नीति आयोग राज्यों को विकास कार्यों के लिये कोष आबंटन करेगा

उन्होंने कहा, ‘‘मैं 16-17 महीने से नीति आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में काम कर रहा हूं। मैं यह अनुभव करता हूं कि राज्यों के लिये उनके विकास संबंधी खर्चों के लिये स्वतंत्र रूप से कुछ आबंटन की जरूरत है।’’
नयी दिल्ली। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने सोमवार को कहा कि आयोग विकास खर्च के वास्ते राज्यों को कोष आबंटन में भूमिका निभाने के विचार पर चर्चा के लिये तैयार है और इस बारे में 15वें वित्त आयोग के साथ बातचीत करेगा। वित्त आयोग के पूर्व चेयरमैन विजय केलकर ने हाल ही में कहा था कि क्षेत्रीय असमानताएं दूर करने में मदद के लिये आयोग को वित्तीय शक्तियां दी जानी चाहिए।
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पूर्ववर्ती योजना आयोग के विपरीत आयोग के पास कोई वित्तीय शक्ति नहीं है और न ही राज्यों की सालाना योजना तैयार करने में कोई भूमिका है। कुमार ने पीटीआई से विशेष बातचीत में कहा, ‘‘मैंने हमेशा डा. केलकर और उनके विचारों का सम्मान किया। इसका कारण उनके पास काफी लंबा अनुभव है। वह वित्त सचिव रहने के साथ ही वित्त आयोग के चेयरमैन भी रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं 16-17 महीने से नीति आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में काम कर रहा हूं। मैं यह अनुभव करता हूं कि राज्यों के लिये उनके विकास संबंधी खर्चों के लिये स्वतंत्र रूप से कुछ आबंटन की जरूरत है।’’
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कुमार ने कहा कि अगर आयोग को राज्यों को विकास खर्च के आबंटन में कुछ भूमिका दी जाती है तो इससे सहयोगपूर्ण और प्रतिस्पर्धी संघवाद को भी बढ़ावा मिलेगा।उन्होंने कहा, ‘‘और मैं यह भी कह सकता हूं कि हम इस बारे में 15वें वित्त आयोग के साथ चर्चा करने जा रहे हैं।’’हाल में एक शोध पत्र में केलकर ने ‘नीति आयोग 2.0’ का सुझाव दिया है जिसके पास क्षेत्रीय विषमता दूर करने के प्रयासों के तहत वित्तीय शक्तियां हो। केलकर ने यह भी सुझाव दिया है कि नये आयोग के उपाध्यक्ष को मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) का स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाया जाए।
हालांकि, आयोग राज्यों को संसाधन आबंटन में भूमिका पर विचार के लिये सहमत है लेकिन कुमार ने यह साफ किया कि वह पूर्ववर्ती योजना आयोग की वापसी नहीं चाहते। केलकर के सुझाव से सहमति जताते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री और प्रख्यात अर्थशास्त्री योगेन्द्र के अलघ ने कहा कि 2014 में उन्होंने नये निकाय के पास पारदर्शी नियमों के तहत कोष आबंटन शक्ति होने की बात पर जोर दिया था।
उन्होंने पीटीआई से कहा, ‘‘सरकार ने योजना आयोग को समाप्त कर दिया और कई बड़ी केंद्रीय योजनाएं शुरू की। लेकिन संसाधन का आबंटन वित्त या संबंधित मंत्रालयों द्वारा किया जाता है। कुछ मुख्यमंत्रियों ने इसे मनमाना करार दिया है। केलकर ने नियम आधारित प्रणाली का उपयुक्त सुझाव दिया है।’’वित्त वर्ष 2019-20 के अंतरिम बजट के बारे में कुमार ने कहा कि इसमें वृद्धि को गति देने तथा राजकोषीय अनुशासन बनाये रखने के बीच संतुलन रखा गया है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिंदबरम की इस आलोचना पर कि यह लेखानुदान नहीं बल्कि ‘वोट का लेखाजोखा’ है, कुमार ने कहा, ‘‘आप चुनावी वर्ष में गैर-चुनावी बजट की अपेक्षा नहीं कर सकते।’’वित्त वर्ष 2019-20 के राजकोषीय लक्ष्य के बारे में उन्होंने कहा कि सत्ता में वापस आने के बाद सरकार लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में और बेहतर तरीके से काम करेगी।
1/2 - India’s GDP growth rate of 7.2% in 2018-19 has been reconfirmed by the IMF, World Bank & ADB. It is quite illogical for the former FM to question the growth rate at this stage. https://t.co/WnlGSHTJVF
— Rajiv Kumar 🇮🇳 (@RajivKumar1) February 1, 2019
कुमार ने कहा, ‘‘हमें भरोसा है कि 90,000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों के रणनीतिक विनिवेश के जरिये इसे हासिल कर लिया जाएगा।’’ आयोग के उपाध्यक्ष ने यह भी कहा कि देश के सांख्यिकी प्रणाली की गुणवत्ता को फिर से व्यवस्थित करने की जरूरत है। उन्होंने अपनी राय देते हुए कहा कि सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय को न केवल आंकड़ों के संग्रहकर्ता के रूप में बल्कि सभी आंकड़ों के लिये एक गुणवत्तापूर्ण और भरोसेमंद नियामक के रूप में सामने आना चाहिए।
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