Shri Mata Vaishno Devi Sangarsh Samiti ने Muslim Students के खिलाफ अपने प्रदर्शन को और तेज किया

Shri Mata Vaishno Devi Sangarsh Samiti
ANI

विरोध प्रदर्शन कर रहे संगठनों का कहना है कि यह मामला केवल आंकड़ों का नहीं, बल्कि भावनाओं और पहचान से जुड़ा है। उनका तर्क है कि जिस संस्थान की स्थापना हिंदू आस्था से जुड़े स्थल पर हुई हो, वहां स्थानीय हिंदू छात्रों की भागीदारी स्वाभाविक अपेक्षा है।

कटरा (जम्मू) स्थित श्री माता वैष्णो देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस हाल के दिनों में एक बड़े सामाजिक विवाद के केंद्र में आ गया है। संस्थान के पहले शैक्षणिक सत्र में हुए प्रवेश ने स्थानीय स्तर पर तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है। कुल 50 सीटों में से अधिकांश सीटों पर मुस्लिम छात्रों के चयन को लेकर कई हिंदू संगठनों ने आपत्ति दर्ज कराई है। हम आपको बता दें कि यह मेडिकल कॉलेज माता वैष्णो देवी के पवित्र तीर्थ क्षेत्र के निकट स्थित है और इसे धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ माना जाता है। इसी कारण स्थानीय लोगों और हिंदू संगठनों का मानना है कि यहां प्रवेश प्रक्रिया में क्षेत्रीय और सांस्कृतिक संतुलन को प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी।

विरोध प्रदर्शन कर रहे संगठनों का कहना है कि यह मामला केवल आंकड़ों का नहीं, बल्कि भावनाओं और पहचान से जुड़ा है। उनका तर्क है कि जिस संस्थान की स्थापना हिंदू आस्था से जुड़े स्थल पर हुई हो, वहां स्थानीय हिंदू छात्रों की भागीदारी स्वाभाविक अपेक्षा है। प्रदर्शनकारियों ने इसे असंतुलित चयन प्रक्रिया बताते हुए सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग की है।

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हम आपको यह भी बता दें कि दूसरी ओर, कॉलेज प्रशासन का कहना है कि प्रवेश पूरी तरह से राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (NEET) के अंकों के आधार पर हुआ है और इसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया गया। प्रशासन के अनुसार, कैंपस के भीतर शैक्षणिक गतिविधियाँ सामान्य रूप से चल रही हैं, कक्षाएं नियमित हैं और वातावरण शांतिपूर्ण है। छात्रों के बीच किसी तरह का टकराव नहीं देखा गया है। हालांकि, कैंपस के बाहर चल रहा विरोध प्रदर्शन अब एक बड़े सामाजिक विमर्श का रूप ले चुका है, जिसमें संस्कृति, धर्म, अधिकार और समानता जैसे मुद्दे केंद्र में आ गए हैं।

देखा जाये तो यह प्रदर्शन किसी समुदाय के विरुद्ध नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संतुलन की मांग है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वह योग्यता के विरोधी नहीं हैं, लेकिन यह भी उतना ही जरूरी है कि किसी धार्मिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले संस्थान में स्थानीय पहचान को पूरी तरह नज़रअंदाज़ न किया जाए। कई हिंदू परिवारों की आशंका यह भी है कि यदि संस्थान में प्रतिनिधित्व असंतुलित रहेगा, तो भविष्य में सामाजिक दूरी और असहजता बढ़ सकती है। बहरहाल, समाधान टकराव में नहीं, बल्कि संतुलन में है। प्रशासन को चाहिए कि वह योग्यता के साथ-साथ स्थानीय सहभागिता और सांस्कृतिक संदर्भों पर भी गंभीरता से विचार करे। तभी ऐसे प्रतिष्ठित संस्थान वास्तव में समावेशी और सामंजस्यपूर्ण बन पाएंगे।

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