हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में गुरू शिष्य परंपरा है महत्वपूर्ण: ध्रुव बेदी

Guru Shishya tradition is important in Indian classical music: Dhruv Bedi
[email protected] । Sep 14 2017 11:01AM

उभरते सितार वादक ध्रुव बेदी का कहना है कि संगीत जगत में तकनीकी क्रांति के बावजूद हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में आज भी ‘‘गुरू शिष्य’’ परंपरा कायम है और शास्त्रीय संगीत की शुचिता को बनाए रखने में इस परंपरा ने काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

नयी दिल्ली। उभरते सितार वादक ध्रुव बेदी का कहना है कि संगीत जगत में तकनीकी क्रांति के बावजूद हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में आज भी ‘‘गुरू शिष्य’’ परंपरा कायम है और शास्त्रीय संगीत की शुचिता को बनाए रखने में इस परंपरा ने काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम समेत विश्व की कई जानी मानी हस्तियों के समक्ष कार्यक्रम पेश कर चुके 23 वर्षीय ध्रुव बेदी कहते हैं कि पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के विपरीत हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में गुरू का स्थान बेहद अहम है। उनका कहना है कि गुरू न केवल संगीत सिखाता है बल्कि वह संगीत के साथ साथ बहुत सी अन्य चीजें भी सिखाता है। एक शिष्य गुरू के सानिध्य में कला के साथ ही गुरू के व्यक्तित्व को भी आत्मसात करता है। उन्होंने इस बात से सहमति जताई कि करीब दशक भर पहले एक वक्त आया था जब शास्त्रीय संगीत के प्रति युवाओं की रुचि कम हो रही थी लेकिन अब फिर से शास्त्रीय संगीत के प्रति सम्मान बढ़ रहा है। ध्रुव बेदी ने 1990 में अपने पिता जगदीप सिंह बेदी से सितार सीखना शुरू किया था जो खुद एक जाने माने सितारवादक हैं। इस समय वह अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त संगीतकार पंडित बुद्धादित्य मुखर्जी से संगीत सीख रहे हैं। ध्रुव ने पारंपरिक ‘‘गुरू शिष्य’’ परंपरा के तहत संगीत की शिक्षा हासिल की है। इसी के चलते उनके सितार वादन में भी वह गहराई और लोच साफ नजर आती है। उन्हें इस समय देश के सर्वाधिक प्रतिभाशाली सितार वादकों में गिना जाता है। इमदाद खानी घराने से ताल्लुक होने के कारण ध्रुव बेदी को सितार पर ‘‘गायकी अंग’’ पर महारत हासिल है। वह परंपरा के साथ ही कर्नाटक संगीत के संगीतकारों, जाज संगीतकारों, कोरियाई संगीतकारों और रूसी संगीतकारों के साथ ही देश विदेश में पश्चिमी संगीतकारों के साथ शानदार जुगलबंदी कर चुके हैं। 

ध्रुव आल इंडिया रेडियो पर हिन्दुस्तानी संगीत के ए श्रेणी के सितार वादक हैं और रेडियो तथा टेलीविजन पर नियमित रूप से अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन समेत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुति देने वाले ध्रुव को भारतीय दर्शकों के सामने सितार बजाना अच्छा लगता है। पिछले दिनों सांस्कृतिक क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठन ‘योगदान’ द्वारा आयोजित ‘‘सुर वर्षा’’ कार्यक्रम में उनकी प्रस्तुति को बेहद सराहा गया था। ध्रुव अमेरिका, ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड, स्वीडन, स्पेन, रूस, मारीशस, दक्षिण कोरिया समेत विभिन्न देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। 2009 से वह प्रसिद्ध सितार वादक पंडित बुद्धादित्य मुखर्जी से सितार सीख रहे हैं लेकिन वह बताते हैं कि उनके पिताजी उनके पहले गुरू हैं और 99 फीसदी सितार उन्होंने अपने पिता से ही सीखा है। भविष्य में उनकी एक ही योजना है- शास्त्रीय संगीत को नयी ऊंचाइयों पर लेकर जाना।

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