिन में भोजन का कुछ हिस्सा कुत्ता, बिल्ली, कौवा और गाय को देना चाहिए क्योंकि इन जीवों को भोजन कराने से खाना सीधे पितरों के पास जाता है।

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पंचवली करें

पितृपक्ष में पंचवली का विशेष महत्व है। धार्मिक कथाओं के अनुसार पितृपक्ष में श्राद्ध करने के बाद पिंड दान और तर्पण करके पंचवली करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। पंचवली के बिना श्राद्ध को पूर्ण नहीं माना जाता है। गाय को हमेशा पश्चिम दिशा में मुख कराके पत्ते पर देना चाहिए। कुत्ते को भोजन जमीन पर दिया जाता है। कौवे को पृथ्वी पर देवता, मनुष्य, यक्ष आदि को पत्ते पर खाना दिया जाता है। चीटियों और कीड़े, मकोड़े को पत्ते पर भोजन देना चाहिए।

रिश्तों में बनाएं रखें सम्मान 

ब्राह्मणों के भोजन के बाद कुछ खास तरह के संबंधों जैसे दामाद, गुरू, नाती और मामा को सम्मान दें। उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराएं, उनकी प्रसन्नता से आप जीवन भर खुश रहेंगे।

शाम को जलाएं दीपक 

पितृपक्ष के दौरान सभी बातों के साथ इस बात का भी ख्याल रखें कि शाम को घर बाहर दीपक जलाकर रख दें। इससे घर में खुशहाली आती है और पितृ प्रसन्न होते हैं। यही नहीं घर के पास में किसी पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं। ऐसा माना जाता है कि पीपल के पेड़ में देवताओं का वास होता है और दीपक जलाने से पितृ प्रसन्न होते हैं।

- प्रिया मिश्रा

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