दिल्ली में कांग्रेस की बढ़त पर टिकी हैं भाजपा की जीत की उम्मीदें

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देखा जाए तो दिल्ली के चुनाव में एक नया समीकरण उभर कर आया है। आम आदमी पार्टी कांग्रेस के परम्परागत मतदाताओं के बल पर ही सत्ता में आई थी। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी जैसे ही मजबूत हुई वैसे ही आम आदमी पार्टी का ग्राफ गिरा।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए आगामी 8 फरवरी को वोट डाले जाएंगे व 11 फरवरी को चुनाव परिणाम आएंगे। उसके बाद ही पता लगेगा कि दिल्ली की जनता इस बार किसको सिंहासन पर बैठाती है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस के बीच माना जा रहा है। दिल्ली में पिछले 5 साल से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार चल रही है। आप को पिछले विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें मिली थीं। वहीं भाजपा को मात्र 3 सीटें मिली थीं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का तो खाता भी नहीं खुल पाया था।

इस बार दिल्ली विधानसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अपनी पूरी ताकत के साथ चुनाव मैदान में उतरी है। भाजपा पूरा प्रयास कर रही है कि कैसे भी इस बार दिल्ली सरकार पर उनका कब्जा हो। इसी रणनीति के तहत भाजपा वहां नये तरीके से चुनाव प्रचार करते हुये बड़ी जनसभाओं के स्थान पर छोटी सभाओं पर ज्यादा जोर दे रही है। इसी कारण इस बार वहां भाजपा ने किसी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार भी नहीं बनाया है। महाराष्ट्र व झारखंड में सत्ता गंवाने के बाद पूरे देश में एक तरह का भाजपा विरोधी माहौल व्याप्त हुआ है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी के नेता चाहते हैं कि कैसे भी करके दिल्ली में उनकी सरकार बने जिससे भाजपा विरोधी माहौल समाप्त हो सके।

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2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली की सातों विधानसभा सीटों पर कब्जा जमाया था तथा उनके अधिकांश प्रत्याशी कई लाख वोटों के अंतर से विजयी हुए थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सात सीटों में से भाजपा के मुकाबले 5 सीटों पर कांग्रेस पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी। सत्तारुढ़ आप पार्टी सिर्फ 2 सीटों पर ही भारतीय जनता पार्टी के मुख्य मुकाबले में आ सकी थी। उस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 65 विधानसभा क्षेत्रों में व कांग्रेस को पांच विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी। जबकि आम आदमी पार्टी को एक भी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त नहीं मिली थी।

इस तरह देखा जाए तो दिल्ली के चुनाव में एक नया समीकरण उभर कर आया है। आम आदमी पार्टी कांग्रेस के परम्परागत मतदाताओं के बल पर ही सत्ता में आई थी। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी जैसे ही मजबूत हुई वैसे ही आम आदमी पार्टी का ग्राफ गिरा। दोनों ही पार्टियों के मतदाता वर्ग एक ही विचारधारा के हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी व कांग्रेस में से जो भी अधिक मतदाताओं को अपनी और कर पायेगा वही पार्टी बड़े दल के रूप में उभर सकेगी।

2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की 7 सीटों में भारतीय जनता पार्टी को 56.58 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को 22.46 प्रतिशत वोट तथा आम आदमी पार्टी को मात्र 18 प्रतिशत ही वोट मिले थे। इस तरह देखें तो कांग्रेस पार्टी जितनी अधिक मजबूत होती है आम आदमी पार्टी उतनी ही कमजोर होती है। जिसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलता है। पिछले लोकसभा चुनाव की तरह यदि इस बार के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी मजबूत होकर उभरती है तो निश्चय ही आम आदमी पार्टी को नुकसान होगा। जिसका भी भाजपा को ही सीधा लाभ मिलेगा।

2015 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की 70 सीटों में से आम आदमी पार्टी को 67 सीटें मिली थीं। उसे 48 लाख 78 हजार 397 वोट मिले थे जो कुल मतदान का 54.3 प्रतिशत थे। भारतीय जनता पार्टी को मात्र 3 सीटें व 28 लाख 90 हजार 485 वोट मिले थे। जो कुल मतदान के 32.2 प्रतिशत थे। वहीं कांग्रेस पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी। उसे 8 लाख 66 हजार 814 वोट मिले थे जो कुल मतदान का 9.3 प्रतिशत थे।

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2013 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 31 सीटें और 26 लाख 4 हजार 100 वोट मिले थे जो कुल मतदान का 33.7 प्रतिशत थे। आप को 28 सीटें और 23 लाख 22 हजार 330 वोट मिले थे जो कुल मतदान का 29.49 प्रतिशत थे। वहीं कांग्रेस को 8 सीटें व 19 लाख 32 हजार 933 वोट मिले थे तो कुल मतदान का 24.55 प्रतिशत थे। जनता दल यूनाइटेड, शिरोमणि अकाली दल व निर्दलिय को एक-एक सीट मिली थी।

2013 के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाई थी जो मात्र 48 दिन ही चली पायी थी। कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के कारण सरकार गिर गई थी। उसके बाद 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने बम्पर बहुमत के साथ वापसी करते हुये वर्तमान सरकार बनायी थी।

दिल्ली विधानसभा चुनाव का फैसला तो वहां के एक करोड़ 46 लाख 92 हजार 136 मतदाताओं के हाथ में है जिनमें 80 लाख 55 हजार पुरुष व 66 लाख 35 हजार महिला मतदाता हैं। इनका झुकाव जिस पार्टी की तरफ होगा जीत उसी की होगी। दिल्ली विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी सभी 70 सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ रही है। वहीं भारतीय जनता पार्टी 67 सीटों पर तथा उनकी सहयोगी पार्टी जनता दल यूनाइटेड 2 सीटों पर व लोक जनशक्ति पार्टी एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस पार्टी 66 सीटों पर व उसकी सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल 4 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र होने से दिल्ली के चुनाव का और भी महत्व बढ़ जाता है। हालांकि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है। दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेश होने से वहां उपराज्यपाल ज्यादा प्रभावी हैं। मगर फिर भी राज्य सरकार का अपना अलग महत्व होता है। पिछले 5 सालों में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार चल रही है वहीं दिल्ली में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार चल रही है। केन्द्र व दिल्ली में अलग-अलग दलों की सरकार होने से उनमें अकसर टकराव देखने को मिलता रहा है, जिसका असर दिल्ली के विकास पर भी पड़ा है। अब इस बात का फैसला तो दिल्ली के मतदाता ही करेंगे कि दिल्ली प्रदेश में भी केंद्र के साथ एनडीए की सरकार बनाएंगे या फिर वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को फिर से एक बार मौका देंगे। इसका पता तो 11 फरवरी को चुनाव परिणाम के बाद मिल पाएगा।

-रमेश सर्राफ धमोरा

(स्वतंत्र पत्रकार)

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