कार्तिक पूर्णिमा को जन्मे थे गुरुनानक देवजी, धूमधाम से मनायी जाती है जयंती

guru nanak jayanti
शुभा दुबे । Nov 30 2020 9:20AM

सिख संप्रदाय के प्रवर्तक गुरु नानक देवजी का जन्म संवत 1526 की कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था। नानक सिख धर्म के आदि प्रवर्तक थे। इन्होंने अपने विचार बोलचाल की भाषा में प्रकट किये। हिन्दू मुसलमानों के आपसी भेदों को मिटाकर प्यार से रहने का उपदेश दिया।

गुरु नानक देव जी की जयन्ती कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती है। वैसे तो यह उत्सव पूरे भारत में मनाया जाता है, किंतु सिख बाहुल्य क्षेत्रों में लोग इसे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन देशभर के गुरुद्वारों में विशेष आयोजन किये जाते हैं और पूरा दिन पवित्र वाणियों के उच्चारण से पूरा माहौल भक्तिमय रहता है। कार्तिक पूर्णिमा से कुछ दिन पहले से ही सभी गुरुद्वारों पर अद्भुत रौशनी की जाती है जोकि देखते ही बनती है। इस दिन गुरुद्वारों के पवित्र सरोवरों में डुबकी लगाने की होड़ सभी श्रद्धालुओं के बीच देखने को मिलती है। गुरुद्वारों के आसपास मेला भी लगता है।

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सिख संप्रदाय के प्रवर्तक गुरु नानक देवजी का जन्म संवत 1526 की कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था। नानक सिख धर्म के आदि प्रवर्तक थे। इन्होंने अपने विचार बोलचाल की भाषा में प्रकट किये। हिन्दू मुसलमानों के आपसी भेदों को मिटाकर प्यार से रहने का उपदेश दिया। गुरु नानक का जन्म तलवंडी में हुआ था जो अब ननकाना साहिब के नाम से विख्यात है। तलवंडी पाकिस्तान के लाहौर शहर से लगभग 30 मील दूर दक्षिण पश्चिम में स्थित है। 

गुरु नानक जी का महामंत्र

गुरुजी के विषय में बहुत से किस्से प्रचलित हैं किन्तु एक प्रसिद्ध घटना का विशेष तौर पर उल्लेख किया जाता है जोकि इस प्रकार है- एक बार नानकजी व्यापार के लिए धन लेकर चले, पर उसे साधुओं के भोज में खर्च करके घर लौट आए। इस पर इनके पिता बड़े नाराज हुए। बाद में इनका विवाह सुलक्षणा से हो गया। दो पुत्र भी हुए, पर गृहस्थी में इनका मन नहीं लगा। वह घर त्याग कर देश विदेश घूमने के लिए निकल पड़े। गुरु नानकदेवजी ने देश प्रेम, दया व सेवा का महामंत्र लोगों को दिया। वे सभी धर्मों को आदर की दृष्टि से देखते थे। इनके अनेक शिष्य बन गये। आज के दिन इनकी वाणियों का श्रद्धा से पाठ किया जाता है।

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लंगर प्रथा की शुरुआत

गुरु नानक देवजी ने जात−पात को समाप्त करने और सभी को समान दृष्टि से देखने की दिशा में कदम उठाते हुए 'लंगर' की प्रथा शुरू की थी। लंगर में सब छोटे−बड़े, अमीर−गरीब एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। आज भी गुरुद्वारों में उसी लंगर की व्यवस्था चल रही है, जहां हर समय हर किसी को भोजन उपलब्ध होता है। इस में सेवा और भक्ति का भाव मुख्य होता है। नानक देवजी का जन्मदिन गुरु पूर्व के रूप में मनाया जाता है। तीन दिन पहले से ही प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं। जगह−जगह भक्त लोग पानी और शरबत आदि की व्यवस्था करते हैं।

गुरु नानक जी के दस उपदेश

गुरु नानक जी ने अपने अनुयायियों को दस उपदेश दिए जो कि सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे। उन्होंने कहा कि ईश्वर एक है और सदैव एक ही ईश्वर की उपासना की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि जगत का कर्ता सब जगह मौजूद है और सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता। नानकजी ने उपदेश दिया कि ईमानदारी से मेहनत करके जीवन बिताना चाहिए तथा बुरा कार्य करने के बारे में न तो सोचना चाहिए और न ही किसी को सताना चाहिए। उन्होंने सदा प्रसन्न रहने का उपदेश भी दिया और साथ ही कहा कि मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए। गुरु नानक ने अपने दस मुख्य उपदेशों में कहा है कि सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं। उन्होंने कहा है कि भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ−लालच व संग्रहवृत्ति बुरा कर्म है।

-शुभा दुबे

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