Gyan Ganga: हिमाचल वासियों ने भगवान शिव की बारात का कैसे किया स्वागत?

निःसंदेह उन बच्चों ने जो प्रतिक्रिया दी, वह तो बड़े-बड़े वृद्ध अथवा मुनि भी नहीं दे पाते हैं। कारण कि देवी पार्वती तो जगत जननी हैं। उन्हें कोई पुत्री के रुप में भला कैसे देख सकता है? वे किसी युवा सखी की सखी भी नहीं हो सकती।
भगवान शंकर की पावन बारात हिमाचल के महलों की ओर बढ़ रही डगर पर थी। क्या बच्चा, क्या युवा और क्या वृद्ध! सभी बारात के आने की सूचना से आनंद के दूसरे छौर पर पहुँच गए थे। ऐसा उत्साह व चाव उन्होंने पहले कभी महसूस नहीं किया था, जैसा आज कर रहे थे। ऐसा होना स्वाभाविक भी था, और थोड़ा विचित्र भी। क्योंकि वृद्ध जनों के पास तो यह तर्क था, कि देवी पार्वती जी उनकी पुत्री के समान हैं। अब जमाई राजा का चाव हम नहीं करेंगे, तो भला और कौन करेगा? युवाओं को देवी पार्वती जी पराई कभी लगी ही नहीं थी। क्योंकि वे उनकी आयु संगिनी जो थी। किंतु बच्चों को आखिर कौन सी मस्ती थी? क्योंकि देवी पार्वती जी न तो उन बच्चों की संगिनी थी, और न ही वृद्ध जनों की भाँति उनकी पुत्री के समान थी। उन बच्चों से किसी ने पूछ ही लिया, कि बच्चों तुम्हें भला देवी पार्वती जी के विवाह का इतना चाव क्यों है? क्या तुम बच्चों को सुंदर पकवान मिलने का चाव है कया?
तब पता है, बच्चों ने क्या उत्तर दिया? वे बोले-लो करलो बात! आज हम प्रसन्न नहीं होंगे तो कौन होगा? अरे भई! हम बच्चों की माता का विवाह होने जा रहा है, और साथ में हमारे नित्य स्वरुप पिता का भी हमें दर्शन होने जा रहा है। तो हमारी प्रसन्नता का पारावार भला कैसे हो सकता है।
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निःसंदेह उन बच्चों ने जो प्रतिक्रिया दी, वह तो बड़े-बड़े वृद्ध अथवा मुनि भी नहीं दे पाते हैं। कारण कि देवी पार्वती तो जगत जननी हैं। उन्हें कोई पुत्री के रुप में भला कैसे देख सकता है? वे किसी युवा सखी की सखी भी नहीं हो सकती। क्योंकि मित्र भाव तो उनमें होता है, जिनमें सर्वप्रथम तो विचारों की समानता हो जाये। और दूसरी उनकी आयु में भिन्नता न हो। किंतु संसार में क्या कोई भी ऐसा है, जो कहे कि मेरे विचार और जगदंबा माता के विचारों में केई भिन्नता ही नहीं। हम दोनों एक जैसा ही सोचते हैं। ऐसा संसार में कोई भी नहीं है। क्योंकि हम संसारिक जीव, माया के बँधनों में बँधे इस लौकिक जगत में आते हैं। हमें स्वार्थ सिद्धि के सिवा कुछ और सूझता ही नहीं। त्याग की कहीं कोई भावना नहीं होती। परमार्थ क्या होता है, इससे हम कोसों दूर हैं। फिर भला हमारे विचार माँ जगदम्बा से भला कैसे मेल खा जायेंगे?
दूसरा यह कि देवी पार्वती जी की आयु के हम हों, तो सखी या सखा होना संभव है। किंतु यह भी किसी भी प्रकार से संभव नहीं है। क्योंक देवी पार्वती जी ठहरी आदि शक्ति जगदम्बा जी। अब जो हों ही आदि शक्ति जगदम्बा जी, तो उनकी आयु को कोई माप सकता है भला? जब इस सृष्टि का उदय भी नहीं हुआ थी, वे तो तब भी थी। जब संपूर्ण सृष्टि का निर्माण ही उन्होंने किया है, तो वे भला हमारी आयु की कैसे हो जायेंगी? क्योंकि हमारी तो आयु ही सत्तर, अस्सी या नब्बे वर्ष होगी।
इसलिए सबसे स्टीक उत्तर बच्चों ने दिया, कि आज हमारी माँ की शादी है। निःसंदेह देवी पार्वती को उन नन्हें मुन्ने बच्चों ने ही पहचाना था। क्योंकि देवी पार्वती जी ही तो, साक्षात माँ जगदम्बा जी हैं न। किंतु कुछ भी हो प्रसन्न सब ही थे। तो आईये हम भी प्रसन्न हो लेते हैं, और भोलेबाबा की बारात का स्वागत करते हैं।
क्रमशः
- सुखी भारती
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