जम्मू कश्मीर में फिदायीनों ने बदली हमलों की रणनीति

जम्मू कश्मीर के उन संवेदनशील संस्थानों की सुरक्षा के लिए बहुस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था अपनाई जाने लगी है जो अब आतंकवादियों के प्रमुख निशाने बनते जा रहे हैं। हालांकि सुरक्षा शिविर तो पहले से ही आतंकवादियों के निशाने पर थे अब रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे, टीवी स्टेशन, रेडियो स्टेशन और अन्य संवेदनशील संस्थानों के लिए नया खतरा पैदा हो गया है। और यह भी सच है कि करगिल युद्ध के बाद जम्मू कश्मीर में आरंभ हुए फिदायीन हमलों का रूप अब बदल गया है। यहां शुरूआत के फिदायीन हमलों में एक से दो आतंकी शामिल हुआ करते थे अब उनकी संख्या बढ़ कर 4 से 6 तक हो गई है। साथ ही नई रणनीति के तहत फिदायीनों ने एकसाथ हमले करने की बजाय कैंपों पर आगे और पीछे की रणनीति अपना कर सुरक्षा बलों को चौंकाना आरंभ किया है।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, कहर बरपाने तथा दहशत फैलाने के इरादों से आतंकवादी राज्यभर में, विशेषकर जम्मू संभाग के उन स्थलों पर हमले करने के इरादे लिए हुए हैं जो अभी तक सुरक्षित समझे जाते रहे हैं और इसी कारण उनकी सुरक्षा व्यवस्था की ओर कोई खास ध्यान ही नहीं दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक, ऐसे संस्थानों में जम्मू कश्मीर के सभी रेडियो स्टेशनों, रेलवे स्टेशनों, टीवी स्टेशनों तथा हवाई अड्डों पर सुरक्षा व्यवस्था को बहुस्तरीय बनाने के साथ-साथ वहां पर त्वरित कार्रवाई दलों को भी तैनात किया गया है ताकि किसी प्रकार की अप्रिय स्थिति से निपटने में वे सक्षम हो सकें।
बताया जाता है कि ऐसी सुरक्षा व्यवस्थाओं को अपनाने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई क्योंकि आतंकवादी ऐसे संवेदनशील स्थानों पर हमले कर उन्हें क्षति पहुंचाने की योजनाओं को अंतिम रूप दे रहे थे। ऐसी जानकारी गुप्तचर अधिकारियों ने अपने सूत्रों से मिली सूचनाओं के आधार पर दी है। अब जबकि आतंकवादी ऐसे सुरक्षित कहे जाने तथा संवेदनशील समझे जाने वाले स्थानों को निशाना बनाने की कोशिशें कर रहे हैं, बावजूद इसके सुरक्षा के प्रति अभी भी लापरवाही बरती जा रही है। हालांकि कई संवेदनशील संस्थानों की सुरक्षा के लिए बहुस्तरीय व्यवस्था को अपनाए जाने की बात कही तो जा रही है परंतु इन स्थानों का दौरा करने पर यह दावे कहीं कहीं झूठे साबित होते हैं।
अधिकारियों के अनुसार, राज्य के तीनों हवाई अड्डे पूरी तरह से आतंकवादियों के निशाने पर हैं। जम्मू के हवाई अड्डे की तो दशा यह है कि यह जिस स्थान पर है वहां से कुछ ही दूरी पर, निक्की तवी दरिया के क्षेत्र में आए दिन आतंकवादियों को मार गिराया जाता रहा है और मारे गए आतंकवादियों के कब्जे से बरामद होने वाले राकेटों से यह शक अवश्य पैदा होता रहा है कि वे हवाई अड्डे को निशाना बना सकते थे।
इसे आधिकारिक तौर पर माना जा रहा है कि जम्मू का हवाई अड्डा पूरी तरह से चारों ओर से आतंकवादियों के निशाने पर है तो जम्मू-पठानकोट रेल मार्ग के सभी रेलवे स्टेशनों के लिए पाकिस्तानी एजेंट खतरे के रूप में इसलिए मंडराते फिर रहे हैं क्योंकि रेलमार्ग भारत-पाकिस्तान सीमा के साथ-साथ चलता है जिस पर सीमा पार से आकर विस्फोटक पदार्थ लगाना बहुत ही आसान है। ऐसी घटनाएं पहले भी कई बार हो चुकी हैं।
नतीजतन स्थिति यह है कि जिन सुरक्षित समझे जाने वाले संस्थानों की सुरक्षा के लिए बहुस्तरीय व्यवस्थाएं अपनाई जा रही हैं उनके प्रति अधिकारी आप ही आशंकित हैं। वे मानते हैं कि जो आतंकवादी अति सुरक्षित समझे जाने वाले सुरक्षा शिविरों विशेषकर सैनिक छावनी को निशाना बना सकते हैं उनके हमलों से इन संस्थानों को कैसे बचाया जा सकता है। यह सच है कि फिदायीन हमला करने वालों ने अब अपनी रणनीति को भी पूरी तरह से बदल लिया है। अब उनका मकसद सुरक्षा बलों को अधिक से अधिक क्षति पहुंचाने के साथ ही ऐसा कुछ करने का है जो हमेशा पहली बार हो। यह बारामुल्ला में हुए फिदायीन हमले तथा पिछले साल अरनिया में हुए हमलों से साबित होता है।
जुलाई 1999 में जब करगिल युद्ध समाप्त हुआ तो 6 अगस्त 1999 को पहला फिदायीन हमला हुआ था। एक मात्र आतंकी ने फिदायीन की भूमिका निभाते हुए सैनिक शिविर के भीतर घुस कर हमला किया तो एक मेजर समेत तीन सैनिकों की मौत हो गई थी। पहले फिदायीन हमले के 17 सालों के बाद फिदायीन हमलों में शामिल होने वालों की संख्या अब एक से बढ़ कर 6 तक पहुंच गई है। जबकि पिछले साल अरनिया में हुए फिदायीन हमले में चार फिदायीनों ने शिरकत की थी। फिदायीन हमलों में सिर्फ फिदायीनों की संख्या ही नहीं बढ़ी है बल्कि उनकी रणनीति भी बदल गई है।
पिछले 17 सालों के दौरान होने वाले सैंकड़ों फिदायीन हमलों में अभी तक यही होता रहा था कि 2 से 3 आतंकी सैनिक शिविर में अंधाधुंध गोलीबारी करते हुए घुसने की कोशिश करते थे और जितने लोग सामने आते थे उन्हें ढेर कर देते थे। पर बारामुल्ला के 46 आरआर के कैंप पर हुए फिदायीन हमले में आतंकियों ने जो रणनीति अपनाई उसने सभी को चौंका दिया। उन्होंने दो दलों में बंट कर हमला बोला था। एक दल कैम्प में सामने से घुसने की कोशिश कर रहा था तो दूसरे ने कैंप के पीछे से हमला कर सभी को चौंका दिया था।
यही नहीं उड़ी में हुए फिदायीन हमले में पहली बार आतंकियों ने सैनिकों की बैरकों को भी आग लगा दी थी। आग लगने के कारण 14 सैनिक जल कर मारे गए। यह पहला अवसर था कि फिदायीनों ने सोए हुए सैनिकों को जिन्दा जला दिया था। दो हफ्तों में हुए दो बड़े फिदायीन हमलों का खास पहलू यह था कि दोनों ही हमलों में शामिल आतंकी अपने साथ राकेट लांचर और मोर्टार जैसे हथियार लेकर आए थे और अपने साथ वे इतना गोला-बारूद लेकर आए थे जो मुठभेड़ों को कई दिनों तक जारी रखने के लिए काफी थे। यही नहीं इन दोनों फिदायीन हमलों से एक और बात सामने आई कि दोनों ही हमले कई किमी भीतर आकर हुए हैं। जबकि दोनों ही हमलों में शामिल फिदायीनों ने ताजा घुसपैठ की थी और फिर सुरक्षा बलों पर हमले कर सभी को चौंकाया था।
- सुरेश डुग्गर
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