विद्या की देवी माँ सरस्वती की आराधना का पर्व है बसंत पंचमी
माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती का जन्म हुआ था। इसीलिए लोग न केवल उनकी आराधना करते हैं बल्कि उत्सव भी मनाते हैं। पहली बार विद्यालय जाने वाले बच्चों को भी कलम−दवात से लिखना सिखाया जाता है।
माघ का महीना लगते ही शरद ऋतु अपना बोरिया बिस्तर बांधने में जुट जाता है। पेड़−पौधे पर नई कोंपलें और कलियां दिखने लगती हैं। सुवासित वातावरण में सभी को इंतजार होता है बसंत पंचमी का। यानी वह दिन जो हिंदू परम्परा के अनुसार मां सरस्वती को समर्पित है। यह दिन होली के आगमन का भी दिन माना जाता है। बसंत पंचमी पर पीले रंग का वस्त्र पहनना विशेष महत्व रखता है। संयोग से मां सरस्वती के वस्त्र का रंग भी यही है।
माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती का जन्म हुआ था। इसीलिए लोग न केवल उनकी आराधना करते हैं बल्कि उत्सव भी मनाते हैं। पहली बार विद्यालय जाने वाले बच्चों को भी कलम−दवात से लिखना सिखाया जाता है। बच्चे मां सरस्वती की पूजा करते हैं क्योंकि वह ज्ञान की विपुल भंडार हैं। विद्या की तो वे देवी हैं। इस अवसर पर स्कूलों और कालेजों में भी उत्सव मनाया जाता है। बड़े शहरों और महानगरों में तो यह दिखता नहीं मगर कस्बों और गांवों में आज भी स्कूलों में बसंत पंचमी मनाई जाती है। गली मुहल्लों में मां सरस्वती की मूर्ति पंडाल में सजा कर उनकी पूजा की जाती है। पंडित मदन मोहन मालवीय ने बसंत पंचमी के दिन ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय की नींव रखी थी, जो आज भी पूरी दुनिया में मशहूर है।
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बसंत पंचमी पर कई लोग गंगा स्नान करते हैं और मां गंगा की पूजा−अर्जना करते हैं। सूर्य भगवान की भी पूजा की जाती है। सूर्य और गंगा के अलावा पृथ्वी की भी आराधना की जाती है। लोगों का मानना है कि जल, जीवन और अन्न देने वाले इन देव−देवियों की पूजा जरूरी है। लोग इनकी पूजा कर भगवान के प्रति कृतज्ञता जताते हैं। पूरी सृष्टि का निर्माण भी तो पृथ्वी सूर्य और जल से हुआ है इसीलिए हिंदुओं में इस दिन तीनों भगवान की पूजा करने की परम्परा है। प्रकृति की पूजा करना हर मनुष्य का कर्तव्य होना चाहिए।
बसंत पंचमी पर एक तरफ जहां लोग धूम−धाम से और उत्साहपूर्वक मां सरस्वती की पूजा करते हैं वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग इस दिन ब्राह्मणों को खाना खिलाते हैं तो कुछ अपने पूर्वजों को तर्पण देते हैं। इस दिन प्रेम के देवता कामदेव की भी पूजा की जाती है। पीली मिठाइयां दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटी जाती हैं।
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मकर संक्रांति के बाद बसंत पंचमी हिंदू रीति−रिवाज के अनुसार काफी महत्व रखती है। इस दिन लोग अपने कुल देवता−कुलदेवी की भी पूजा करते हैं और शक्ति व समृद्धि की कामना करते हैं। मां सरस्वती की पूजा कर छात्र और अन्य लोग बुद्धि और विवेक की कामना करते हैं। कहा जाता है एक बहुत−बड़े साम्राज्य के राजा की जितनी महत्ता होती है उससे ज्यादा महत्ता ज्ञान की होती है। जहां राजा अपने राज्य में पूजा जाता है वहीं ज्ञान की पूजा हर जगह होती है। संत−महात्मा और धर्म का ज्ञान रखने वाले लोग मां सरस्वती की पूजा को महत्वपूर्ण समझते हैं।
मां सरस्वती के वाहन की भी महत्ता है। सफेद हंस सत्व−गुण (शुद्धता और सत्य) का प्रतीक है। मां के पीले वस्त्र शांति और प्रेम का प्रतीक हैं। इसीलिए इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं ताकि उनका जीवन शांत और प्रेमपूर्ण हो। यों तो पीला रंग बसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। बसंत ऋतु फसल पकने का भी संकेत देता है। इस दिन जो भोजन बनता है इसमें भी रंग डालकर पीला किया जाता है। इस दिन से मौसम में बदलाव शुरू हो जाता है। यह दिन आने वाले बसंत ऋतु का आभास कराता है। पेड़ों पर नई टहनियां आने लगती हैं। खेतों में नए अंकुर फूटने लगते हैं। आम के पेड़ नए मंजरों से ढक जाते हैं। गेहूं और दूसरी फसल नए जीवन के आगमन का संकेत देती है।
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यही कारण है कि बसंत पंचमी पूरे देश में उल्लास के साथ मनाई जाती है। यह पर्व धार्मिक, सामाजिक और प्राकृतिक रूप से भी उतना ही महत्व रखता है। लोगों के दिल में इसके प्रति श्रद्धा दिखाई देती है। बसंत पंचमी लोगों के दिलों में नई आशा का संचार करती है।
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