सार्वजनिक मार्केट प्लेस की पारदर्शी दशक यात्रा

GeM CEO Mihir Kumar
ANI

प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने एक नारा दिया था, ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’। इसके सीईओ मिहिर कुमार कहते हैं कि जीईएम प्रधानमंत्री के इसी दृष्टिकोण को साकार कर रहा है। मिहिर कुमार के अनुसार, सिर्फ नौ साल की ही अवधि में यह पोर्टल देश का सबसे भरोसेमंद डिजिटल खरीद मंच बन गया है।

नौ अगस्त की तारीख हमारे इतिहास में अगस्त क्रांति के लिए प्रसिद्ध है। भारत से अंग्रेजी राज को उखाड़ फेंकने वाले निर्णायक ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरूआत इसी दिन हुई। यह तारीख इतिहास में एक और वजह से भी महत्वपूर्ण बन गई है। इसी दिन साल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्वजनिक और सरकारी खरीद में पारदर्शिता की शुरूआत के लिए सरकारी मार्केट प्लेस यानी बाजार की शुरूआत जीईएम यानी गवर्नमेंट इलेक्ट्रॉनिक मार्केट प्लेस शुरू किया। जीईएम का मूल मंत्र है, पारदर्शी, समावेशी और कुशल शासन की आधारशिला। इस ऑनलाइन सार्वजनिक और पारदर्शी बाजार ने नौ साल की आधिकारिक यात्रा पूरी कर ली है और एक दशक की यात्रा के लिए आगे बढ़ चुका है।

प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने एक नारा दिया था, ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’। इसके सीईओ मिहिर कुमार कहते हैं कि जीईएम प्रधानमंत्री के इसी दृष्टिकोण को साकार कर रहा है। मिहिर कुमार के अनुसार, सिर्फ नौ साल की ही अवधि में यह पोर्टल देश का सबसे भरोसेमंद डिजिटल खरीद मंच बन गया है। पिछले कुछ वर्षों में इस पोर्टल पर महिला उद्यमियों, स्टार्टअप्स, मध्यम और लघु उद्योग, शिल्पकारों, स्थानीय कारीगरों और दिव्यांगजनों समेत पूरे देश के विक्रेताओं और सेवाप्रदाताओं के सशक्तीकरण में प्रमुख भूमिका निभा रहा है। इस पोर्टल या ऑनलाइन बाजार पर विक्रेताओं के लिए जमानती राशि रखने का प्रावधान है। लेकिन अब इस प्रावधान को खत्म कर दिया गया है। मिहिर कुमार के अनुसार, इसकी वजह से विशेषकर छोटे निर्माताओं और कारोबारियों को ज्यादा फायदा होना है।

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सार्वजनिक और सरकारी खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। इसी भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री ने पारदर्शी और समावेशी ऑनलाइन मार्केट की अवधारणा प्रस्तुत की थी। जीईएम उसी अवधारणा का विस्तार है। इसके कामकाज शुरू करने के बाद केंद्र सरकार के सभी दफ्तरों के लिए इसी पोर्टल के जरिए खरीद अनिवार्य कर दिया गया। अब जीईएम प्रबंधन का जोर राज्य सरकारों की खरीद को भी इसी के जरिए जरूरी बनाने पर है। अपने दसवें साल में राज्यों पर फोकस करने की दिशा में जीईएम प्रबंधन ने तैयारी की है। जीईएम को उम्मीद है कि उनके जरिए हो रही सार्वजनिक खरीद में जिस तरह सार्वजनिक क्षेत्र को बचत हो रही है, उसकी वजह से राज्य सरकारें भी इसकी ओर आकर्षित होंगी। वैसे राज्यों की ओर से इसके जरिए खरीद होने भी लगी है। हालांकि उसकी मात्रा अभी कम है। जीईएम के जरिए होने वाली खरीद में अब तक एनटीपीसी को जहां करीब दो हजार करोड़ की बचत हुई है, वहीं बैंक ऑफ बड़ोदा को 34 करोड़। इसी तरह भारतीय नौसेना ने भी पंद्रह करोड़ की बचत की है। जीईएम के अधिकारी तो इसे स्वीकार नहीं करते, लेकिन जाहिर है कि यह बचत जहां खरीद में घपले की कमी से हुई है, वहीं सार्वजनिक मार्केट प्लेस पर उपलब्ध ढेरों और गुणवत्तापूर्ण सामानों में मूल्यों को लेकर हुई प्रतिद्वंद्विता की वजह से हुई है।

जीईएम के सीईओ मिहिर कुमार के अनुसार, इस ऑनलाइन मार्केट प्लेस ने सिर्फ खुद के दम पर साल 2024-25 में 5.4 लाख करोड़ रुपये के सकल व्यापारिक मूल्य सार्वजनिक खरीद को न केवल सुव्यवस्थित किया है, बल्कि शासन में पहुंच, समानता और सशक्तीकरण को फिर से पारिभाषित किया है।

जीईएम ने अपने स्थापना के दसवें वर्ष का सूत्र वाक्य, सुगमता, पहुंच और समावेशन विषयों पर केन्द्रित किया है। मिहिर कुमार का कहना है कि उसका यह सूत्र वाक्य सार्वजनिक खरीद को अधिक सुलभ और न्यायसंगत बनाने की दिशा में उनके संगठन की प्रतिबद्धता और पारदर्शी कामकाज को प्रदर्शित करता है। मिहिर कुमार यह भी कहते हैं कि वैसे तो ऑनलाइन खरीद के कई पोर्टल हैं। लेकिन वे सभी कारोबारी पोर्टल हैं, जबकि जीईएम मार्केट प्लेस है। वह खुद कारोबार नहीं करता, बल्कि पारदर्शी कारोबार का मंच उपलब्ध कराता है। जिसमें खरीददार और विक्रेता, दोनों का फायदा है। 

जीईएम की कामयाबी ही कही जाएगी कि इसके जरिए अब तक तीन करोड़ से ज्यादा खरीदादारी हो चुकी है। जिनके जरिए 4.81 लाख करोड़ की खरीददारी हुई है। इस मार्केट प्लेस पर मौजूदा वित्त वर्ष में 11हजार से ज्यादा प्रोडक्ट, 344 से ज्यादा सर्विस श्रेणी, 20 लाख से ज्यादा ऑर्डर मिल चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस पोर्टल पर सबकुछ ऑटोमेशन में सॉफ्टवेयर संचालित है, कोई मैनुअल हस्तक्षेप नहीं है। हालांकि जीईएम के अधिकारी मानते हैं कि इसमें और सुधार की गुंजाइश है और वह लगातार होती रहेगी। ताकि खरीद-बिक्री में पारदर्शिता बरकरार रहे।

यह ठीक है कि अब विक्रेताओं के लिए जमानती राशि की व्यवस्था खत्म कर दी गई है। इसके साथ ही जीईएम ने कई और सुधार शुरू किये हैं। इसमें विक्रेता के मूल्यांकन शुल्क को तार्किक बनाना और लेनदेन शुल्क में उल्लेखनीय कमी करना भी सामिल है। वेंडर चार्ज भी पहले की तुलना में 68 प्रतिशत से लेकर 92 प्रतिशत तक कम किए जा चुके हैं। इन सबकी वजह से यहां मिलने वाले 97 प्रतिशत ऑर्डरों को छूट मिल गई है। मिहिर कुमार कहते हैं कि उनकी कोशिश, विक्रेताओं को सशक्त बनाना, मध्यम और लघु उद्योगो बढ़ावा देने की है। इस दिशा में पहली बार विक्रेताओं और छोटे उद्यमों के लिए मजबूत सहायता द्वारा समर्थन दिया जा रहा है। 

जीईएम की कोशिश ना सिर्फ बड़े, बल्कि दूर-दराज के इलाकों में स्थित कारीगरों, निर्माताओं, उद्यमियों और कारोबारियों को समावेशी मंच उपलब्ध कराना भी है। जीईएम के अधिकारी कहते हैं कि उनका ध्यान यह सुनिश्चित करने पर है कि आदिवासी कारीगरों से लेकर तकनीक-संचालित स्टार्टअप तक हर उद्यम तक सार्वजनिक खरीद के अवसरों आसानी से पहुंच सकें। इस दिशा में इसके दिल्ली मुख्यालय में छह अगस्त को जीईएम विक्रेता संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में जीईएम के मंच पर देश के हर वर्ग के उद्यमियों, कारोबारियों और निर्माताओं को साथ लाने की कोशिश हुई। 

कागज रहित, वास्तविक समय के लेन-देन को सक्षम बनाने से लेकर स्वास्थ्य, खनन और बीमा में करोड़ों रुपये के अनुबंधों को सुगम बनाने तक, जीईएम ने नीति निर्माण और जमीनी स्तर की भागीदारी के बीच की खाई को पाटने की सफल कोशिश की है। दसवें वर्ष में दाखिल होते हुए इसके अधिकारियों ने अनूठी शपथ ली है। उनका कहना है कि वे सार्वजनिक खरीद को नागरिक-केंद्रित, डेटा-संचालित और समावेशी पारिस्थितिकी तंत्र में बदलने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हालांकि सार्वजनिक खरीद में इन विशेषताओं के बावजूद कुछ अतिरिक्त की चाहत रखने वाले भ्रष्टाचारी तत्व अब भी कुछ ना कुछ राह निकाल लेते हैं। जिस पर काबू पाने के लिए जीईएम के इंजीनियर लगातार सक्रिय रहते हैं। फिर भी उम्मीद की जानी चाहिए कि अपने एक दशक की यात्रा में यह सार्वजनिक ऑनलाइन बाजार पारदर्शिता की नई मिसाल कायम करेगा। इस संदर्भ में जीईएम के सीईओ मिहिर कुमार के इन शब्दों को देखा-परखा जा सकता है। वे कहते हैं, "पारदर्शिता को परिवर्तन के साथ जोड़ते हुए, GeM भारत के खरीद परिदृश्य की रीढ़ बन गया है। यह 9वाँ स्थापना दिवस केवल संख्याओं का नहीं, बल्कि उन लोगों का उत्सव है, जो शासन को अधिक सुलभ, समावेशी और प्रभावशाली बनाते हैं।”

-उमेश चतुर्वेदी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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