काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-48
श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित लंकाकांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।
शूपनखा मारीच को, कुछ तो कीजे याद
किसके बाणों से हुए, खर-दूषण बरबाद।
खर-दूषण बरबाद, काल है सिर पर छाया
उसने धर्म विचार बुद्धि-बल सभी मिटाया।
कह ‘प्रशांत’ बेटे जवान दो व्यर्थ गंवाए
पड़े बुद्धि पर पत्थर, कौन तुम्हें समझाए।।31।।
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अंगद था बतला रहा, वहां सभी को हाल
कैसे लंका में किया, उसने बड़ा धमाल।
उसने बड़ा धमाल, राम ने पूछा उससे
चार मुकुट रावण के तुमने फेंके कैसे।
कह ‘प्रशांत’ अंगद बोला है प्रभु की माया
मुकुट नहीं, वे हैं राजा के गुण रघुराया।।32।।
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साम-दान फिर दंड है, ऐसा कहते वेद
फिर इनके ही साथ में, चैथा गुण है भेद।
चैथा गुण है भेद, नीति-धर्म के पाए
पर रावण ने अपने ये गुण व्यर्थ गंवाए।
कह ‘प्रशांत’ इस कारण छोड़ उसे ये चारों
आये पास आपके, रघुनंदन स्वीकारो।।33।।
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लंका नगरी में बड़े, दरवाजे हैं चार
रघुनंदन करने लगे, सबके साथ विचार।
सबके साथ विचार, चार दल प्रमुख बनाए
पूरी सेना को फिर उनके साथ लगाए।
कह ‘प्रशांत’ आज्ञा मिलते ही धावा बोला
लंका में कोहराम मचा, सबका दिल डोला।।34।।
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रावण ने भी सैन्य को, बुलवाया दरबार
बोला जाओ सब तरफ, इनका करो शिकार।
इनका करो शिकार, सभी राक्षस चढ़ धाए
ले करके हथियार, द्वार पर सारे आये।
कह ‘प्रशांत’ थे इधर रामजी के जयकारे
रावण की जय बोल रहे थे राक्षस सारे।।35।।
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योद्धा सारे भिड़ गये, हुए वार पर वार
परकोटों पर चढ़ गये, वानर यूथ अपार।
वानर यूथ अपार, पकड़ कर राक्षस मारे
धक्का नीचे दिया, हुए चटनी बेचारे।
कह ‘प्रशांत’ उल्टे पांवों सारे फिर भागे
गाली देते थे रावण को सभी अभागे।।36।।
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रावण सुन क्रोधित हुआ, खींची निज तलवार
रण में पीठ दिखाएगा, उस पर होगा वार।
उस पर होगा वार, युद्धभूमि में जाओ
जूझ मरो या रिपु को अंतिम नींद सुलाओ।
कह ‘प्रशांत’ सारी सेना लौटी बिन इच्छा
लड़ते-लड़ते मरें, यही है सबसे अच्छा।।37।।
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एक बार फिर भिड़ गये, राक्षस योद्धा वीर
अबकी उनकी मार से, वानर हुए अधीर।
वानर हुए अधीर, जोर से सब चिल्लाए
हैं अंगद-हनुमान कहां, वे सम्मुख आएं।
कह ‘प्रशांत’ थे हनुमत मेघनाद से उलझे
दोनों ही बलवीर बड़े आपस में जूझे।।38।।
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रथ टूटा, सारथि मरा, चिंता की थी बात
छाती पर हनुमान ने, मारी कसके लात।
मारी कसके लात, सारथी दूजा आया
युद्धभूमि से मेघनाद को तुरत हटाया।
कह ‘प्रशांत’ अब बजरंगी चढ़ गये किले पर
ये सुनकर अंगद भी पहुंचे शीघ्र वहां पर।।39।।
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उन दोनों को देखकर, मचा शोर घनघोर
ये दोनों फिर आ गये, क्या होगा अब और।
क्या होगा अब और, कूदकर अंदर आये
कई बड़े सेनापति मारे और गिराये।
कह ‘प्रशांत’ जब सूर्यदेव थे जाने वाले
राम-चरण में पहुंच गये दोनों मतवाले।।40।।
- विजय कुमार
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