भगवान शंकर के प्रमुख मंदिरों में शुमार है मणि महेश मंदिर

शुभा दुबे । Jan 23 2017 3:48PM

भरमौर से जब मणि महेश की यात्रा पर श्रद्धालु निकलते हैं तो पूरा यात्रा मार्ग प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर होने के कारण वह प्रसन्न हो जाते हैं। चार-पांच घंटे की इस यात्रा में बच्चों को ले जाना थोड़ा मुश्किल होता है।

देश भर में स्थित भगवान शंकर के प्रमुख मंदिरों में शुमार है हिमाचल प्रदेश का मणि महेश मंदिर। भोले नाथ के दर्शनों के लिए हमेशा कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। चाहे फिर वह अमरनाथ यात्रा हो, कैलाश मानसरोवर यात्रा हो या फिर मणि महेश यात्रा। मणि महेश यात्रा पर जाने का मौका श्रद्धालुओं को जुलाई-अगस्त के दौरान ही मिल पाता है क्योंकि तब यहां का मौसम कमोबेश ठीक रहता है। इन दिनों में यहां मेले का भी आयोजन किया जाता है जोकि जन्माष्टमी के दिन समाप्त होता है। 15 दिनों तक चलने वाले मेले के दौरान प्रशासन की ओर से सभी प्रकार के प्रबंध किये जाते हैं।

हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के पूर्वी भाग में भरमौर नामक तहसील है। इस क्षेत्र में कैलाश शिखर समुद्र तल से लगभग 19 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां 15000 फुट की ऊंचाई पर मौजूद झील को पौराणिक कथाओं में भ्रगवान शिव का क्रीडा स्थल माना गया है। जन्माष्टमी पर यहां लगने वाले मेले में हिमाचल सहित देश के कोने कोने से श्रद्धालु आते हैं। यात्रा चंबा के लक्ष्मी नारायण मंदिर से शुरू होती है। यहां से भोले की चांदी की छड़ी को लेकर यह यात्रा शुरू होती है और राख, खड़ामुख आदि क्षेत्रों से गुजरते हुए भरमौर पहुंचती है। भरमौर में छड़ी का पूजन किया जाता है और फिर यह हरसर और धांचू होते हुए राधा अष्टमी के दिन मणि महेश पहुंचती है। भरमौर में ही चौरासी स्थल नामक मंदिर समूह है जहां भगवान मणि महेश का मंदिर है। चौरासी मंदिर का नाम इसके परिसर में स्थित 84 छोटे-छोटे मंदिरों के आधार पर रखा गया है।

भरमौर से जब मणि महेश की यात्रा पर श्रद्धालु निकलते हैं तो पूरा यात्रा मार्ग प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर होने के कारण वह प्रसन्न हो जाते हैं। चार-पांच घंटे की इस यात्रा में बच्चों को ले जाना थोड़ा मुश्किल होता है। इस यात्रा के दौरान पड़ने वाले धांचू क्षेत्र में मौजूद विशाल जलप्रपात के बारे में एक पौराणिक कथा सुनायी जाती है। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव जी भस्मासुर से बचते हुए इसी प्रपात की कंदराओं के पीछे आ कर छिप गये थे। यह बात जान कर भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर भस्मासुर को भस्म कर दिया। इसके बाद भगवान शिव यहां से निकले।

मणि महेश झील जोकि 15000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है, वह बर्फीली चोटियों से घिरी हुई है। इस झील का नीले रंग का पानी विभिन्न प्रकार के रोगों को दूर करने वाला माना गया है। मणि महेश की यात्रा पर आए श्रद्धालु इस झील में स्नान के बाद ही भगवान की पूजा अर्चना करते हैं। यह भी मान्यता है कि झील की परिक्रमा कर जो मन्नत मांगी जाती है वह अवश्य पूरी होती है। मान्यता है कि राधा अष्टमी के दिन कैलाश पर्वत पर सूर्य देव की पहली किरण जब पड़ती है तो शिखर पर प्राकृतिक रूप से बने शिवलिंग से खूबसुरत आभा निकलती है। यह किरणें जब झील में पड़ती हैं तो इसका पानी अमृत के जैसा हो जाता है। कहते हैं कि इस दौरान इस झील में स्नान से सभी प्रकार के पापों से छुटकारा मिल जाता है।

यहां तक पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे मार्ग पठानकोट है। पठानकोट से चंबा की दूरी 120 किलोमीटर है। पठानकोट से यहां तक आने के लिए बस और टैक्सी सेवाएं आसानी से उपलब्ध हैं। चंबा आने के बाद आगे की यात्रा के लिए आसानी से राजकीय बस और टैक्सी की सेवाएं मिल जाती हैं। किवंदती है कि इस मंदिर की खोज योगी चरपटनाथ ने की थी। योगी चरपटनाथ ने ही इस यात्रा के महत्व के बारे में सभी को बताया जिसके बाद से प्रत्येक वर्ष दो सप्ताह तक चलने वाली यह यात्रा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से लेकर श्रीराधाष्टमी तक आयोजित की जाती है।

शुभा दुबे

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