मूर्ति स्थापित न करके एक पत्थर को लोग क्यों पूजते हैं शनिदेव के स्थान पर?

Shani Shingnapur Temple

महीने के चारों शनिवार और अमावस्या के दिन यहां सुबह से ही भक्तों का जमावड़ा लगा होता है। शनिदेव महाराज के दर्शन के समय मंदिर में जाते समय सामने की तरह ही देखें, पीछे मुड़ने पर मनाही है तथा मंदिर के अंदर केवल पुरुषों का जाना ही अनिवार्य है महिलाएं बाहर से ही पूजा पाठ करती है।

एक ऐसा शहर जहां लोगो के घरों में कभी ताला नही लगाया गया, हर समय वहां लोगो ने खुद को सुरक्षित महसूस किया। आज हम बात कर रहे है मुम्बई के अहमदनगर ज़िला में स्थित प्राचीन शनि मंदिर "शनि शिंगणापुर" की। माना जाता है कि शिंगणापुर गांव में कभी भी एक सामान तक की चोरी नहीं हुई, शनि महाराज की यहां अपार कृपा है जो सालों से इस गांव के लोगों पर बरस रही है। मनुष्य के जीवन में दुःखों की समस्या हर समय रहती है, यदि अगर आपने एक बार भी इस प्राचीन मंदिर में शनि महाराज के दर्शन पा लिए तो जीवन मे तमाम उलझनों से आपको मुक्ति मिल जाएगी।

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पुरानी मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि तकरीबन 300 साल पहले इस गांव में भयंकर बाढ़ आई, तेज़ बारिश से पेड़-पौधे तक टूट गए, जब तबाही रुकी तब लोग अपने घरों से बाहर निकले ख़ौफ़नाक मंज़र देखने। उन्ही में से एक व्यक्ति गांव से थोड़ा आगे तक आ गया, तभी उसने रास्ते के बीचों-बीच एक अजब तरह का पत्थर देखा। विशाल आकृति का वो पत्थर मानों कभी ऐसी मूरत ही ना देखी हो। कुछ देर आसपास देखने के बाद उस व्यक्ति के दिल मे लालच आया इस पत्थर के प्रति, तब उसने उस पत्थर पर कील-हथौड़े से वार किया, हथौड़े के पहले ही वार से उस पत्थर में से खून निकलने लगा, यह देख के वह व्यक्ति डर गया और वापिस गांव जा के सबको यह आपबीती बताई। गांव के लोग उस विशाल आकृति को देखने गए और ऐसी अजीब तरह का पत्थर देख के सब भयभीत हो गए। उसी रात को गांववासियों में से किसी एक को स्वप्न में शनिदेव के दर्शन हुए, उन्होंने बताया कि जिस विशाल आकृति को देख के तुम सब भयभीत हुए वो मैं ही हूं, मेरी ही छवि है वो, उसको तुम स्थापित करो। बस इतना कहकर शनिदेव अंतरध्यान हो गए। दिन निकलते ही जब उस गांववासी ने सारी बात गांव में बताई तो सब एकजुट होकर विशाल आकृति को लेने पहुंच गए, किंतु कड़ी मशक्कत के बाद भी जब वह पत्थर अपने स्थान से हिला ही नहीं। सब थकहार के वापिस गांव चले गए।

उसी रात फिर शनिदेव जी दुबारा सपने में आए और उन्होंने बताया कि किस प्रकार वह आकृति अपने स्थान से हिलेगी। मामा-भांजे की जोड़ी ये लक्ष्य पूरा कर सकती है। यानी कि उस आकृति को हिलाकर उसको उसके नए स्थान पर लगाने के लिए मामा-भांजे की जोड़ी का होना आवयश्क है उनके ही माध्यम से मेरी छवि एक नई जगह स्थान स्थापित करेगी। शिंगणापुर गांव की सुबह होते ही उस गांववासी ने सारी क्रियाएं बाकियों के सामने रखी, तब मामा-भांजे की जोड़ी मिल कर कार्य करने में सफल हुए।

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शिंगणापुर गांव में पड़ने वाली सूर्य की पहली किरण के स्थान पर उस आकृति को प्राण-प्रतिष्ठा के साथ स्थापित किया गया। तब शनिदेव जी ने सबको आशीर्वाद दिया और वरदान दिया कि इस गांव की रक्षा अब मेरे हेतु मेरे द्वारा की जाएगी उसके पश्चात ही सभी शिंगणापुर वासियों ने यह प्रण लिया कि आज से किसी के भी घर मे मुख्य दरवाज़ा नहीं होगा क्योंकि अब हमारे लिए हमारे साथ शनिदेव का आशीर्वाद है। देश-विदेश से कितने ही भक्त शनि महाराज के दर्शन करने आते है महीने के चारों शनिवार और अमावस्या के दिन यहां सुबह से ही भक्तों का जमावड़ा लगा होता है। इस मंदिर के प्रावधान में यह भी कहा गया है कि शनिदेव महाराज के दर्शन के समय मंदिर में जाते समय सामने की तरह ही देखें, पीछे मुड़ने पर मनाही है तथा मंदिर के अंदर केवल पुरुषों का जाना ही अनिवार्य है महिलाएं बाहर से ही पूजा पाठ करती है। श्रद्धालु शनिदेव की छवि पर तेल चढ़ाते है और उनका आशीर्वाद पाते है। सच्चे मन से गए हुए श्रद्धालुओं के जीवन के सारे कष्ट खत्म हो जाते है और जो पहली बार उनके दर्शन करने जाता है वो ये सब देख के ही शनिदेव में मग्न हो जाता है।

- प्रकृति चौधरी

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