करियर के लिए बेस्ट ऑप्शन है क्रोमो थेरेपी, आसानी से कर सकेंगे लोगों का इलाज

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यह एक बेहद इंटरेस्टिंग करियर है, जिसे आजकल काफी पसंद किया जा रहा है। अगर आप भी कुछ लीक से हटकर करना चाहते हैं तो इसे बतौर करियर अपना सकते है।

आज के समय में लोग इलाज के लिए दवाईयों का सहारा नहीं लेते, बल्कि वैकल्पिक चिकित्सा पर अधिक जोर देते है। जिसके कारण कई तरह की चिकित्सा पद्धति अब प्रचलित होने लगी हैं। इन्हीं में से एक है क्रोमो थेरेपी। इसमें इलाज के लिए सौर स्पेक्ट्रम के सात रंगों (बैंगनी, इंडिगो, नीले, हरे, पीले, नारंगी, लाल) का उपयोग किया जाता है। यह एक बेहद इंटरेस्टिंग करियर है, जिसे आजकल काफी पसंद किया जा रहा है। अगर आप भी कुछ लीक से हटकर करना चाहते हैं तो इसे बतौर करियर अपना सकते है।

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क्या है क्रोमो थेरेपी ?

क्रोमो थेरेपी में मुख्य रूप से रंगों का ही इस्तेमाल किया जाता है। 'क्रोमो' शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'रंग'। क्रोमो थैरेपी का शाब्दिक अर्थ है रंगों के माध्यम से उपचारात्मक उपचार।  इसे कलर थेरेपी, लाइट थेरेपी, हेलियो थेरेपी या कोलोरोलॉजी के नामों से भी जाना जाता है। कलर थेरेपी यूं तो हजारों वर्षों से चलन में है, लेकिन पिछले कुछ समय से लोगों का झुकाव इस ओर बढ़ा है। इस थेरेपी की मदद से अवसाद, एक्जिमा, उच्च रक्तचाप, मासिक धर्म की समस्याएं आदि का इलाज सफलतापूर्वक किया जाता है। कलर थेरेपी के अनुसार, मनुष्यों में कई विकार और रोग शरीर के ऊर्जा केंद्रों या चक्रों में असंतुलन के कारण होते हैं। प्रत्येक रंग शरीर के अलग−अलग हिस्सों से जुड़ा होता है यानी, विभिन्न ऊर्जा केंद्र, जिन्हें चक्रों के रूप में जाना जाता है और उनके स्वयं के प्राकृतिक उपचार गुण होते हैं। शरीर की प्रत्येक कोशिका को प्रकाश ऊर्जा की आवश्यकता होती है और जब रंग सही तरीके से प्रकाश के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं, तो इससे वे शरीर के उपचार गुणों को सक्रिय करते हैं। जिससे हीलिंग प्रोसेस काफी तेज होता है।

स्किल्स

अगर आप क्रोमोथेरेपी में करियर बनाना चाहते हैं तो आपमें कुछ स्किल्स होने चाहिए। सबसे पहले तो आपमें इस क्षेत्र में काम करने की रूचि होनी चाहिए। साथ ही लोगों की मदद करने का जज्बा होना चाहिए। एक बेहतर क्रोमोथेरेपिस्ट बनने के लिए आपको व्यक्ति पर प्रत्येक रंग के प्रभाव के बारे में जानकारी होनी चाहिए। चूंकि आपको लोगों से जुड़कर काम करना होता है, इसलिए आपके कम्युनिकेशन स्किल्स भी उतने ही बेहतर होने चाहिए। साथ ही आपको उतना ही अच्छा श्रोता भी होना चाहिए ताकि आप अपने पेशेंट की समस्याओं को बेहतर तरीके से सुन व समझ सकें।

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योग्यता

क्रोमोथेरेपिस्ट बनने के लिए आपके पास क्रोमोथेरेपी में डिप्लोमा या बैचलर डिग्री होनी चाहिए। इसके साथ−साथ बायोलॉजी, केमिस्टी और फिजिक्स में ज्ञान होना जरूरी है। भारत में केवल कुछ ही इंस्टीट्यूट क्रोमोथेरेपी का कोर्स कराते हैं। इन अधिकतर इंस्टीट्यूटट में पांच वर्षीय बैचलर ऑफ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंसेज (बीएनवाईएस) पाठ्यक्रम के जरिए क्रोमोथेरेपी के बारे में सिखाया जाता है। इस क्षेत्र में कदम रखने के लिए आपका 12वीं पास होना चाहिए। वहीं कलर थेरेपी में डिप्लोमा व बैचलर कोर्स की अवधि छह महीने से एक साल है। वहीं बैचलर सर्टिफिकेशन कोर्स दो साल का होता है।

संभावनाएं

एक क्वालिफाइड क्रोमोथेरेपिस्ट हॉस्पिटल्स से लेकर नेचुरोपैथी क्लिनकि, हेल्थ सेंटर्स में काम कर सकता है। इसके अलावा आप खुद का थेरेपी क्लिनकि भी खोल सकते हैं। वहीं आप रिसर्च वर्क से जुड़कर काम कर सकते हैं या फिर एजुकेशन में भी काम कर सकते हैं। 

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आमदनी

क्रोमोथेरेपिस्ट की आमदनी उनके स्किल्स और उनके अनुभव के आधार पर तय होती है। अधिकांश क्रोमोथेरेपिस्ट सेल्फ इंप्लाइड होते हैं और इसलिए आप प्रतिघंटे के आधार पर चार्ज कर सकते हैं।

प्रमुख संस्थान

  • इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव मेडिसिन, कोलकाता
  • महेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव मेडिसिन, जयपुर
  • एक्यूप्रेशर अनुसंधान, प्रशिक्षण और उपचार संस्थान, जोधपुर                

- वरूण क्वात्रा

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