कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में बहुत भारी पड़ेगी अखिलेश यादव की नाराजगी

Akhilesh Yadav
ANI
अजय कुमार । Oct 20 2023 6:30PM

कांग्रेस को ध्यान रखना चाहिए कि वह यूपी में सपा के बिना ‘शून्य’ है। कांग्रेस की नेत्री प्रियंका वाड्रा के यूपी की फूलपुर या अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा चल रही है, यहां कांग्रेस नेत्री के लिए तब तक जीत की राह आसान नहीं हो सकती है जब तक कि उसे सपा का साथ नहीं मिलेगा।

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने ‘इंडिया’ गठबंधन की परतें उधेड़ कर रख दी हैं। जिस तरह से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच मनमुटाव बढ़ता जा रहा था, उसको देखते हुए अखिलेश यादव का कांग्रेस और उसके नेताओं पर हमलावर होना स्वाभाविक है। यदि कांग्रेस आलाकमान गठबंधन की महत्ता को समझते हुए अपने नेताओं को इस बात के लिए रोकता कि वह सपा के खिलाफ गलत बयानबाजी नहीं करें तो इस तरह के हालात पैदा नहीं होते। पहले उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय समाजवादी पार्टी के खिलाफ उलटी-सीधी बयानबाजी कर रहे थे, अब मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और उसके सीएम प्रत्याशी कलमनाथ का मीडिया से यह कहना कि छोड़िये ‘अखिलेश-वखिलेश’ काफी शर्मनाक है।

अखिलेश यादव एक बड़ी पार्टी के अध्यक्ष हैं और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। अखिलेश के बारे में अशोभनीय भाषा बोला जाना पूरे उत्तर प्रदेश का अपमान है। कांग्रेस और कमलनाथ जैसे नेताओं को यह बात समझनी चाहिए। वर्ना इंडिया गठबंधन में कांग्रेस और अन्य दलों के बीच की दूरियां बढ़ती ही जायेंगी। कांग्रेस को यह बात हमेशा ध्यान में रखनी होगी कि यदि वह मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी की हैसियत पर सवाल उठा सकते हैं तो कल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की औकात भी लोग पूछेंगे। कांग्रेस का यहां एक मात्र सांसद और दो विधायक हैं। यूपी में कांग्रेस का गिरता वोट प्रतिशत भी किसी से छिपा नहीं है।

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कांग्रेस को इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि वह यूपी में सपा के बिना ‘शून्य’ है। कांग्रेस की नेत्री प्रियंका वाड्रा के यूपी की फूलपुर या अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा चल रही है, यहां कांग्रेस नेत्री के लिए तब तक जीत की राह आसान नहीं हो सकती है जब तक कि उसे सपा का साथ नहीं मिलेगा।

खैर, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में एक विधायक वाली समाजवादी पार्टी इस बार के मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव में इंडिया गठबंधन का हिस्सा होने के नाते करीब एक दर्जन सीटों पर गंभीरता के साथ अपनी दावेदारी पेश कर रही थी। वह उन सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी, जहां पिछले विधान सभा चुनाव में उसके प्रत्याशी को कांग्रेस उम्मीदवार से अधिक वोट मिले थे। लेकिन कांग्रेस ने अपने गठबंधन सहयोगी को ठेंगा दिखा दिया। गठबंधन के तहत एक भी सीट नहीं मिलने पर अखिलेश यादव का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया, जो स्वाभाविक भी था। समाजवादी पार्टी के साथ ही नहीं, कांग्रेस अपने गठबंधन के सभी सहयोगी दलों के साथ ऐसा ही व्यवहार कर रही है। वह गठबंधन सहयोगियों को कुछ देने की बजाय, उनकी पीठ पर सवार होकर अपना चुनावी रिकॉर्ड ठीक करने का सपना पाले हुए है।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सही कहा कि अगर उन्हें पता होता कि विपक्ष का गठबंधन विधानसभा स्तर के चुनाव के लिए नहीं है तो उनकी पार्टी मध्य प्रदेश में गठबंधन के लिए बातचीत ही नहीं करती। उन्होंने कहा कि अगर सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए तालमेल की बात होगी तो उस पर ही विचार किया जाएगा। लेकिन यहां सवाल यह है कि अखिलेश इतने अपरिपक्व नेता कैसे हो सकते हैं कि उन्हें यही नहीं पता था कि इंडिया गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए बना है। (जैसा कि कांग्रेसी कह रहे हैं)।

अखिलेश का कहना है कि अगर यह मुझे पहले दिन पता होता कि विधानसभा स्तर पर ‘इंडिया’ का कोई गठबंधन नहीं है तो हमारी पार्टी के लोग उस बैठक में नहीं जाते, न हम सूची देते और न ही कांग्रेस के लोगों का फोन उठाते। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री यादव ने कहा कि अगर उन्होंने (कांग्रेस वालों ने) यही बात कही है कि गठबंधन नहीं है तो हम स्वीकार करते हैं। जैसा व्यवहार समाजवादी पार्टी के साथ होगा, वैसा ही व्यवहार उन्हें यहां (उत्तर प्रदेश) पर देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश स्तर पर कोई गठबंधन नहीं है तो नहीं है। हमने इसे स्वीकार कर लिया, इसीलिए हमने पार्टी के टिकट घोषित कर दिए। इसमें हमने क्या गलत किया है? सपा अध्यक्ष यहीं नहीं रुके, उन्होंने किसी का नाम लिये बिना यहां तक कहा कि मैं कांग्रेस के बड़े नेताओं से अपील करूंगा कि अपने छोटे नेताओं से इस तरह के बयान न दिलवाएं। 

बहरहाल, समाजवादी पार्टी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब तक कुल 31 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर चुकी है। उसके यह प्रत्याशी यदि ठीकठाक प्रदर्शन करते हैं तो कांग्रेस को उन सीटों पर बड़ा नुकसान हो सकता है जो वह पिछली बार कम अंतर से जीती थी। वहीं उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से किसी एक पर भी कांग्रेस का खाता खुलना मुश्किल हो जायेगा। ऐसे में कांग्रेस स्वतः दिल्ली की सत्ता से दूर चली जायेगी क्योंकि उत्तर प्रदेश में आज की तारीख में मोदी और बीजेपी से मुकाबला करने की हैसियत समाजवादी पार्टी के अलावा किसी में नहीं है।

-अजय कुमार

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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