हरियाली तीज पर सोलह श्रृंगार कर शुभ मुहूर्त में ऐसे करें पूजन

hariyali teej 2020
शुभा दुबे । Jul 22 2020 9:02PM

हरियाली तीज 2020 के शुभ मुहूर्त की बात करें तो इस साल तृतीया का वैसे तो आरम्भ 22 जुलाई को शाम 7 बजकर 23 मिनट पर ही हो रहा है लेकिन सूर्योदय के साथ पर्व मनाने की मान्यता के चलते हरियाली तीज 23 जुलाई को मनायी जायेगी।

हरियाली तीज जिसे श्रावणी तीज भी कहा जाता है इस बार 23 जुलाई को पड़ रही है। इस दिन तीज मेलों की रौनक देखते ही बनती है लेकिन कोरोना काल में सबकुछ बदल गया है। त्योहारों की धूम और रौनक गायब हो गयी है। हालाँकि महिलाओं में तीज को लेकर काफी उत्साह है और बाजारों में चाहे चूड़ियों की दुकानें हों, मेकअप की दुकानें हों या फिर मिठाई की, सभी जगह कुछ-कुछ भीड़ दिखने लगी है। वैसे इस बार बाजारों में रौनक पहले से कम इसलिए भी नजर आ रही है क्योंकि अधिकतर लोग अब ई-कॉमर्स कंपनियों के जरिये ऑर्डर देने लगे हैं। लेकिन इस पर्व की बड़ी रौनक महिलाओं के सामूहिक रूप से एकत्रित होकर मेहंदी लगाने, झूले झूलने, चाट-पापड़ी खाने, घेवर खाने-खिलाने और लोकगीतों अथवा फिल्मी गीतों पर नृत्य करने या फिर अपने यहाँ की परम्परा अनुसार पूजन करने से आती है, परन्तु इस बार सोशल डिस्टेंसिंग अनिवार्य होने के चलते सामूहिक रूप से पर्व नहीं मना पाने से इस पर्व की छटा जरूर कुछ कम हुई है।

शुभ मुहूर्त एवं पूजन विधि

हरियाली तीज 2020 के शुभ मुहूर्त की बात करें तो इस साल तृतीया का वैसे तो आरम्भ 22 जुलाई को शाम 7 बजकर 23 मिनट पर ही हो रहा है लेकिन सूर्योदय के साथ पर्व मनाने की मान्यता के चलते हरियाली तीज 23 जुलाई को मनायी जायेगी। 23 जुलाई को तृतीया शाम 5 बजकर 4 मिनट तक है इसीलिए तृतीया समाप्त होने से पहले ही तीज संबंधी पूजन कर लें। इस दिन व्रती महिलाओं को सुबह नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद माँ गौरी की रेशमी वस्‍त्र और गहने से सजावट करें और खुद से माँ की मूर्ति बनाएं जोकि अर्धगोले के आकार की हो। इसे पूजा स्थान पर रखें और पूजन करें। पूजन के समय कथा जरूर सुननी चाहिए। हरियाली तीज के दिन पूरे सोलह श्रृंगार कर आभूषण पहनें और मेहंदी जरूर लगवाएं। पूजन के बाद इस दिन झूला जरूर झूलना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन विवाहित महिलाओं को अपने मायके से आए कपड़े पहनने चाहिए और साथ ही श्रृंगार भी मायके से आई वस्तुओं से ही करना चाहिए।

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महिलाओं को रहता है हरियाली तीज का इंतजार

महिलाएं चाहे किसी भी उम्र की हों सभी को हरियाली तीज/श्रावणी तीज का इंतजार बेसब्री से रहता है क्योंकि इस पर्व के दौरान उनका जीवन एक बार फिर उमंगों से भर जाता है। उत्तर भारत में इस पर्व की विशेष छटा देखने को मिलती है। राजस्थान और पंजाब में तो यह त्योहार बड़े ही धूमधाम से पारम्परिक अंदाज में मनाया जाता है वहीं दिल्ली तथा एनसीआर में बाजार इस त्योहार पर काफी हद तक हावी हो चुका है।

झूलों और मेहंदी का विशेष महत्व

इस पर्व के आने से पहले ही घर−घर में झूले पड़ जाते हैं। नारियों के समूह गीत गाते हुए झूला झूलते दिखाई देते हैं। इस दिन बेटियों को बढ़िया पकवान, गुजिया, घेवर, फैनी आदि सिंधारा के रूप में भेजा जाता है। इस दिन सुहागिनें बायना छूकर सास को देती हैं। हरियाली तीज पर मेंहदी लगाने का विशेष महत्व है। स्त्रियां हाथों पर मेंहदी से भिन्न−भिन्न प्रकार के बेल बूटे बनाती हैं और पैरों में आलता भी लगाती हैं जो सुहाग का चिन्ह माना जाता है।

कुंवारी लड़कियां इसलिए रखती हैं व्रत

हरियाली तीज भारतीय परम्परा में पति-पत्नी के प्रेम को और प्रगाढ़ बनाने तथा आपस में श्रद्धा और विश्वास पैदा करने का त्योहार है। इस दिन कुंवारी लड़कियां व्रत रखकर अपने लिए शिव जैसे वर की कामना करती हैं। विवाहित महिलाएं अपने सुहाग को भगवान शिव तथा पार्वती से अक्षुण्ण बनाए रखने की कामना करती हैं। इस तीज पर निम्न बातों को त्यागने का विधान है− पति से छल कपट, झूठ बोलना एवं दुर्व्यवहार तथा परनिन्दा। कहते हैं कि इस दिन गौरी विरहाग्नि में तपकर शिव से मिली थीं।

राजस्थान की बात है निराली

इस दिन राजस्थान में राजपूत लाल रंग के कपड़े पहनते हैं। माता पार्वती की सवारी निकाली जाती है। राजा सूरजमल के शासन काल में इस दिन कुछ पठान कुछ महिलाओं का अपहरण करके ले गये थे, जिन्हें राजा सूरजमल ने छुड़वाकर अपना बलिदान दिया था। उसी दिन से यहां मल्लयुद्ध का रिवाज शुरू हो गया।

इस पर्व को बुन्देलखंड में हरियाली तीज के नाम से व्रतोत्सव के रूप में मनाते हैं तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाने की परम्परा है। राजस्थान के लोगों के लिए त्योहार जीवन का सार है खासकर राजधानी जयपुर में इसकी अलग ही छटा देखने को मिलती है। यदि इस दिन वर्षा हो, तो इस पर्व का आनंद और बढ़ जाता है। राजस्थान सहित उत्तर भारत में नवविवाहिता युवतियों को सावन में ससुराल से मायके बुला लेने की परम्परा है। सभी विवाहिताएँ इस दिन विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं। सायंकाल को सज संवरकर सरोवर के किनारे उत्सव मनाती हैं और कजली गीत गाते हुए झूला झूलती हैं।

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बताया जाता है कि जयपुर के राजाओं के समय में पार्वती जी की प्रतिमा, जिसे 'तीज माता' कहते हैं, को एक जुलूस उत्सव में दो दिन तक ले जाया जाता था। उत्सव से पहले प्रतिमा का पुनः रंगरोगन किया जाता है और नए परिधान तथा आभूषण पहनाए जाते हैं इसके बाद प्रतिमा को जुलूस में शामिल होने के लिए लाया जाता है। हजारों लोग इस दौरान माता के दर्शनों के लिए उमड़ पड़ते हैं। शुभ मुहूर्त में जुलूस निकाला जाता है। सुसज्जित हाथी और बैलगाड़ियां इस जुलूस की शोभा को बढ़ा देते हैं।

बांके बिहारी के दर्शनों के लिए उमड़ती है भीड़

हरियाली तीज के अवसर पर वृन्दावन के बांके बिहारी सहित अनेक मंदिरों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं जिससे सड़कों पर पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है, इसलिए शहर में चार पहिया वाहनों को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया जाता है। यही वह दिन होता है जब बांके बिहारी के दर्शन संभव हो पाते हैं।

पौराणिक महत्व

शिव पुराण में उल्लेख मिलता है कि इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। इसलिए आदिकाल से ही कन्याएं अच्छे वर की मनोकामना पूरी करने के लिए और सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए इस दिन व्रत रखती हैं और पूरे विधि-विधान से पूजन के उपरांत कथा सुनती हैं और अपनी सखियों सहित पर्व का आनन्द लेती हैं।

-शुभा दुबे

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