Khatu Shyam Temple: महाभारत के बर्बरीक से श्रीकृष्ण ने क्यों दान में मांगा था शीश, ऐसे बने कलियुग के खाटू श्याम

Khatu Shyam Temple
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हारे का सहारा खाटू श्याम के बारे में तो हम सभी ने सुना होगा। खाटू श्याम को कलियुग का देवता भी कहा जाता है। हालांकि लोगों के मन में यह जरूर उठता है कि इनको हारे का सहारा क्यों कहा जाता है।

हारे का सहारा खाटू श्याम के बारे में तो हम सभी ने सुना होगा। खाटू श्याम को कलियुग का देवता भी कहा जाता है। खाटू श्याम को श्रीकृष्ण का चमत्कारी रूप भी माना जाता है। कहा जाता है कि अगर बाबा के दरबार में भक्त सच्ची मनोकामना के साथ आता है, उसकी हर इच्छा खाटू श्याम जरूर पूरी करता है। हालांकि लोगों के मन में यह जरूर उठता है कि इनको हारे का सहारा क्यों कहा जाता है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको आखिर इसके पीछे की क्या कहानी है।

जानिए कौन हैं खाटू श्याम

पौराणिक कथाओं के मुताबिक खाटू श्याम का असली नाम बर्बरीक है। महाभारत में इनके पिता का नाम घटोत्कच और मां का नाम कामकंटकटा था। कुरुक्षेत्र में जब कौरव और पांडवों के बीच युद्ध चल रहा था, तो बर्बरीक भी मैदान में उतर पड़े थे। ऐसे में बर्बरीक ने यह प्रतिज्ञा ली कि जो भी पक्ष कमजोर होने लगेगा, वह उसका साथ देंगे। इसी वजह से उनको हारे का सहारा कहा जाता है। जब यह बात भगवान श्रीकृष्ण को पता चली, तो उनको यह भी पता था कि बर्बरीक को तीन बाणों से किसी भी लड़ाई को जीतने का आशीर्वाद प्राप्त है।

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श्रीकृष्ण ने ली थी बर्बरीक की परीक्षा

एक बार श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के पास जाकर उनकी परीक्षा ली। तब उन्होंने बर्बरीक से पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को बाण से मारने को बोला। जिस पर बर्बरीक ने एक बाच चलाया और पीपल के पत्तों पर छेद हो गया। लेकिन श्रीकृष्ण ने एक पीपल के पत्ते को अपने पैर के नीचे दबा लिया। तब श्रीकृष्ण से बर्बरीक ने पैर हटाने के लिए कहा, जिससे वह उस पत्ते में भी छेद कर सकें। लेकिन श्रीकृष्ण ने पैर नहीं हटाया, जिस पर बर्बरीक ने ऐसा बाण चलाया कि उस आखिरी पत्ते में भी छेद हो गया और भगवान श्रीकृष्ण के पैर पर भी चोट लग गई। 

मांग लिया था शीश

यह सब देखने के बाद श्रीकृष्ण हैरान रह गए और उनको पांडवों पर संकट दिखने लगा। तब अगले दिन वह बर्बरीक के पास ब्राह्मण के वेश में पहुंचे और उनसे भिक्षा में सिर मांगा। तब बर्बरीक ने ब्राह्मण से असली पहचान बताने के लिए कहा, तो श्रीकृष्ण ने उनको अपना दिव्य रूप दिखाया। भगवान का रूप देखकर बर्बरीक ने उनको सिर का बलिदान दे दिया। लेकिन श्रीकृष्ण ने उनको आशीर्वाद दिया कि वह कलियुग में श्याम के रूप में पहचाने जाएंगे। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादश तिथि में बर्बरीक ने सिर का बलिदान दिया था।

खाटू श्याम मंदिर

बताया जाता है कि बर्बरीक का सिर महाभारत युद्ध के बाद नदी में बहकर राजस्थान के सीकर जिले के खाटू शहर में पहुंच गया था। फिर 1027 ई. में राजा रूप सिंह चौहान और उनकी धर्मपत्नी नर्मदा कंवर को बर्बरीक का सिर मिला। जिस तालाब से बर्बरीक की सिर मिला था, उससे कुछ दूरी पर उन्होंने खाटू श्याम मंदिर का निर्माण कराया।

हालांकि मुगल शासक बादशाह औरंगजेब ने अपने शासनकाल में खाटू श्याम के पुराने मंदिर को तुड़वा दिया था और उस स्थान पर मस्जिद खड़ी कर ली थी। लेकिन औरंगजेब की मृत्यु के बाद 1720 ई में अभय सिंह ने नया खाटू श्याम मंदिर बनवाया। जहां पर आज भी लोग दर्शन के लिए जाते हैं।

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