न्यायालय कर रहा है अप्रमाणित डिजिटल रिकार्ड की स्वीकार्यता मुद्दे का परीक्षण

Court is examining the acceptance issue of unproven digital record

उच्चतम न्यायालय इस मुद्दे का परीक्षण कर रहा है कि क्या बैंक के साथ व्यापार लेनदेन से संबंधित अप्रमाणित प्राप्ति जैसे इलेक्ट्रानिक रिकार्ड पर न्यायिक प्रक्रिया के अंतरगत बतौर सबूत क्या भरोसा किया जा सकता है।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय इस मुद्दे का परीक्षण कर रहा है कि क्या बैंक के साथ व्यापार लेनदेन से संबंधित अप्रमाणित प्राप्ति जैसे इलेक्ट्रानिक रिकार्ड पर न्यायिक प्रक्रिया के अंतरगत बतौर सबूत क्या भरोसा किया जा सकता है। न्यायिक कार्यवाही में इलेक्ट्रानिक साक्ष्यों की बढ़ती संख्या के साथ अदालत ने कहा कि इसकी समीक्षा की जरूरत है कि क्या डिजिटल दस्तावेज को प्राथमिक साक्ष्य या द्वितीयक साक्ष्य के रूप में मान्य किया सकता है जो केवल प्रमाणन के बाद ही स्वीकार किया जाता है।

न्यायाधीश ए के गोयल तथा न्यायाधीश यूयू ललित ने यह भी पूछा कि क्या अदालत इलेक्ट्रानिक साक्ष्य को यह कहकर खारिज कर सकता है कि वह प्रमाणित नहीं है, भले ही वह भरोसेमंद हो। न्यायालय ने इस बारे में महान्यायवादी के के वेणुगोपाल को नोटिस देकर सहायता मांगी है। मामले में अदालत की सहायता कर रही वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि उन्हें इस मामले में जवाब देने के वक्त चाहिए।

पीठ ने कहा, ‘‘हम बड़ी पीठ को मामला भेज सकते थे क्योंकि इस संदर्भ में कई फैसले आये हैं। शीर्ष अदालत के निर्णय के बावजूद विभिन्न उच्च न्यायालय और सुनवाई अदालतें प्रमाणन के साथ भारतीय साक्ष्य कानून की धारा 65 बी के तहत कार्यवाही को आगे बढ़ा रही हैं।’’ भारतीय साक्ष्य कानून की धारा 65 (बी) कहता है कि किसी भी अदालत की कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने को लेकर इलेक्ट्रानिक रिकार्ड को जिम्मेदार अधिकारी से प्रमाणित करने की जरूरत है।

पीठ ने कहा कि लेकिन बड़ी पीठ को भेजने का मतलब है कि मामले को ठंडे बस्ते में डालना क्योंकि मामले की सुनवाई के जिये इसमें 10 साल लगेंगे। न्यायालय ने कहा, ‘‘मामला लंबे समय तक फैसले की प्रतीक्षा नहीं कर सकता। इसीलिए इस मामले की सुनवाई की जरूरत है।’’

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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