Rare Earth Magnets पर China की ढील अस्थायी राहत है, समाधान आत्मनिर्भरता में छिपा है

Modi Jinping
ANI

चीन द्वारा निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों ने भारतीय उद्योगों को झटका दिया था। विशेष रूप से ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र में उत्पादन और नई परियोजनाओं पर संकट खड़ा हो गया था। हालाँकि, चीन ने अब इन प्रतिबंधों में ढील दी है, जिससे तत्काल राहत मिली है।

चीन द्वारा हाल ही में लगाए गए और फिर हटाए गए रेयर अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात प्रतिबंध ने भारत की औद्योगिक ढाँचे की सबसे बड़ी कमजोरी को उजागर कर दिया है। इलेक्ट्रिक वाहन, नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों की प्रगति जिन महत्वपूर्ण खनिजों पर निर्भर है, उनमें भारत आज भी भारी मात्रा में आयात पर आश्रित है। चीन का वर्चस्व और उसकी नीतिगत अनिश्चितता भारत जैसे देश के लिए केवल आर्थिक चुनौती ही नहीं, बल्कि रणनीतिक खतरा भी है।

चीन द्वारा निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों ने भारतीय उद्योगों को झटका दिया था। विशेष रूप से ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र में उत्पादन और नई परियोजनाओं पर संकट खड़ा हो गया था। हालाँकि, चीन ने अब इन प्रतिबंधों में ढील दी है, जिससे तत्काल राहत मिली है, लेकिन इसने यह भी साफ कर दिया कि यदि भारत समय रहते आत्मनिर्भर नहीं बना तो भविष्य में ऐसी स्थितियाँ बार-बार सामने आ सकती हैं।

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भारत इस बात को समझ रहा है इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने पहले से तैयारी शुरू कर दी थी और लिथियम बैटरियों के स्वदेशी उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ाये थे। हम आपको याद दिला दें कि भारत सरकार ने 2021 में राष्ट्रीय उन्नत रसायन सेल (ACC) बैटरी भंडारण कार्यक्रम के अंतर्गत PLI ACC योजना शुरू की थी। 18,100 करोड़ रुपये की इस योजना का लक्ष्य 50 गीगावाट घंटा उत्पादन क्षमता विकसित करना है। इसमें से 40 गीगावाट घंटा क्षमता पहले ही विभिन्न कंपनियों को आवंटित की जा चुकी है। यह क्षमता न केवल इलेक्ट्रिक वाहनों बल्कि उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, रेल और रक्षा क्षेत्र को भी मजबूत करेगी। इससे यह उम्मीद की जा रही है कि भारत लिथियम बैटरियों के क्षेत्र में धीरे-धीरे आयात पर निर्भरता घटाकर घरेलू वैल्यू चेन तैयार करेगा।

इसके अलावा, खनन मंत्रालय ने रणनीतिक खनिजों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय समझौते किए हैं। ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, जाम्बिया, पेरू, जिम्बाब्वे, मोजाम्बिक, मलावी, कोट डी आइवरी जैसे खनिज-संपन्न देशों के साथ सहयोग बढ़ाया जा रहा है। साथ ही भारत ने अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) जैसे संगठनों के साथ भी साझेदारी की है। यह सहयोग न केवल कच्चे खनिजों की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा बल्कि टेक्नोलॉजी, अनुसंधान और निवेश के क्षेत्र में भी मददगार होगा।

इन सभी प्रयासों से तीन महत्वपूर्ण संदेश निकलते हैं। पहला यह है कि चाहे बैटरी निर्माण हो या रेयर अर्थ मैग्नेट्स का उत्पादन, भारत को अपनी घरेलू वैल्यू चेन विकसित करनी ही होगी। दूसरा है कि चीन पर अत्यधिक निर्भरता की बजाय भारत को खनिजों की आपूर्ति के लिए बहुस्तरीय और बहु-देशीय नेटवर्क खड़ा करना होगा। तीसरा है कि यदि भारत वास्तव में ई-मोबिलिटी और नवीकरणीय ऊर्जा में वैश्विक नेतृत्व चाहता है तो उसे केवल आयात पर आधारित रणनीति से आगे बढ़कर संपूर्ण स्वदेशी पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना होगा।

जहां तक यह सवाल है कि रेयर अर्थ मैग्नेट्स क्यों खास हैं तो आपको बता दें कि रेयर अर्थ मैग्नेट्स अब तक के सबसे शक्तिशाली स्थायी चुम्बक माने जाते हैं। इनकी सबसे बड़ी विशेषता है उच्च चुंबकीय क्षमता और डिमैग्नेटाइजेशन (चुंबकत्व खत्म होने) के प्रति प्रतिरोध। इन्हें बनाने में मुख्यतः नियोडिमियम (Neodymium), प्रसीओडिमियम (Praseodymium), और डिस्प्रोसियम (Dysprosium) जैसे रेयर अर्थ तत्वों का प्रयोग किया जाता है। इनकी मजबूती और हल्के वजन की वजह से ये छोटे आकार वाले, ऊर्जा-कुशल और आधुनिक उपकरणों के लिए अपरिहार्य हैं। वहीं सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला मैग्नेट है नियोडिमियम-आयरन-बोरोन (NdFeB) मैग्नेट।

हम आपको बता दें कि चीन के पास दुनिया की लगभग 70% रेयर अर्थ मेटल्स खनन और करीब 90% मैग्नेट उत्पादन का नियंत्रण है। चीन की ताकत सिर्फ खनन तक सीमित नहीं है, बल्कि वह पूरी सप्लाई चेन—खनन, प्रसंस्करण, मिश्र धातु उत्पादन और मैग्नेट निर्माण—पर काबिज है। पिछले 6-8 वर्षों में इन मैग्नेट्स की मांग तेजी से बढ़ी है क्योंकि ये सामान्य फेराइट/पारंपरिक चुम्बकों की तुलना में ज्यादा टिकाऊ, हल्के और प्रभावी हैं।

भारत की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को 2025-26 में लगभग 870 टन रेयर अर्थ मैग्नेट्स की जरूरत होगी, जबकि देश की कुल मांग लगभग 3,600 टन अनुमानित है। ICE और EV वाहनों में इनका इस्तेमाल स्पीडोमीटर, इलेक्ट्रिक मोटर, ई-एक्सल, वॉटर पंप, ट्रांसमिशन किट, स्पीकर्स, सेंसर और इग्निशन कॉइल जैसे महत्वपूर्ण पुर्जों में होता है। चीन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण भारतीय कंपनियों को आयात में कठिनाई हुई, जिससे उत्पादन बंद होने और नई लॉन्चिंग टलने का खतरा पैदा हो गया। अब प्रतिबंध हटने से इंडस्ट्री को भारी राहत मिलेगी, खासकर त्योहारी सीजन की मांग को देखते हुए।

बहरहाल, चीन की ढील से भारत को अस्थायी राहत जरूर मिली है, लेकिन इसने यह भी याद दिला दिया है कि रणनीतिक खनिजों की सुरक्षा आर्थिक आत्मनिर्भरता से कहीं आगे जाकर राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न है। भारत इलेक्ट्रिक वाहनों और स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ रहा है। लेकिन यह यात्रा तभी सफल होगी जब बैटरी और रेयर अर्थ मैग्नेट्स जैसे क्रिटिकल मिनरल्स के लिए घरेलू उत्पादन और सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित हो।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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