आर्थिक सुस्ती दूर करने के लिए सरकारी परियोजनाओं पर काम तेज करने की जरूरत

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[email protected] । Aug 18 2019 12:56PM

विशेष रूप से वाहन क्षेत्र का जुलाई महीने में कमजोर प्रदर्शन रहा और वाहनों की बिक्री एक साल पहले के मुकाबले 19 प्रतिशत गिर गई। यह 19 साल की सबसे बड़ी गिरावट है।

नयी दिल्ली। देश दुनिया में आर्थिक क्षेत्र में सुस्ती गहराने की चर्चा जोर पकड़ने लगी है। इसके साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था में भी आर्थिक नरमी बढ़ने के संकेत दिखने लगे हैं। विशेष रूप से वाहन क्षेत्र का जुलाई महीने में कमजोर प्रदर्शन रहा और वाहनों की बिक्री एक साल पहले के मुकाबले 19 प्रतिशत गिर गई। यह 19 साल की सबसे बड़ी गिरावट है। आर्थिक क्षेत्र में गहराती सुस्ती को लेकर नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक फाइनेंस एण्ड पालिसी (एनआईपीएफपी) के प्रोफेसर एन.आर. भानुमूर्ति से भाषा के पांच सवाल: 

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प्रश्न एकः क्या आपको लगता है कि आर्थिक क्षेत्र में सुस्ती बढ़ रही है? 

जवाब: वास्तव में अर्थव्यवस्था में यह नरमी काफी पहले शुरू हो गई थी। हम तो इसे 2018 के मध्य से ही महसूस कर रहे हैं। पिछले वित वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृ़द्ध दर 6.8 प्रतिशत रही जो कि पिछले कई साल का न्यूनतम स्तर है। सबसे गंभीर बात यह है कि सरकार ने आर्थिक क्षेत्र में आ रही सुस्ती की आहट को शुरुआत में मानने से इनकार कर दिया। वित्त मंत्रालय आठ प्रतिशत आर्थिक वृद्धि मानकर चल रहा है जबकि रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के दौरान वृद्धि दर सात प्रतिशत से कम रहने का अनुमान लगाया है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही की वृद्धि दर के आंकड़े आने वाले हैं मेरा अनुमान है कि यह छह प्रतिशत के आसपास रह सकता है।

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प्रश्न दोः आर्थिक क्षेत्र की यह सुस्ती चक्रीय है अथवा मौजूदा वैश्विक एवं घरेलू परस्थितियों के कारण है? 

उत्तरः मेरा मानना है कि इस आर्थिक सुस्ती की दोनों वजह हैं। इसमें कुछ योगदान तो चक्रीय सुस्ती का रहा है और कुछ संरचनात्मक कारणों से है। दुनिया के देशों में आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ रही हैं। जर्मनी, ब्रिटेन, मेक्सिको, अमेरिका और चीन की अर्थव्यवस्थाओं की चाल धीमी हुई है। भारत पर भी इसका असर पड़ना स्वाभाविक है। लेकिन कुछ घरेलू कारण भी रहे हैं जिनकी वजह से गतिविधियां बाधित हुई हैं। देश में माल एवं सेवाकर (जीएसटी) लागू होने के बाद से व्यावसायिक गतिविधियां अभी तक सामान्य नहीं हो पाई हैं। कर्ज के बोझ तले दबी कंपनियों से निपटने के लिये बनाई गई ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) से भी कारोबारी फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं। 

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प्रश्न तीनः वाहन उद्योग में आई मंदी को आप किस रूप में देखते हैं। इसकी क्या बड़ी वजह हो सकती है? 

उत्तरः सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को बढ़ावा दे रही है। इसके लिये कर छूट भी दी जा रही है। सरकार प्रोत्साहन योजना के जरिये इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण और खरीदारी को बढ़ावा दे रही है। पेट्रोल- डीजल के वाहनों के भविष्य को लेकर खरीदार और विनिर्माता दोनों के मन में अनिश्चितता बढ़ रही है। यहां तक कि पेट्रोल- डीजल वाहनों के लिये कर्ज देने वाले बैंक और वित्तीय संस्थान भी हिचकिचाहट दिखाने लगे हैं। पुराने वाहनों की बिक्री का बाजार भी सुस्त चल रहा है। चार- पांच साल बाद पेट्रोल, डीजल के पुराने वाहनों का क्या होगा किसी को नहीं पता, इसलिये नये वाहनों के खरीदार पशोपेश में हैं। यह स्थिति वाहन बाजार में बिक्री में गिरावट की एक बड़ी वजह हो सकती है।

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प्रश्न चारः वाहन उद्योग समेत अर्थव्यवस्था को फिर से तेजी के रास्ते पर लाने के लिये क्या उपाय होने चाहिये?

उत्तरः मेरे साथ ही कई दूसरे अर्थशास्त्री चालू वित्त वर्ष की शुरुआत से ही यह बोल रहे हैं कि सरकार को अर्थव्यवस्था की चाल बढ़ाने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन देने होंगे। घरेलू बचत दर को बढ़ाने के वास्ते वित्तीय प्रोत्साहनों की जरूरत है। कर छूट वाले बांड जारी करने चाहिये, ढांचागत क्षेत्र से जुड़े कर मुक्त बांड जारी होने चाहिये ताकि घरेलू बचत को बढ़ावा दिया जा सके। अस्थाई तौर पर कुछ प्रोत्साहन देने हों तो वह दिये जाने चाहिये। इसके अलावा आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिये तमाम सरकारी परियोजनायें जो रूकी पड़ी हैं अथवा धीरे धीरे आगे बढ़ रही हैं उन पर काम तेज होना चाहिये। इन परियोजनाओं के लिये धन की, वर्ष की शुरुआत में ही व्यवस्था होनी चाहिये। वित्त वर्ष के अंतिम महीनों में नहीं बल्कि शुरुआती महीनों में ही पैसा लगाकर इन्हें जल्द पूरा किया जाना चाहिये ताकि रोजगार के अवसर तो बढ़े हीं साथ इनसे कमाई भी जल्द शुरु हो सके। सड़क, रेलवे, बिजली, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते आवास की परियोजनायें, पानी, सिंचाई सहित तमाम परियोजनायें हैं जो कि लटकी पड़ी हैं अथवा समय से पीछे चल रही हैं, इनमें काम तेजी से आगे बढ़ाया जाना चाहिये। 

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प्रश्न पांचः प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्री के साथ आर्थिक हालात पर विचार विमर्श किया है। वित्त मंत्रालय ने कहा है कि उपायों को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ बातचीत जारी है। आपको क्या लगता है? 

उत्तरः यह देखने की बात है कि रिजर्व बैंक के स्तर पर मौद्रिक नीति में लगातार नरमी लाई जा रही है। लेकिन इसके वांछित परिणाम फिलहाल नहीं दिखाई दिये हैं। इस समय जरूरत वित्तीय प्रोत्साहनों की है। ऐसे प्रोत्साहन जिनसे निवेश बढ़े। हमें घरेलू क्षेत्र पर ध्यान देना होगा। ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे कि बाहरी दुनिया से हमारे समक्ष जो जोखिम खड़े हो रहें हैं, उनको कम किया जा सके। जब आर्थिक वृद्धि की चाल धीमी पड़ती है तो वित्तीय प्रोत्साहन दिये जाने चाहिये। मुद्रास्फीति बढ़ने की स्थिति में मौद्रिक प्रोत्साहनों की जरूरत होती है। मुद्रास्फीति इस समय काबू में है इसलिये मौद्रिक स्तर पर ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है। यदि हमें 5,000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनना है तो संरचनात्मक स्तर पर कई मुद्दों को ठीक करने की आवश्यकता है। ढांचागत क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के प्रस्तावों का अनुकूल असर होगा। ग्रामीण क्षेत्र की योजनाओं को आगे बढ़ाने से मांग बढ़ाने में मदद मिलेगी। 

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