पूरी तरह रोजगार सृजन पर केंद्रित होना चाहिए इस बार का बजट

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दीपक गिरकर । Jan 21 2020 12:38PM

बेरोजगारी का एकमात्र निदान स्वरोजगार नहीं है। सरकार अपने सभी विभागों व उपक्रमों में रिक्त पड़े पदों को क्यों नहीं भर रही है? केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों में लाखों पद रिक्त पड़े हैं। देश में जनसंख्या के हिसाब से डॉक्टर्स की संख्या भी बहुत कम है।

तेजी से बदलते विश्व आर्थिक परिवेश में जहाँ "उद्योग 4.00" भारत तथा पूरे विश्व में एक लोकप्रिय शब्द बन चुका है। हम चौथी औद्योगिक क्रान्ति से गुजर रहे हैं, जहां रोबोटिक्स, संवर्धित वास्तविकता, इंटरनेट ऑफ थिंग्स आदि गतिविधियां महत्वपूर्ण और निर्णायक हो रही हैं। ऐसी परिस्थितियों में हमारे देश को रोजगार सृजन की चुनौती से सामना करना पड़ रहा है। देश में बेरोजगारी दर 46 साल के उच्च स्तर 8.5 फीसदी पर पहुंच गई है। देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि बेरोजगारी दर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। पिछले कुछ सालों से एक ओर लोगों को रोजगार मिलने की संख्या में काफी गिरावट आई है और दूसरी ओर कई लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। युवाओं को नौकरियाँ ढूंढ़ने पर भी नहीं मिल रही हैं।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के मुताबिक़ देश के ग्रामीण और शहरी इलाकों में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। सीएमआईई ने जो डाटा जारी किया था उसके मुताबिक़ 2016 से 2018 के बीच सिर्फ 2 सालों में 1.1 करोड़ लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था और वर्ष 2018 से 2019 के बीच करीब 60 लाख लोग बेरोजगार हो गए। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 में इससे पिछले वित्तीय वर्ष 2018-19 की तुलना में 16 लाख कम नौकरियों का सृजन हुआ है। बड़े उद्योग भी देश की बेरोजगारी की समस्या को दूर नहीं कर पा रहे हैं। देश के लगभग 80 फीसदी घरों में नियमित आय का कोई साधन नहीं है। संगठित उपक्रमों में युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा हैं और असंगठित क्षेत्र के छोटे उद्योग सरकारी उपेक्षा के शिकार हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 81 लाख रोजगारों की जरूरत है।

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देश में संगठित क्षेत्र के रोजगार सृजन की स्थिति सामाजिक सुरक्षा लाभों में योगदान देने वाली एजेंसियों से मिलती है। ये एजेंसियां हैं भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ), कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) और राष्ट्रीय पेंशन फण्ड (एनपीएस)। परिवहन क्षेत्र से भी रोजगार सृजन के आंकड़े मिलते हैं। पेशेवर सेवा प्रदाताओं (चार्टर्ड अकाउंटेंट, वकील, डॉक्टर) का नियमन करने वाली संबंधित संस्थाओं से इनके रोजगार सृजन के आंकड़े मिलते हैं। आयकर विभाग से भी नए करदाताओं के रूप में रोजगार सृजन की जानकारी मिलती है। डिजिटल होती दुनिया में रोजगार का स्वरूप बदल रहा है जिसमें फ्रीलान्स कार्य एक निश्चित अवधि तक लोगों को मिल रहा है, इसे गिग इकोनॉमी का नाम दिया गया है। गिग इकोनॉमी अनौपचारिक श्रम क्षेत्र का ही विस्तार है जिसमें श्रमिकों, काम करने वाले लोगों को बहुत कम भुगतान होता है और सामाजिक सुरक्षा, बीमा इत्यादि सुविधा भी नहीं है। गिग इकोनॉमी में कंपनी द्वारा तय समय में प्रोजेक्ट पूरा करने के एवज में भुगतान किया जाता है। इस अर्थव्यवस्था में कंपनी का काम करने वाला व्यक्ति कंपनी का कर्मचारी / मुलाजिम नहीं होता है। गिग इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए देश में कुछ स्टार्टअप और कुछ कंपनियां कार्य करने लग गई हैं। स्विगी, जोमैटो, उबर और ओला जैसी कंपनियां गिग इकोनॉमी के तहत ही काम कर रही हैं और ड्राइवर, डिलीवरी बॉय को मामूली भुगतान कर रही हैं तथा रोजगार सुरक्षा भी प्रदान नहीं कर रही हैं।

मोदी सरकार ने बड़े जोर-शोर से स्टार्टअप इंडिया शुरू किया लेकिन स्टार्टअप इंडिया का लाभ सिर्फ 18 फीसदी स्टार्टअप्स को ही मिल रहा है। नौकरशाही की वजह से नए उद्यमी परेशान हैं। प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) और मुद्रा लोन योजना सहित विभिन्न सरकारी योजनाओं की असफलता का ठीकरा बैंकों पर फोड़ा जाता है। सरकारी अधिकारियों के अनुसार बैंक लोन की प्रक्रिया बहुत जटिल है, बैंक सरकारी योजनाओं में ऋण स्वीकृत करने की इच्छुक नहीं रहते हैं, बैंक समय पर ऋण स्वीकृत करके वितरित नहीं करते हैं, बैंक कम ऋण राशि स्वीकृत करते हैं। जबकि विभिन्न सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की तस्वीर कुछ अलग ही है। सही मार्गदर्शन, प्रशिक्षण और पर्यवेक्षण के अभाव में अधिकतर सरकारी योजनाएँ रोजगार की दृष्टि से असफल रही हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ लेने वाले अधिकाँश आवेदकों की रूचि सिर्फ बैंक से लोन लेने में होती है, जिन आस्तियों के लिए बैंक ने वित्त पोषण किया था या तो वे उसे खरीदते ही नहीं हैं या उन्हें बेच देते हैं और बिक्री से प्राप्त राशि का दुरुपयोग कर देते हैं।

सरकारी योजनाओं में ऋणी द्वारा बेईमानी से ऋण राशि का डाइवर्जन किया जाता है। जिन उद्देश्यों के लिए ऋणी द्वारा ऋण लिया गया उसका उपयोग उन उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाता है। ऋणी ऋण राशि का इस्तेमाल निजी उपयोग, धोखाधड़ी, ग़लत विनियोग में कर देते हैं। जिला उद्योग केन्द्र और अन्य सरकारी संस्थाओं में संबंधित अधिकारी अनुचित तत्परता के कारण ऋण प्रपोज़ल का यथोचित मूल्यांकन नहीं कर पाते हैं। सरकारी योजनाओं के टारगेट पूरा करने के चक्कर में वे जैसा ऋण प्रस्ताव आवेदक बनाकर लाता है, उसी को वे बैंक में प्रेषित कर देते हैं। सरकारी अधिकारी सिर्फ कागजी कार्यवाही करके सरकारी योजनाओं की प्रगति और रोजगार के आंकड़े जारी कर देते है जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है। सरकार प्रत्येक बजट में नई स्वरोजगार योजना ले आती है लेकिन सरकारी मशीनरी द्वारा किसी भी सरकारी योजना का सही क्रियान्वयन नहीं किया जा रहा है। सरकार रोजगार सृजन के जो आंकड़े प्रस्तुत करती है, वे सिर्फ कागजी आंकड़े होते हैं। मेक इन इंडिया योजना से भी रोजगार सृजन में बढ़ोतरी नहीं हुई है। एक नया कारोबार या नया स्टार्टअप शुरू करने के मामले में आवश्यक परमिटों एवं निबंधनों की एक लम्बी-चौड़ी सूची से पाला पड़ता है और उस सूची का अनुपालन एक जटिल और बोझिल प्रक्रिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था की पर की गई सभी समीक्षाओं और रिपोर्ट्स के अनुसार नोटबंदी और जीएसटी लागू होने से भारी तादाद में बेरोजगारी बढ़ी है और नए रोजगार भी सृजित नहीं हुए हैं।

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रोजगार में कमी से अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है। भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास दर और रोजगार दर में हमेशा असंतुलन रहा है। आर्थिक सुधार की विसंगतियों और सरकारी मशीनरी के लुंज-पुंज रवैये का परिणाम है बेरोजगारी। आर्थिक नव उदारवाद के नाम पर औद्योगिक घरानों के हित साधकर और निजीकरण को बढ़ावा देकर लघु और कुटीर उद्योगों पर कुठाराघात किया गया है, इससे सभी क्षेत्रों में रोजगार का भयावह संकट पैदा हुआ है। रोजगार सृजन आज देश की सबसे बड़ी चुनौती है। इस बजट में सरकार का पूरा ध्यान आर्थिक सुस्ती को दूर करने पर होगा। आर्थिक सुस्ती दूर होने के लिए मांग बढ़नी चाहिए और मांग तभी बढ़ेगी जब युवाओं के पास रोजगार होगा। विश्वभर में भारत में सबसे अधिक युवा जनसंख्या है। देश में चुनाव जीतने का मूलमंत्र है युवाओं का दिल जीतना और युवाओं का दिल उन्हें रोजगार प्रदान करके ही जीता जा सकता है। हमारे देश में अभी तक सेवा क्षेत्र पर ही अधिक जोर दिया जाता रहा है।

बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे, ऐसी नीतियों पर काम करना होगा जिसमें श्रम सघन उत्पादन क्षेत्र को बढ़ावा मिल सके। बुनियादी ढांचा विकास, एमएसएमई, छोटे उद्योग, श्रम गहन इकाइयों, कुटीर उद्योग, हथकरघा उद्योग, स्टार्टअप, विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज), पर्यटन उद्योग, पिछड़े क्षेत्रों में औद्योगीकरण को बढ़ावा देकर रोजगार में वृद्धि की जा सकती है। यह कहना सरासर गलत है कि बेरोजगार युवाओं में कौशल और तकनीकी गुणवत्ता की कमी है। ग्रामीण युवाओं को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध भौतिक व प्राकृतिक संसाधनों के अनुसार उद्योगों की स्थापना करवा कर ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार सृजन किया जा सकता है। कुटीर उद्योग, हथकरघा उद्योग और छोटे उद्योगों को अधिक प्रोत्साहन की जरूरत है। सरकार की नीतियां बड़ी कंपनियों पर ही केंद्रित हैं। बेरोजगारी का एकमात्र निदान स्वरोजगार नहीं है। सरकार अपने सभी विभागों व उपक्रमों में रिक्त पड़े पदों को क्यों नहीं भर रही है? केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों में लाखों पद रिक्त पड़े हैं। देश में जनसंख्या के हिसाब से डॉक्टर्स की संख्या बहुत कम है। देश में नए मेडिकल कॉलेज खोले जाने चाहिए और वर्तमान में जो मेडिकल कॉलेज हैं उनमें सीटें बढ़ाई जानी चाहिए। सरकार को बजट में अधिक रोजगार जुटाने वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। विभिन्न ट्रेड यूनियनों और श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने एमएसएमई के माध्यम से रोजगार सृजन के पुनरुद्धार के लिए एक अलग कोष की मांग की है। केंद्र सरकार विभिन्न क्षेत्रों में 102 लाख करोड़ रुपये की आधारभूत परियोजनाओं को ला रही है, इससे नए रोजगार सृजित होंगे। सिर्फ निजी निवेश को बढ़ावा देने से ख़ास नतीजे नहीं दिखेंगे, इसके लिए निजी क्षेत्र के साथ सार्वजनिक क्षेत्र को भी बढ़ावा देना होगा। विदेशी बाजारों पर भी फोकस करके रोजगार सृजन में बढ़ोतरी की जा सकती है। अब वर्ष 2020-21 के बजट में विकास की योजनाओं और देश के बेरोजगार युवाओं के हितों को ध्यान में रखकर ठोस योजनाओं का ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए, तभी हमारे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और रोजगार सृजन की चुनौती से निपट सकेंगे।

-दीपक गिरकर

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