हर-हर गंगे, नमामि गंगे...मोदी ने इस तरह बदल दी जीवनदायिनी माँ गंगा की दशा
पांच सालों के भीतर लागू की जा सकने वाली गतिविधियों में, अतिरिक्त ट्रीटमेंट कैपेसिटी का निर्माण कर, नगर निकायों और औद्योगिक क्षेत्रों से गंगा में आने वाले अपशिष्ट की समस्या को हल करना जैसे लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं।
भारतीय संस्कृति में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है। एक ऐसी मां, जो अपने बच्चों का भरपूर ख्याल रखती है। लेकिन, अगर मां ही स्वस्थ नहीं होगी, तो वह अपने बच्चों का ध्यान कैसे रख पाएगी। जीवनदायिनी मां गंगा के बिगड़ते स्वास्थ्य में, सबसे ज्यादा उसकी संतानों यानि हम इंसानों का ही सबसे बड़ा हाथ रहा है। हम अपने लालच और लापरवाही के चलते लगातार उसकी उपेक्षा करते गए और उसकी हालत बिगड़ती गई।
लेकिन, 2014 में केंद्र में एक नई और सबसे मजबूत सरकार का गठन, सबको वर देने वाली मां गंगा के लिए स्वयं जैसे काशीपति भगवान शिव के वरदान की तरह रहा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से चुने जाने के तुरंत बाद, वाराणसी जाकर गंगा को प्रणाम करते हुए कहा, ‘मां गंगा की सेवा करना मेरी नियति है…’ और मां गंगा को उनका खोया गौरव एवं मूल स्वरूप वापस लौटाने का संकल्प लिया।
इसी प्रतिबद्धता को प्रधानमंत्री ने कुछ समय बाद फिर दोहराया। 2014 में, न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए श्री मोदी ने उन्हें गंगा नदी के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व के बारे में बताते हुए कहा था कि देश की 40% आबादी गंगा नदी पर निर्भर है। अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हो गए तो यह इस आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। अतः गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है।
प्रधानमंत्री जी का यह संकल्प 2014 में ही साकार होना शुरू हो गया, ‘नमामि गंगे’ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण कार्यक्रम के रूप में। गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य के साथ आरंभ होने वाले इस कार्यक्रम के लिए अगले पांच सालों के लिए निर्धारित बजट को चार गुना बढ़ाकर बीस हजार करोड़ रुपये कर दिया गया, ताकि इसमें किसी प्रकार की रुकावट न आए। सौ प्रतिशत केंद्रीय भागीदारी वाली इस कार्ययोजना को केंद्रीय मंत्रीमंडल ने भी अपनी मंजूरी दे दी।
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‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम
जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा फ्लैगशिप कार्यक्रम के रूप में अनुमोदित ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग तथा जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत संचालित है। इसका क्रियान्वयन राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) और इसके राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूहों द्वारा किया जाता है। एनएमसीजी माननीय प्रधानमंत्री जी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय गंगा परिषद की कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य करता है, जिसका गठन गंगा नदी के कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन के उद्देश्य से किया गया था। इसके प्रमुख लक्ष्यों में मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को पूर्व अवस्था में लाना और सीवेज के प्रवाह की जांच के लिये रिवरफ्रंट के निकास बिंदुओं पर प्रदूषण को रोकने हेतु तत्काल अल्पकालिक कदम उठाना, सतही प्रवाह और भूजल को बढ़ाना व बनाए रखना, प्राकृतिक मौसम परिवर्तन में बदलाव के बिना जल प्रवाह की निरंतरता बनाए रखना, क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पतियों को पुनर्जीवन और उनका रखरखाव, गंगा नदी बेसिन की जलीय जैव विविधता के साथ-साथ तटवर्ती जैव विविधता का संरक्षण व उन्हें पुनर्जीवित करना और इस सब को हासिल करने के लिए नदी के संरक्षण, कायाकल्प और प्रबंधन की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना शामिल हैं। इस दिशा में गंगा की सफाई, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों की स्थापना तथा नदी की जैविक विविधता के संरक्षण के लिये वर्ष 2014 में लिए स्वच्छ गंगा कोष का गठन किया गया था।
समन्वय का उत्कृष्ट उदाहरण
भौगोलिक दृष्टि से बहु-क्षेत्रीय और स्वभाव में बहु-आयामी गंगा संरक्षण की चुनौती से निपटने में बहुत से लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि कार्ययोजना की तैयारी एवं इस पर अमल में सभी की सहभागिता हो और विभिन्न मंत्रालयों के बीच और केंद्र और राज्य में अच्छा समन्वय हो, ताकि हर स्तर पर निगरानी तंत्र को बेहतर बनाया जा सके। इसके लिए देश में विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किये गए हैं, जिनमें मानव संसाधन विकास मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, रेल मंत्रालय, नौवहन मंत्रालय, पर्यटन मंत्रालय, आयुष मंत्रालय, पेट्रोलियम मंत्रालय, युवा मामले मंत्रालय और खेल, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय व कृषि मंत्रालय आदि शामिल हैं।
परस्पर समन्वय और सामंजस्य के इसी विचार को सार्थक करते हुए भारत सरकार का पर्यटन मंत्रालय गंगा के किनारे वाले क्षेत्रों में पर्यटन सर्किट के विकास के लिये एक विस्तृत और दीर्घकालिक योजना पर काम कर रहा है, तो कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय गंगा के तटवर्ती इलाकों में ऑर्गेनिक फार्मिंग और नेचुरल फार्मिंग कॉरिडोर के निर्माण की दिशा में प्रयास कर रहा है और जल उपयोग दक्षता में सुधार के साथ पर्यावरण हितैषी कृषि को बढ़ावा दे रहा है। इनके अलावा आवासन एवं शहरी मामले मंत्रालय स्वच्छ भारत मिशन 2.0 और अमृत 2.0 (कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन) के अंतर्गत शहरी नालों की मैपिंग तथा गंगा शहरों में ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन पर विशेष ध्यान दे रहा है। इसी प्रकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भी गंगा बेल्ट में वनीकरण गतिविधियों और 'प्रोजेक्ट डॉल्फिन' को बढ़ावा देने की एक व्यापक योजना पर काम कर रहा है।
समन्वय और सहभागिता को आगे बढ़ाते हुए इस कार्यक्रम में युवाओं और जनता को साथ लेकर गंगा नदी के संरक्षण और प्रदूषण मुक्ति की दिशा में योगदान के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए परियोजना के अंतर्गत निर्धारित गतिविधियों के संपादन के लिए प्रशिक्षित और अत्यधिक प्रेरित स्थानीय युवाओं का कैडर विकसित करना, गंगा नदी के संरक्षण और इसके प्रदूषण को रोकने के लिए स्थानीय ग्रामीणों व युवाओं का सहयोग हासिल करना और इसका लाभ उठाना, परियोजना के विभिन्न स्तरों पर समर्थन, मार्गदर्शन, पारदर्शिता, निगरानी और ऑडिट के लिए एक संस्थागत तंत्र स्थापित करना, गंगा के प्रदूषण के दुष्प्रभावों को लेकर जागरूकता का प्रसार करना और संबंधित व्यक्तियों को इसे कम करने के तरीकों के बारे में शिक्षित करना, स्वच्छ गंगा के लिए जनसुविधाओं की उपलब्धता, जल संचयन, संरक्षण आदि से संबंधित सरकारी कार्यक्रमों, योजनाओं और सेवाओं के बारे में जानकारी प्रदान करना जैसे उपायों को अपनाया जा रहा है।
चरणबद्ध क्रियान्वयन
कार्यक्रम को क्रियान्वयन की दृष्टि से तीन प्रकार की गतिविधियों में बांटा गया है। एक, ऐसी आरंभिक गतिविधियां, जिन्हें तुरंत लागू किया जा सके। दूसरी, ऐसी गतिविधियां, जिन्हें पांच सालों के भीतर लागू किया जाना है और तीसरी ऐसी गतिविधियां, जिन्हें दस साल के भीतर लागू किया जाना है।
तुरंत लागू की जा सकने वाली गतिविधियों में जहां गंगा की ऊपरी सतह की स्वच्छता, इसमें बहते हुए सॉलिड वेस्ट की समस्या को हल करना, शौचालयों का निर्माण, ग्रामीण क्षेत्रों की स्वच्छता, ऐसे क्षेत्रों की नालियों से बहकर लिक्विड व सॉलिड वेस्ट का प्रबंधन, शवदाह गृहों का निर्माण, आधुनिकीकरण कर अधजले शवों को गंगा में बहाये जाने से रोकना, घाटों के निर्माण, मरम्मत और आधुनिकीकरण कर मनुष्य और नदियों के बीच आत्मीय संबंधों को प्रोत्साहन देना आदि शामिल हैं।
वहीं, दूसरे प्रकार की यानि पांच सालों के भीतर लागू की जा सकने वाली गतिविधियों में, अतिरिक्त ट्रीटमेंट कैपेसिटी का निर्माण कर, नगर निकायों और औद्योगिक क्षेत्रों से गंगा में आने वाले अपशिष्ट की समस्या को हल करना जैसे लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। नमामि गंगे मिशन के तहत उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान राज्यों में 48 सीवेज प्रबंधन परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं और 98 सीवेज परियोजनाएं पूरी की जा चुकी हैं। औद्योगिक प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए कार्यक्रम में गंगा के किनारे स्थित अधिक मात्रा में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को कहा गया है कि गंदे पानी की मात्रा कम करें या इसे पूर्ण तरीके से समाप्त करें। साथ ही सभी उद्योगों को गंदे पानी के बहाव के लिए रियल टाइम ऑनलाइन निगरानी केंद्र स्थापित करने होंगे।
दीर्षकालिक उपायों के अंतर्गत इस कार्यक्रम को बेहतर और टिकाऊ बनाने के लिए प्रमुख वित्तीय सुधार किये जा रहे हैं। परियोजना के सुचारू क्रियान्वयन के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर विचार किया जा रहा है, ताकि प्रयोग किये गए पानी के लिए एक बाजार बनाया जा सके और परिसंपत्तियों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
बहुउद्देश्यीय कार्यक्रम
प्रथम दृष्टया, इस कार्यक्रम को देखने पर प्रतीत होता है कि यह सिर्फ गंगा नदी को प्रदूषण और अस्वच्छता से मुक्त कराकर उसे उसका पुराना वैभव और सौंदर्य लौटाने के उद्देश्य से तैयार किया गया कार्यक्रम है। लेकिन, अगर हम इसे गहराई से देखें, तो समझ में आएगा कि यह एक ऐसा दूरदर्शितापूर्ण और सुविचारित कार्यक्रम है, जिसके प्रभाव बहुत व्यापक होने वाले हैं। और यह सिर्फ एक नदी का ही नहीं, बल्कि पूरे देश का कायाकल्प करने वाला कार्यक्रम साबित होगा। इसीलिए सरकार अब स्वच्छता संबंधी प्रयासों के साथ-साथ गंगा नदी के संरक्षण, पर्यटन संबंधी सुधारों और आर्थिक विकास सुनिश्चित करने पर भी खासी तवज्जो दे रही है।
‘अर्थ गंगा’ और ‘ग्राम गंगा’ इस मिशन के ऐसे ही कुछ निहित कार्यक्रम हैं। दिसंबर, 2019 में सम्पन्न राष्ट्रीय गंगा परिषद की प्रथम बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्थ गंगा का विचार प्रस्तुत किया था, जिसका उद्देश्य गंगा से संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान देना और साथ ही साथ सतत् विकास का एक मॉडल विकसित करना है। अर्थ गंगा के अंतर्गत सरकार जिन छह कार्यक्षेत्रों पर काम कर रही है, उनमें नदी के दोनों और दस किमी तक रासायनिक मुक्त खेती और गोबर-धन योजना के माध्यम से खाद के रूप में गोबर को बढ़ावा देने वाली जीरो बजट प्राकृतिक खेती, कचरा और अपशिष्ट जल को उपचारित कर स्थानीय शहरी निकायों के लिये सिंचाई, उद्योगों तथा राजस्व सृजन हेतु जल का पुन: उपयोग करना, आजीविका के अवसरों का सृजन करना, नदी से जुड़े हितधारकों के बीच तालमेल के माध्यम से जनभागीदारी बढ़ाना, गंगा एवं उसके आसपास की पर्यटन को बढ़ावा देना व आदर्श उपयुक्त जल प्रशासन के लिये स्थानीय प्रशासन को मजबूती प्रदानकर संस्थागत विकास को बढ़ावा देना शामिल हैं।
वहीं गंगा नदी के तट पर स्थित गांवों में सम्पूर्ण स्वच्छता सुनिश्चित करने के उद्देश्य को लेकर आरंभ ग्राम गंगा परियोजना के अंतर्गत, वर्ष 2017 में पांच गंगा राज्यों, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल, के लगभग साढ़े चार हजार गांवों को ‘खुले में शौच से मुक्त गांव’ घोषित किया गया और 24 ऐसे गांवों का चयन किया गया, जिन्हें एक वर्ष के भीतर गंगा ग्राम के रूप में परिवर्तित किया जाना था। ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से गंगा तट पर बसे गांवों के सम्पूर्ण विकास के लिये एकीकृत दृष्टिकोण अपनाते हुए गंगा ग्राम परियोजना में सॉलिड व लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट, तालाबों व अन्य जल स्रोतों का पुनरोद्धार, जल संरक्षण परियोजनाओं, जैविक खेती, बागवानी तथा औषधीय पौधों को प्रोत्साहन आदि शामिल हैं।
इसी के माध्यम से रोजगार सृजन पर भी काफी जोर दिया जा रहा है। इस क्रम में समयबद्ध तरीके से घाट में हाट, आयुर्वेद, जड़ी-बूटियां, स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना, गंगा प्रहरी और गंगा दूत जैसे स्वयंसेवी तैयार करने की योजनाओं पर अमल जारी है। इसके अलावा गंगा किनारे की सांस्कृतिक विरासतों का दर्शन, पर्यटन, एडवेंचर पर्यटन, नौका पर्यटन व योग को प्रोत्साहन देकर स्थानीय स्तर पर जीविकोपार्जन के साधन विकसित किये जाने पर भी काम चल रहा है।
इन गतिविधियों के अलावा कार्यक्रम में जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण और पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए भी कदम उठाए गए हैं और कछुए, गंगा डॉल्फिन, घड़ियाल, गोल्डन महासीर आदि जैसी महत्वपूर्ण जलजीव प्रजातियों के संरक्षण के लिए कार्यक्रम शुरू किये गये हैं। अभी तक 4.25 अरब डॉलर निवेश वाली इस पहल में 230 संगठन शामिल हैं, जिनके साथ मिलकर करीब 30,000 हेक्टेयर जमीन का वनीकरण किया जा चुका है और 2030 तक 1,34,000 हेक्टेयर भूमि का वनीकरण करने का लक्ष्य है।
इस प्रकार बीते एक दशक में यह कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ता गया है और अपने खाते में एक के बाद एक उपलब्धियां दर्ज करता गया है। इन्हीं उपलब्धियों के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ग्लोबल वाटर इंटेलिजेंस द्वारा ग्लोबल वाटर अवार्ड्स, 2019 में “पब्लिक वाटर एजेंसी ऑफ द ईयर” पुरस्कार जीत चुका है। यह इस कार्यक्रम की बढ़ती लोकप्रियता और प्रतिष्ठा का ही नतीजा है कि ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, फिनलैंड, इजराइल आदि देशों ने गंगा कायाकल्प के लिए भारत के साथ सहयोग करने में रुचि दिखाई है। इस कार्यक्रम को पिछले साल संयुक्त राष्ट्र द्वारा दुनिया की दस सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलों में शामिल किया गया है। गत वर्ष दिसंबर माह में कनाडा के मॉन्ट्रेयल में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (सीओपी15) के दौरान जारी एक रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि भारत की पवित्र नदी गंगा के मैदानी हिस्सों की सेहत सुधारने के उद्देश्य वाली परियोजना दुनिया भर की उन दस ‘बड़ी महत्त्वपूर्ण’ पहलों में से एक है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने प्राकृतिक दुनिया को बहाल करने में उनकी भूमिका के लिए चिन्हित किया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, गंगा नदी पुनर्जीवन परियोजना में गंगा के मैदानी हिस्सों की सेहत बहाल करने, प्रदूषण कम करने, वन्य क्षेत्र का पुन: निर्माण करने तथा इसके विशाल तलहटी वाले इलाकों के आसपास रह रहे 52 करोड़ लोगों को व्यापक फायदे पहुंचाने के लिए अहम है। अब मिशन को संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी परामर्श और वित्त पोषण दिया जाएगा।
नमामि गंगे 2.0
नमामि गंगे कार्यक्रम के दूसरे चरण (2021-26) में सीवेज ट्रीटमेंट, रिवर फ्रंट डेवलपमेंट, नदी-सतह की सफाई, जैव विविधता, वनीकरण, जन जागरण, औद्योगिक प्रवाह निगरानी व गंगा ग्राम जैसे पहले से चल रहे उपक्रमों को जारी रखते हुए समस्त परियोजनाओं के रख-रखाव पर और जोर दिया जाएगा। साथ ही इसमें छोटी नदियों और आर्द्रभूमि के पुनरुद्धार पर भी ध्यान दिया जा रहा है। इसके अंतर्गत प्रत्येक प्रस्तावित गंगा जिले में कम से कम 10 आर्द्रभूमि हेतु वैज्ञानिक योजनाओं और स्वास्थ्य कार्ड का प्रावधान है। इसके अलावा इसमें शहरी स्थानीय निकायों से जुड़े कार्यक्रमों एवं योजनाओं तथा यमुना, काली एवं अन्य सहायक नदियों की स्वच्छता संबंधी परियोजनाओं पर भी कार्य होगा। राज्य परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने और गंगा के सहायक शहरों में परियोजनाओं के लिये विश्वसनीय विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
-प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी
महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली
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