व्यर्थ नहीं गया श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान, अदालती फैसले ने नेहरू और शेख को गलत साबित कर दिया

supreme court article 370
Prabhasakshi

इसके अलावा अदालत का फैसला यह भी दर्शाता है कि अनुच्छेद 370 को लेकर नेहरू और शेख अब्दुल्ला ने गलत फैसले किये थे और प्रधानमंत्री मोदी ने सही फैसला किया है। अदालत का फैसला यह भी दर्शाता है कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के फैसले को उच्चतम न्यायालय ने सही ठहराया है। देखा जाये तो यह फैसला सिर्फ मोदी सरकार की बड़ी जीत नहीं है बल्कि इस फैसले के जरिये भाजपा ने विचारधारात्मक रूप से भी एक बड़ी राजनीतिक कामयाबी हासिल की है। हम आपको याद दिला दें कि जनसंघ के जमाने से ही भाजपा अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर बनाने और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के प्रति संकल्पबद्ध रही है। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नारा दिया था 'एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं हो सकते।' उस नारे को हकीकत बनाने का काम प्रधानमंत्री मोदी ने कर दिखाया।

इसके अलावा अदालत का फैसला यह भी दर्शाता है कि अनुच्छेद 370 को लेकर नेहरू और शेख अब्दुल्ला ने गलत फैसले किये थे और प्रधानमंत्री मोदी ने सही फैसला किया है। अदालत का फैसला यह भी दर्शाता है कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। यदि देश की सर्वोच्च अदालत की ओर से दिये गये ऐतिहासिक फैसले को पढ़ेंगे तो स्पष्ट हो जायेगा कि कश्मीर को लेकर महाराजा हरि सिंह और श्यामा प्रसाद मुखर्जी सही थे तथा नेहरू और शेख अब्दुल्ला की नीतियाँ गलत थीं। उस समय डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि यदि भारतीय संविधान देश के चार करोड़ मुसलमानों के लिए अच्छा है तो जम्मू-कश्मीर के 35 लाख मुसलमानों के लिए कैसे गलत हो सकता है? 370 को समाप्त हुए साढ़े चार साल हो गये और जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों ने इस दौरान विकास और तरक्की का जो नया दौर देखा हे उससे यह स्पष्ट हो गया है कि विशेष प्रावधान उनके जीवन में एक अवरोधक की तरह था। देखा जाये तो शेख और नेहरू की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण भारतीय संविधान की मूल आत्मा के साथ छेड़खानी की गयी थी जिसके चलते दशकों तक जम्मू-कश्मीर के लोगों को अलगाववाद और आतंकवाद झेलना पड़ा। 

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साथ ही, अनुच्छेद 370 मुद्दे पर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए एकदम स्पष्ट कहा है कि संविधान का अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था और राष्ट्रपति के पास इसे रद्द करने की शक्ति है। इसलिए सवाल उठता है कि क्या निजी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही कांग्रेस और उसके समर्थक दलों ने एक अस्थायी प्रावधान को 70 साल तक स्थायी बनाये रखा था? हम आपको बता दें कि संविधान के भाग XXI/21 में अनुच्छेद 370 है जिसका शीर्षक है- अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान। इसमें कुल 36 आर्टिकल्स हैं। अनुच्छेद 370 के मार्जिनल नोट में स्पष्ट लिखा है- जम्मू कश्मीर के संबंध में अस्थायी प्रावधान। इसके अलावा विशेष शब्द आर्टिकल 371 के संबंध में जोड़ा गया था वह भी साल 1962 में। देखा जाये तो असली समस्या नेहरू और शेख के बीच हुआ राजनीतिक समझौता थी, जिसे 1952 का दिल्ली समझौता कहा जाता है। लेकिन यहां यह ध्यान रखने की जरूरत है कि यह कोई औपचारिक समझौता नहीं बल्कि दो राजनेताओं के बीच की सहमति थी। खास बात यह है कि इस सहमति का हस्ताक्षरित दस्तावेज़ आज तक उपलब्ध नहीं है। 

बहरहाल, जहां तक विचारधारा के स्तर पर संघ परिवार की कामयाबी की बात है तो आपको बता दें कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने देश हित में तो तमाम कदम उठाये ही साथ ही अपने संगठन की मूल विचारधारा पर आधारित दो बड़े मुद्दों को हल करने के प्रति भी सजगता दिखाई। दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर अनुच्छेद 370 को हटा दिया और जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख को अलग कर दो केंद्र शासित प्रदेशों का स्वरूप प्रदान कर दिया। इसके बाद उच्चतम न्यायालय की ओर से नवंबर 2019 में अयोध्या संबंधी विवाद का हल निकाले जाने के बाद 5 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री ने श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए आधारशिला रख कर दूसरा संकल्प सिद्ध किया। अब 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी और इसी के साथ सैंकड़ों वर्षों से देखा जा रहा सपना पूरा होगा। देखा जाये तो विचारधारा के आधार पर संघ परिवार का एकमात्र बड़ा संकल्प 'समान नागरिक संहिता' को देश में लागू करना बचा हुआ है। भाजपा शासित राज्यों ने इस दिशा में कदम बढ़ाये हैं और केंद्रीय विधि आयोग भी इस मुद्दे पर देशवासियों की राय ले चुका है इसलिए कहा जा सकता है कि यह संकल्प भी जल्द ही सिद्ध होगा।

-नीरज कुमार दुबे

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