Starlink की भारत में धमाकेदार एंट्री, क्या अब बिना नेटवर्क के भी होगी कॉलिंग, चलेगा इंटरनेट

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अभिनय आकाश । Jul 10 2025 12:41PM

स्टारलिंक तीसरी कंपनी है, जिसे भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस ऑपरेट करने का लाइसेंस मिला है। इससे पहले ईयूटेलसेट वनवेब और रिलायंस जियो को मंजूरी मिली थी। यह सेवा मंजूरी आठ अप्रैल से पांच साल की अवधि के लिए या जनरेशन 1 समूह के परिचालन जीवन की समाप्ति तक, जो भी पहले हो, के लिए वैध है।

दुनिया के सबसे अमीर शख्स एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक को भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस शुरू करने की अंतिम नियामक मंजूरी मिल गई है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से ये दावा किया कि अंतरिक्ष नियामक एजेंसी इन-स्पेस ने हरी झंडी दे दी है। स्टारलिंक तीसरी कंपनी है, जिसे भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस ऑपरेट करने का लाइसेंस मिला है। इससे पहले ईयूटेलसेट वनवेब और रिलायंस जियो को मंजूरी मिली थी। यह सेवा मंजूरी आठ अप्रैल से पांच साल की अवधि के लिए या जनरेशन 1 समूह के परिचालन जीवन की समाप्ति तक, जो भी पहले हो, के लिए वैध है। 

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स्टारलिंक जेन1 कॉन्स्टेलेशन 

सेवाओं का क्रियान्वयन निर्धारित नियामकीय प्रावधानों और संबंधित सरकारी विभागों से अपेक्षित मंजूरी, अनुमोदन और लाइसेंस के अधीन है। स्टारलिंक जेन1 कॉन्स्टेलेशन एक वैश्विक मंडल है जिसमें 4,408 उपग्रह 540 किलोमीटर से 570 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी का चक्कर लगा रहे हैं। यह भारत में लगभग 600 गीगावाट प्रति सेंकंड ‘जीबीपीएस’ की क्षमता प्रदान करने में सक्षम है। स्टारलिंक 2022 से ही वाणिज्यिक परिचालन शुरू करने के लिए भारतीय बाजार पर नजर गड़ाए हुए थी। स्टारलिंक पिछले महीने, यूटेलसैट वनवेब और जियो सैटेलाइट कम्युनिकेशंस के बाद भारत में उपग्रह आधारित इंटरनेट सेवाएं प्रदान करने के लिए दूरसंचार विभाग (डीओटी) से लाइसेंस प्राप्त करने वाली तीसरी कंपनी बन गई। हालांकि, जिन कंपनियों को लाइसेंस मिल चुका है, उन्हें वाणिज्यिक उपग्रह संचार स्पेक्ट्रम के लिए थोड़ा और इंतजार करना होगा, क्योंकि भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने हाल ही में मूल्य निर्धारण और नियम व शर्तों पर अपनी सिफारिशें सरकार को विचार करने के लिए भेजी हैं। स्पेक्ट्रम के आवंटन के बाद कंपनियां अपनी सेवाएं शुरू कर सकेंगी। 

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स्टारलिंक क्या है और यह कैसे काम करता है?

स्टारलिंक एक सैटेलाइट-बेस्ड इंटरनेट सर्विस है, जो लो अर्थ आर्बिट (एलईओ) सैटेलाइट्स के नेटवर्क के जरिए तेज़ इंटरनेट पहुंचाने का काम करती है। पारंपरिक ब्रॉडबैंड या मोबाइल नेटवर्क की तरह, जहां इंटरनेट केबल या टावरों के जरिए मिलता है। वहीं स्टारलिंक का इंटरनेट सीधा सैटेलाइट से यूजर के घर तक आता है। यूजर्स को स्टारलिंक डिश और स्टारलिंक राउटर्स की जरूरत होगी। जो सैटेलाइट से कम्युनिकेट करेगा। 

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