ईवीएम तो बहाना है, ''बड़े जनादेश'' को संदिग्ध बनाना है

अरविंद केजरीवाल और मायावती ने ईवीएम के खिलाफ जो अभियान चलाया है उस पर यही कहा जा सकता है कि यह दरअसल भाजपा को मिले ''बड़े जनादेश'' को जनता की नजर में संदिग्ध बनाने का प्रयास भर है।

पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में 'बड़ी हार' का मुंह देखने वाले दलों का आरोप है कि ईवीएम में गड़बड़ी कर उन्हें चुनाव हराया गया है। हालांकि यह आरोप लगाने से पहले वह यह भूल गये कि कभी इन्हीं ईवीएम की बदौलत वह भी 'सत्ता' तक पहुँच चुके हैं। इस आरोप को चुनाव आयोग ने बेबुनियाद बताया है तो केंद्र में सत्तारुढ़ पार्टी के नेताओं की तरफ से इसे 'हार की खीझ' उतारना बताया जा रहा है। ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाने वाली बसपा और आम आदमी पार्टी ने अपने समर्थकों के हवाले से मिली रिपोर्टों को आधार बनाकर जो दावे किये हैं उनके पक्ष में हालांकि कोई सुबूत नहीं पेश किये हैं। दूसरी ओर चुनाव आयोग आज भी अपने इस दावे पर दृढ़ है कि ईवीएम से छेड़छाड़ किसी भी तरह से संभव नहीं है और चुनाव पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ ही कराये जाते हैं।

खुद को धोखा दे रहे नेता

उत्तर प्रदेश की ही बात करें तो सभी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और चुनाव बाद होने वाले एक्जिट पोल बसपा की दयनीय स्थिति का अंदाजा लगा रहे थे जबकि पार्टी प्रमुख मायावती अपनी सरकार बनने के प्रति आशावान थीं। चुनाव परिणाम वाले दिन जैसे ही बसपा 20 से कम सीटों पर सिमटी, पार्टी की मुखिया मायावती ने भाजपा पर ईवीएम में गड़बड़ी कर धोखाधड़ी से चुनाव जीतने का आरोप लगा दिया, यही नहीं चुनावों में सत्ता गँवाने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी मायावती के इस आरोप का एक तरह से समर्थन करते नजर आये। दो दिन बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी लगा कि जब सभी राजनैतिक पंडित पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे तो पार्टी हार कैसे सकती है। उन्हें भी ईवीएम में गड़बड़ी नजर आयी और उन्होंने चुनाव आयोग से मांग की कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव बैलेट पेपर पर कराये जाएं। इसके अलावा केजरीवाल ने यह मांग भी की कि पंजाब में लगभग 32 स्थानों पर ईवीएम में दर्ज मतों की तुलना वीवीपीएटी (वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल) से कराई जाए, जहां पेपर ऑडिट प्रणाली सक्रिय थी। 

दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को जो 70 में से 67 सीटें मिली थीं उसके बारे में केजरीवाल का मानना है कि भाजपा को चूंकि अपनी जीत के प्रति अति आत्मविश्वास था इसलिए उसने ईवीएम में गड़बड़ी नहीं की। हालांकि केजरीवाल गोवा के चुनाव परिणाम पर खामोश हैं जहां उनकी पार्टी ने अपने आंतरिक सर्वेक्षणों में आप को 25 सीटें तक मिलने की बात कही थी जबकि हकीकत यह रही कि राज्य की 40 में से 39 सीटों पर आप उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी। केजरीवाल से यह पूछा जाना चाहिए कि लोकसभा चुनावों में भी कहीं भाजपा को 282 सीटें मिलना ईवीएम की गड़बड़ी तो नहीं थी? साफ है कि ऐसे आरोप तभी लगाये जाते हैं जब हार के असल कारणों की समीक्षा से मुंह मोड़ना हो। मायावती भी यही कर रही हैं। उनके पास मौका है कि वह अपनी पार्टी को फिर से खड़ा करने का प्रयास करें लेकिन इसकी बजाय 'लोकतंत्र की हत्या' आदि के आरोप लगाने में फिर से बसपा का वक्त जाया हो रहा है।

चुनाव आयोग का रुख

चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि दोबारा मतगणना नहीं होगी और जिसे भी कोई शिकायत है वह अदालत जा सकता है। आयोग ने इस संबंध में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपने की बात भी कही है। पूर्व चुनाव आयुक्तों ने भी साफ किया है कि ईवीएम में गड़बड़ी की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि एक तो मतदान से कुछ समय पहले ही चुनाव ड्यूटी में लगे कर्मचारियों को यह पता चलता है कि उन्हें कौन से क्रमांक की वोटिंग मशीन मिली है दूसरा मतदान से पहले उम्मीदवारों के पोलिंग एजेंटों को ईवीएम में यह दिखाया जाता है कि हर उम्मीदवार के नाम के आगे वाला बटन दब रहा है। मतदान खत्म होने के बाद भी पोलिंग एजेंटों की उपस्थिति में ईवीएम को सील किया जाता है और मतगणना तक उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस की बजाय अर्धसैनिक बलों के कंधों पर होती है। ईवीएम चूंकि इंटरनेट से नहीं जुड़ी होती है इसलिए इसे हैक भी नहीं किया जा सकता है। जहां तक वीवीपीएटी के मतों की गिनती की बात है तो उत्तर प्रदेश में यह 30 जगह लगी थीं और बताया जाता है कि उनके मतों की गिनती के बाद 30 में से 25 सीटों पर भाजपा विजयी रही। इस परिणाम को वृहद स्तर पर देखें तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के परिणामों में कोई गड़बड़ी नजर नहीं आएगी।

भाजपा जब विपक्ष में थी तब भी ईवीएम पर सवाल उठे थे तब सन 2009 के अगस्त माह में चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों की बैठक बुला कर उसमें विशेषज्ञों के माध्यम से यह साबित कराया था कि ईवीएम में गड़बड़ी करना संभव नहीं है। यही नहीं उस बैठक में हैकरों को भी आमंत्रित किया गया था लेकिन वह भी ईवीएम से कोई छेड़छाड़ करने में विफल रहे। चुनाव आयोग ने तो यहां तक कह रखा है कि जो कोई भी ईवीएम से छेड़छाड़ कर सकने का दावा करता है वह कभी भी आयोग आकर अपने दावे की सत्यता परख सकता है। भारत की ईवीएम की प्रतिष्ठा इतनी ज्यादा है कि विश्व के जिन देशों में भी ईवीएम का इस्तेमाल हो रहा है वह इसे भारत से ही खरीदते हैं। फिलहाल संसद की लोक शिकायत समिति ने महाराष्ट्र से मिली कुछ शिकायतों के आधार पर ईवीएम मामले की जाँच कराने की बात कही है देखना होगा समिति की रिपोर्ट क्या कहती है।

अदालतों में भी ईवीएम में कथित गड़बड़ी को लेकर कई बार मामले गये हैं लेकिन कभी भी इस बारे में कोई सुबूत नहीं मिले। उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग से हर पोलिंग बूथ पर वीवीपीएटी की व्यवस्था करने को कहा है और आयोग हर चुनाव में ज्यादा से ज्यादा बूथों पर इस तरह की व्यवस्था करवा रहा है। इस व्यवस्था के तहत मतदाता जब ईवीएम का बटन दबाता है तो ईवीएम के साथ लगी मशीन से एक पर्ची निकलती है जिसमें यह अंकित होता है कि किसे वोट दिया गया। यह पर्ची थोड़े समय में ही नीचे रखे बॉक्स में गिर जाती है जिसे चुनाव आयोग अपने पास सुरक्षित रखता है। विवाद की स्थिति में इन पर्चियों की गणना कर ईवीएम के नतीजों से उसकी तुलना की जा सकती है।

ताजा विवाद का आधार

अभी हाल ही में बीएमसी चुनावों के दौरान भी कुछ सीटों पर ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप लगाये गये। एक निर्दलीय उम्मीदवार का तो आरोप था कि उसे एक भी मत नहीं मिला जबकि उसने खुद को वोट दिया और उसके परिवार के सदस्यों ने भी। इसी आरोप को पकड़ कर केजरीवाल और मायावती अपने तर्क पेश कर रहे हैं। इस मामले में दिल्ली कांग्रेस प्रमुख अजय माकन की ओर से ईवीएम के प्रति जतायी गयी आशंका पर हैरत होती है क्योंकि वह केंद्र और राज्य में मंत्री रहे हैं और वस्तुस्थिति से अवगत हैं। ऐसे में किसी संवैधानिक संस्थान की निष्पक्षता पर सवाल उठाने से उन्हें बचना चाहिए था। यह बात विश्व प्रसिद्ध है कि सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव करवाने वाले संस्थान भारतीय निर्वाचन आयोग को उसकी निष्पक्षता के लिए जाना जाता है। विभिन्न देश अपने यहां चुनाव प्रक्रिया को सरल और निष्पक्ष बनाने के लिए भारतीय निर्वाचन आयोग की सेवाएं लेते रहते हैं। यही नहीं संयुक्त राष्ट्र की ओर से भी भारतीय निर्वाचन आयोग के अधिकारियों को विभिन्न देशों में चुनावों के समय पर्यवेक्षक बना कर भेजा जाता रहा है। यही नहीं पाकिस्तान में भी भारत की ईवीएम प्रणाली की काफी तारीफ होती है। 

बहरहाल, अरविंद केजरीवाल और मायावती ने ईवीएम के खिलाफ जो अभियान चलाया है उस पर यही कहा जा सकता है कि यह दरअसल भाजपा को मिले 'बड़े जनादेश' को जनता की नजर में संदिग्ध बनाने का प्रयास भर है। बसपा ने इस मामले में अदालत की शरण लेने की बात कही है वहां सब चीजें एक बार फिर साफ हो जाएंगी। यह कहना कि अमेरिका ने भी ईवीएम को छोड़कर बैलेट पेपर पद्धति को दोबारा अपना लिया तो हमें भी ऐसा करना चाहिए, कोई आधार नहीं है कि तकनीक के जमाने में हम पुराने ढर्रे पर लौटें। आजकल तो इंटरनेट के जरिये वोटिंग की बात कही जा रही है और गुजरात ने एक बार निकाय चुनावों के दौरान ऐसा सफल प्रयोग करके दिखाया भी है। अपने मन की शंका को दूर करने के लिए देश का समय बर्बाद करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।

- नीरज कुमार दुबे

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