Gyan Ganga: भगवान शंकर का रूप देखकर हिमाचल वासी क्यों चौंक गये?

युवा लोग तो डर के मारे भाग खडे़ हुए, किंतु तब भी कुछ बड़ी आयु के सयाने जन वहाँ डटे रहे। क्योंकि वे अपने जीवन के अनुभव से यह जानते थे, कि जीवन भर तो भागे ही हैं। यह अलग बात है, कि पहुँचे कहीं नहीं।
भगवान शंकर की बारात जैसे ही हिमाचल वासियों के द्वार पर पधारी, तो सभी हिमाचल वासी पहले तो बड़े प्रसन्न हुए। किंतु उनकी यह प्रसन्नता की आयु लंबी न होकर, क्षणभँगुर ही सिद्ध हुई। क्योंकि जब भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा जी बारात के आरम्भ में सर्वप्रथम प्रवेश पाते हैं, तो सबने सोचा, कि जब बाराती इतने सुंदर हैं, तो दूल्हा कितना सुंदर होगा? किंतु जैसे ही भगवान शंकर ने अपना सुंदर स्वरुप प्रगट किया, तो सभी भयाक्राँत होकर यहाँ-तहाँ भाग खड़े हुए। सबको लगा, कि आज हमारे प्राण बचे तो बचे, अन्यथा हमारा मृत देह के रुप में सजना निश्चित है। चारों ओर अफरा-तफरी मच गई। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-
‘धरि धीरजु तहँ रहे सयाने।
बालक सब लै जीव पराने।।’
अर्थात युवा लोग तो डर के मारे भाग खडे़ हुए, किंतु तब भी कुछ बड़ी आयु के सयाने जन वहाँ डटे रहे। क्योंकि वे अपने जीवन के अनुभव से यह जानते थे, कि जीवन भर तो भागे ही हैं। यह अलग बात है, कि पहुँचे कहीं नहीं। लक्षय पाने की चाह तो थी, किंतु विषय वासनायों के बोझ को उठाकर ही हम प्रभु की प्राप्ति करने की हठ ठाने बैठे थे। जिसका परिणाम यह हुआ, कि जितना हम दौड़े, उतना ही अपने गंतव्य से दूर होते गये। किंतु आज बड़े चिरों के पश्चात यह अवसर आया है, कि हम अपनी जड़ से मिल पायें। इसीलिए आज हमें भागना नहीं है, अपितु टिकना है।
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जो लोग भाग कर अपने घरों को गए थे, वे जाकर हाँफते हुए बताते हैं-
‘कहिअ काह कहि जाइ न बाता।
जम कर धार किधौं बरिआता।।
बरु बौराह बसहँ असवारा।
ब्याल कपाल बिभूषन छारा।।’
क्या कहें, कोई बात नहीं कही जाती। यह बारात है, या यमराज की बारात? दूल्हा पागल है, और बैल पर सवार है। साँप, कपाल और राख ही उसके गहने हैं। दूल्हे के सरीर पर राख लिपटी है। वह नंगा, जटाधारी व भयंकर है। उसके साथ भयानक मुख वाले भूत, प्रेत, पिशाच, योगिनियाँ और राक्षस हैं। जो बारात को देखकर जीता बचेगा, सचमुच उसके बड़े ही पुण्य हैं, और वही पार्वती जी का विवाह देखेगा। लड़कों ने घर-घर जाकर यही बात बताई।
सोचिए! कितने आश्चर्य की बात है? लड़के, जो कि युवावस्था में हैं। जिन्होंने धर्म की ध्वजा को आगे लेकर चलना है। जिन्होंने घर-घर जाकर भक्ति का प्रचार प्रसार करना है। या यूँ कह लीजिए, कि वे ही एक सभ्य समाज की रीढ़ होंगे। वही युवा अपने कँधों पर यह बीड़ा उठाते घर-घर फिर रहे हैं, कि हमारे द्वार पर भगवान की बारात नहीं, अपितु यमराज की बारात आई है। शायद भक्ति मार्ग पर शैतान के वही सबसे बड़े शिकार थे।
जी हाँ! भक्ति मार्ग ऐसा नहीं कि अथाह दैहिक कष्टों पर चलने का ही नाम है। वास्तव में मानसिक संदेहों के कंटीले झाड़ों से बच जाना, यही भक्ति पथ का मुख्य आधार है। हिमाचल के युवा इसी आघात का शिकार हुए। उन्हें भगवान शंकर के प्रति किए जा रहे दुष्प्रचार के कहीं कोई पैसे नहीं मिल रहे थे। किंतु शैतानी मन की वृति ही ऐसी है, कि वह भक्ति पथ के गामियों को, प्रभु के साथ खड़े होने की बजाये, प्रभु के विरुद्ध खड़ा कर देता है। किंतु इतना होने पर भी कुछ लोग तो सयाने हैं, जो निडर खड़े थे। वे संख्या बल में भले ही कम थे, किंतु वे भगवान शंकर के समर्थन में खड़े थे। उन्होंने उन भटके, डरे व अज्ञानजनित भीड़ को समझाया, व भगवान शंकर के प्रति उन्हें सकारात्मक भावों से तर किया। तब अगवान लोग बारात को लिवा लाए, और उन्होंने सबको सुंदर जनवासे ठहरने को दिए। देवी पार्वती जी की माता मैना ने सुंदर आरती सजाई, और स्त्रिया उत्तम मंगलगीत गाने लगीं-
‘लै अगवान बरातहि आए।
दिए सबहि जनवास सुहाए।।
मैनाँ सुभ आरती सँवारी।?
संग सुमंगल गावहिं नारी।।’
क्या मैना जी भी भगवान शंकर की आरती बड़े सुंदर भावों से कर पाती हैं, अथवा वे भी उन्हें देख डर जाती हैं, जानेंगे अगले अंक में।
क्रमशः
- सुखी भारती
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