जानिये राजस्थान की कुलदेवियों और लोकदेवियों के बारे में

राजस्थान में शक्ति पूजा की परम्परा प्राचीन समय से ही देखने को मिलती है। रंगमहल (हनुमानगढ़) में पकी हुई मिट्टी की देवी प्रतिमाएं अति प्राचीन परम्परा को पुष्ट करती हैं।

राजस्थान का इतिहास वीरता, शौर्य और पराक्रम का इतिहास रहा है। वीर चरित्र को प्रेरणा देने वाली शक्ति की आराधना राजस्थानी संस्कृति का हिस्सा रही है। यहां शक्ति पूजा की परम्परा प्राचीन समय से ही देखने को मिलती है। रंगमहल (हनुमानगढ़) में पकी हुई मिट्टी की देवी प्रतिमाएं अति प्राचीन परम्परा को पुष्ट करती हैं। टोंक जिले के उनियारा के निकट महिषमर्दिनी की एक प्रतिमा मिली है, जिसे प्रथम शताब्दी ईस्वीं के लगभग का माना गया है। ये कतिपय उदाहरण राजस्थान में प्राचीन समय से ही शक्ति की उपासना की ओर संकेत करते हैं।

राजस्थान में पूर्व-मध्य काल में शक्ति पूजा के प्रमाण स्पष्ट रूप से देखने को मिलते हैं। ढूंढाड़ में 8वीं, 9वीं शताब्दी की दुर्गा, महिषमर्दिनी तथा गजलक्ष्मी की भव्य प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं, जो शक्ति पूजा की जीवंत परम्परा का प्रमाण है। आभानेरी (दौसा) से प्राप्त आठवीं शताब्दी के हर्षत माता के मंदिर के बारे में इतिहासकारों का मानना है कि यह दुर्गा का मंदिर था।

सांभर के चौहान शासकों की शाकम्भरी माता आराध्य देवी थीं तथा जोबनेरी की ज्वाला माता आज भी शक्ति परम्परा की परिचायक हैं। ढूंढाड़ के कछवाहा राजवंश की आराध्य देवी जमवाय माता (अधिष्ठान जमवा रामगढ़) तथा आमेर के प्रतापी राजा मानसिंह प्रथम द्वारा आमेर में प्रतिष्ठापित शिला देवी भी राजकुल देवियों में प्रतिष्ठित स्थान बनाए हुए हैं।

जयपुर के निकट जय भवानीपुर का 'नकटी माता' का मंदिर, जो प्रतिहार काल में बना है, अपनी विशिष्ट शैली के लिए प्रसिद्ध है। शेखावाटी में जीणमाता तथा सिकराय माता के प्राचीन मंदिर हैं। मारवाड़ में भी शक्ति पूजा की लोकप्रियता के प्रमाण हैं। ओसियां (जोधपुर), जो प्रतिहार कला का प्रमुख केन्द्र रहा, वहां का सच्चियां माता का मंदिर महिषमर्दिनी की सजीव प्रतिमा के लिए विख्यात है। इस प्रतिमा में देवी की संहारक शक्ति की प्रभावी अभिव्यक्ति नजर आती है। नागौर जिले में परबतसर के निकट किणसरिया गांव में पर्वत शिखर पर बना कैवाय माता का मंदिर भी प्राचीन है।

कोटा से 22 किमी दूर डाढ़देवी और बून्दी जिले में पहाड़ी पर बना इन्द्रगढ़ की बीजासन माताजी हाड़ौती की प्रतिष्ठित लोक देवी मानी जाती हैं। फलौदी (जोधपुर) में अष्टभुजा वाली फलवद्रविका देवी की प्रतिमा, मेड़ता का चारभुजा मंदिर, नीमाज की मरकण्डी माता, गौड़-मंगलोद की दधिमाता, जालौर और जोधपुर के किलों में बने चामुण्डा माता के मंदिर, बाली का प्राचीन माताजी का मंदिर मारवाड़ में शक्ति पूजा का परिचायक है।

मेवाड़ में उदयपुर से 52 किमी दूर स्थित जगत का अम्बिका मंदिर उल्लेखनीय है। इसमें महिष (भैंसा) रूपधारी राक्षस का सिर कटा हुआ, महिषमर्दिनी दुर्गा के चरणों में पड़ा हुआ है। चित्तौड़ दुर्ग की कालिका माता तथा खमनोर (राजसमंद) की चारभुजा देवी प्रसिद्ध हैं।

जांगाल प्रदेश (बीकानेर) में राठौड़ों की कुलदेवी नागणेची तथा करणी माता की लोकप्रियता विख्यात है। यहां नागणेची की अठारह भुजाओं वाली प्रतिमा बीकानेर के संस्थापक राव बीका ने स्थापित करवाई थी। निरंतर युद्धों और संघर्षों के उस काल में शक्ति की उपासना महत्वपूर्ण हो गई। यही कारण है कि राजपूताना के प्रत्येक राजवंश ने अपनी-अपनी कुलदेवी को प्रतिष्ठित किया। राजवंश की कुलदेवियों में चौहानों की ईष्ट देवी आशापुरी, कछवाहों की जमवाय माता और शिला देवी तथा करौली के यादव वंश की आराध्य कैला देवी उल्लेखनीय रही हैं।

हाड़ौती क्षेत्र में सुमेरगंजमंडी व इन्द्रगढ़ में बीजासन माता, लाडपुरा में डाढ़देवी, डोबड़ा (बून्दी) में चामुण्डा माता, बून्दी में करणी माता, चमावली (लाखेरी) में चमावली माता, सोरसन (बारां) में ब्रह्माणी माता, कोटा में बसंती, शिवभवानी, लालबाई, काली कंकाली, नानादेवी, अम्बा, भदाना, बीजासन माता, बून्दी में चौथमाता, कनवास में दूधियाखेड़ी माता तथा कैथून में संतोषी माता प्रमुख लोकदेवियां हैं।

जयपुर क्षेत्र में आमेर में शिला देवी, चाकसू में शीतला माता, चौथ का बरवाड़ा में चौथमाता, करौली में कैला देवी, खेरड़ी माता, केरणपुर माता तथा जयपुर में छींक माता प्रमुख लोकदेवियां हैं।

जोधपुर क्षेत्र में बिलाड़ा में आई माता एवं सती बालाजी, ओसियां में सच्चिया देवी, ओसियां माता, पाली में पूनागर अम्बाजी, सोजत सिटी में चामुण्डा माता, भीनमाल में सूण्डा देवी, फलौदी में लटियाल भवानी, मेड़ता सिटी में बरवासन माता, खुदड़ (नागौर) में इन्द्रबाई, जोधपुर में ऊंटा माता एवं दधिमति, मेड़ता रोड में पाण्डवराय, गोठ मंगलोद (जायल, नागौर) में दधिमति माता, सांभर में शकम्भरी तथा भंवाल (मेड़ता रोड) में भंवाल देवी लोकप्रिय हैं।

जैसलमेर क्षेत्र में जैसलमेर में आवड़ माता, जानरा गांव में मालण माता, घंटियाल में घंटियाल देवी, तनोट में तनोटिया देवी, पोलजी की डेरी में जोगमाया, भू-जैसलमेर में तेमड़ेराय देवी, रासला गांव में देगराय देवी, धोलिया में नभडूंगरराय, कणोद में कालाडूंगरराय, धोलिया गांव में भदरियाराय, गजस्वरूप सागर में स्वांगनी देवी, लोद्रवा में हिंगलाज देवी तथा सिरवा गांव में साहणी देवी प्रमुख लोकदेवियां हैं।

बीकानेर शेखावाटी क्षेत्र में देशनोक में करणी माता, बीकानेर में नागणीची माता, काल में कालिका जी, चूरू में मनसा देवी एवं काली माता, हनुमानगढ़ में भद्रकाली एवं शिला माता, सकराय में सकराय माता, गंगियासर में राय माता, सीकर में जीणमाता, झुंझुनूं में राणी सती एवं मनसा माता, कोलायत में परमेश्वरी देवी तथा मोरखाणा गांव में सुसाणी माता लोकप्रिय देवियां हैं।

उदयपुर क्षेत्र के उदयपुर में अम्बा माता, बेदला माता, नाराणी माता, नीमच माता, संतोषी माता, अन्नपूर्णा देवी, गोगुन्दा में चामुण्डा माता, राजसमंद में घेवर माता, गामेड़ी गांव में जयसमंद इया माता, सनवाड़ में हिचकी माता, वल्लभनगर में ऊंठला माता, भिण्डर में वरेकण माता, कानोड़ में हुल्ला माता, निकुंभ चित्तौड़ में आबरी माता, डूंगला में एवरा माता, छोटी सादड़ी में भंवर माता, बड़ी सादड़ी में सीता माता, चित्तौड़ में लाल बाई फूल बाई, राशमी में मरमी माता, पाण्डोली में झांतरा माता, बम्बोरा में ईदाणी माता, डबोक में धूणी माता, कूण में नारसिंगी माता, अकोला में बड़ली माता, चित्तौड़ में कालका माता, भीलवाड़ा में जोगणिया माता, बांसवाड़ा में अम्बा माता, कालका माता, लोहारिया में सोम माता, तलवाड़ा में त्रिपुरा सुन्दरी, आसपुर में आसपुरी माता एवं बीजवा माता, आबू पर्वत में अर्बुदा देवी, पिण्डवाड़ा में सरस्वती माता, सिरोही में मातर माता, बामनवाड़ा में अरणा अम्बाजी, नेगड़िया नाथद्वारा में नागणेची माता, दातेसर गांव उदयपुर में जगत माता, खोडन में सोण माता, घरनाल में पादरी माता, समीजा उदयपुर में जैला माता, भीलों का बेदला में खेड़ा देवी, रातीरेता में हंगेर माता, महाराज की खेड़ी में खेड़ा खूंट माता एवं धूणी माता, बिछाबेड़ा उदयपुर में पाण्डु माता, ढीकली में बारया देवी, सेमलिया पण्डिया में धारखूण माता, बसेड़ा में ढाबेश्वरी माता एवं खेड़ी माता, डोजा में भेड़ माता, उमराई बांसवाड़ा में तरताई माता, थूरगांव में मोहरा माता, रायपुर में वाडिया माता, मंदेसर में आमली माता, पारोली में गढ़गंवला माता, झरनी में फूला माता, उपली ओडन में कछबाई माता, कनेरा में बसंती माता, केलवा में केवला माता, कुंभलगढ़ में आजम माता, आमेसर आसीन्द में बंकेरानी, बदनोर में विराट माता, धनोप में धनोप माता, जहाजपुर में घाटारानी, बनेड़ा में छापरवाला देवता (कालिका माता), हमीरगढ़ में बंकेरानी की छोटी बहिन तथा गोगुन्दा तहसील में रूपण माता आदि पूजनीय हैं।

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

लेखक एवं पत्रकार

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