अखण्ड सौभाग्य तथा संतान सुख के लिए सुहागिन महिला अवश्य करें मंगला गौरी व्रत

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कमल सिंघी । Aug 6 2019 12:43PM

श्रावण माह भगवान भोलेनाथ का प्रिय माह हैं और इस माह में भगवान शिव के साथ ही उनके परिवार की भी पूजा अर्चना करनी चाहिए। मंगला गौरी व्रत सुहागिन महिलाओं को अवश्य करना चाहिए। यह व्रत करने से अखण्ड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं। साथ ही पति की लंबी उम्र और संतान के सुखमय जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं।

श्रावण माह में जिस तरह सोमवार का महत्व होता हैं उसी तरह मंगलवार का भी बहुत महत्व हैं। जिस प्रकार से श्रावण सोमवार को भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की जाती हैं। ठीक उसी प्रकार मंगलवार को गौरी मैया यानि की भगवान शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती की पूजा की जाती हैं। जिसे मंगला गौरी व्रत कहा जाता हैं। यह मंगला गौरी व्रत सुहागिन महिलाओं के द्वारा अखण्ड सौभागय तथा सन्तान सुख के लिए किया जाता हैं। व्रत करने वाली महिलाए माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर उन्हें प्रसन्न करती हैं। माता पार्वती व्रत करने वाली महिलाओं को सुख प्राप्ति का आशीर्वाद भी प्रदान करती हैं। आज हम आपको मंगला गौरी व्रत का इतिहास, महत्व और पूजन विधि के बारे में बताएंगे

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मंगला गौरी व्रत का महत्व-

श्रावण माह भगवान भोलेनाथ का प्रिय माह हैं और इस माह में भगवान शिव के साथ ही उनके परिवार की भी पूजा अर्चना करनी चाहिए। मंगला गौरी व्रत सुहागिन महिलाओं को अवश्य करना चाहिए। यह व्रत करने से अखण्ड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं। साथ ही पति की लंबी उम्र और संतान के सुखमय जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं। अगर आपके दाम्पत्य जीवन में कोई समस्या आ रही है तो आप यह व्रत अवश्य करें। क्योकि माता पार्वती इसका आशीर्वाद प्रदान करती हैं। अगर श्रावण माह में चार सोमवार और चार मंगवालर आता हैं तो सुहागिन महिलाओं को अवश्य ही यह व्रत करना चाहिए। क्योंकि इस व्रत के फल से शिवजी और माता पार्वती की तरह पति-पत्नी में प्रेम बना रहता हैं। कुवारी कन्या मन चाहे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत कर सकती है। 

मंगला गौरी व्रत का इतिहास-

मंगला गौरी व्रत से माता पार्वती का आशीर्वाद सुहागिन महिलाओं को विशेष रूप से प्राप्त होता हैं। पौराणिक कथाओं में बताया जाता हैं कि एक देश के राजा को सन्तान प्राप्ति नही हो रही थी। राजा-रानी ने भगवान शिव की तपस्या की और शिवजी को प्रसन्न किया। शिवजी ने राजा को वरदान दिया की तुम्हारे यहाँ पुत्र होगा लेकिन उसकी आयु मात्र 16 वर्ष तक ही रहेगी। शिवजी के आशीर्वाद से राजा-रानी के यहाँ पुत्र हुआ। जैसे-जैसे पुत्र बड़ा होता जा रहा था वैसे ही राजा और रानी को इस बात का दुःख हो रहा था कि उनका पुत्र 16 वर्ष की आयु में मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। एक दिन राजा ने यह बात अपने राज्य के पंडित और विद्वानो को बताई तो राजा को एक विद्वान ने बताया कि राजा उनके पुत्र का विवाह ऐसी युवती से कर दें जो माता पार्वती की भक्त हो। राजा ने वैसा ही किया और अपने पुत्र का विवाह कर उसकी पत्नी को सारी बात बताई। राजा की पुत्र वधु ने माता पार्वती से प्रार्थना की तो माता पार्वती ने उन्हें मंगला गौरी व्रत श्रावण माह के हर मंगलवार के दिन करने को कहा। राजा की पुत्र वधु ने मंगला गौरी व्रत किया और माता पार्वती की कृपा से राजा का पुत्र 16 वर्ष बाद भी जीवित रहा। जिसके बाद से श्रावण माह के हर मंगवालर को राजा की पुत्र वधु द्वारा मंगला गौरी व्रत करना प्रारंभ कर दिया। जिसके बाद से ही सुहागिन महिलाओं द्वारा व्रत करना प्रारंभ किया।

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मंगला गौरी व्रत पूजन विधि-

मंगला गौरी व्रत हर सुहागिन महिला को करना ही चाहिए। हम इस व्रत की पूजन विधि बता रहें हैं। मंगला गौरी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्म के बाद स्नान कर साफ वस्त्र पहन लें। जिसके बाद पूजन स्थान को स्वच्छ कर मंगला गौरी माता यानि की पार्वतीजी की तस्वीर को लाल रंग के कपड़े पर स्थापित कर दें। जिसके बाद आटे से दीपक बनाकर उसे माता के सामने प्रज्वलित करें और माता का पूजन करें। फिर मंगला गौरी माता को सुहाग की सामग्री के साथ मिठाई, फूल आदि चढ़ा दें। याद रखे की यह सामग्री 16 की संख्या में ही चढ़ायें। जिसके बाद पार्वती माता की आरती करें और अपनी मनोकामना के साथ उन्हें प्रणाम कर आशीर्वाद मांगे। व्रत के दिन उपवास करें और केवल एक समय ही अन्न ग्रहण करें।

- कमल सिंघी

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