राजग के और साथी नाराज हुए तो भाजपा का दम फूलने लगेगा

If the NDA partners become angry, then the BJP will in trouble

ज्यों-ज्यों 2019 का आम चुनाव पास आता जा रहा है, भारतीय जनता पार्टी की मुसीबतें बढ़ रही हैं। कश्मीर, पंजाब और महाराष्ट्र की जिन प्रांतीय पार्टियों से भाजपा का गठबंधन है उनके साथ उसकी तनातनी पहले से ही चल रही है।

ज्यों-ज्यों 2019 का आम चुनाव पास आता जा रहा है, भारतीय जनता पार्टी की मुसीबतें बढ़ रही हैं। कश्मीर, पंजाब और महाराष्ट्र की जिन प्रांतीय पार्टियों से भाजपा का गठबंधन है उनके साथ उसकी तनातनी पहले से ही चल रही है। अब आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने भी उसके सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है। उसकी मांग है कि आंध्र को ‘विशेष श्रेणी’ राज्य का दर्जा दिया जाए। पार्टी यह मांग 2014 से ही कर रही है, जब से आंध्र प्रदेश का विभाजन करके तेलंगाना राज्य का निर्माण हुआ है।

तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संसद में उसे विशेष श्रेणी का राज्य बनाने का स्पष्ट आश्वासन दिया था। तब विरोधी दल के रूप में भाजपा ने भी इसका समर्थन किया था। किंतु अब जैसे ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की कि मोदी सरकार आंध्र प्रदेश को उक्त दर्जा नहीं दे सकती, क्योंकि 14वें वित्त आयोग ने इसका समर्थन नहीं किया है तो टीडीपी के दो केंद्रीय मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया।

‘विशेष श्रेणी’ राज्य का दर्जा उन्हीं राज्यों को दिया जाता है, जो बहुत दुर्गम हों, गरीब हों, कम जनसंख्या वाले हों, सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हों और जिनके आय के स्रोत बहुत कम हों। ऐसे राज्यों के कुल खर्च का 90 फीसदी केंद्र सरकार देती है। ऐसे राज्यों में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, असम, अरुणाचल, नगालैंड, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा, सिक्किम और मणिपुर शामिल हैं।

आजकल बिहार, तमिलनाडु और गोवा ने भी विशेष श्रेणी की रट लगा रखी है। केंद्र सरकार आंध्र को यदि वह दर्जा दे देगी तो देश के कई और राज्य कतार लगाकर खड़े हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में आंध्र के प्रति केंद्र के रवैए को गलत नहीं कहा जा सकता। केंद्र ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री को पक्का भरोसा दिलाया है कि वह आंध्र प्रदेश को उतना ही पैसा देगी, जितना विशेष श्रेणी घोषित किए जाने पर मिलता लेकिन, नायडू का कहना है कि विशेष श्रेणी न मिलना आंध्र प्रदेश का अपमान है खासतौर पर तब जब तेलुगु देशम पार्टी केंद्र सरकार और भाजपा की सहयोगिनी है।

नायडू के इतने सख्त रवैए के पीछे मुझे दो कारण दिखाई पड़ते हैं। पहला कारण तो यह है कि आंध्र प्रदेश में विरोधी दल ‘रेड्‌डी कांग्रेस’ (वाईएसआर कांग्रेस) के नेता जगन मोहन रेड्‌डी ने ‘विशेष श्रेणी’ की मांग को उग्र आंदोलन का रूप दे दिया है। वे आंध्र प्रदेश के स्वाभिमान के प्रतीक-पुरुष बनने की कोशिश कर रहे हैं। ठीक वैसे जैसे 36 साल पहले एनटी रामाराव बन गए थे। चंद्रबाबू नायडू से ज्यादा इस बात को कौन समझ सकता है कि ‘विशेष श्रेणी’ की मांग उनके प्रतिद्वंद्वी रेड्‌डी को अगला चुनाव जिता सकती है। अपने मंत्रियों को मोदी सरकार से हटाकर नायडू ने फिलहाल रेड्‌डी की हवा ढीली कर दी है। नायडू की नाराजगी का दूसरा कारण शायद ज्यादा महत्वपूर्ण है। वे केंद्र से धुआंधार मदद लेकर ‘विशेष श्रेणी’ की मांग को निरर्थक सिद्ध कर सकते हैं। किंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों उनका जो अपमान हुआ है, उसने उन्हें अंदर से हिला दिया है।

उन्होंने यह बात खुले आम कही है और कई बार कही है कि वे दर्जनों बार दिल्ली गए पर प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें मिलने का समय तक नहीं दिया और जब बुधवार को उन्होंने उनसे फोन पर बात करने की कोशिश की तो वह भी विफल हो गई। मोदी ने पिछले सप्ताह गुरुवार शाम को नायडू से बात जरूर की लेकिन, ‘का बरखा जब कृषि सुखानी।’ इसलिए गुरुवार को इस्तीफे हो गए। यह बात आंध्र प्रदेश के आम मतदाताओं को गहरी चोट पहुंचाए बिना नहीं रहेगी। यह उनके नेता के साथ उनके स्वाभिमान की भी बात जो है। पूर्वोत्तर के राज्यों में कांग्रेस के सफाए के पीछे राहुल गांधी के इसी रवैए का बड़ा हाथ रहा है।

इसमें शक नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी अन्य प्रधानमंत्रियों के मुकाबले ज्यादा काम करते हैं लेकिन, वे अपना समय यात्राओं, उद्‌घाटनों, भाषणों, लंचों, डिनरों में खर्च करने की बजाय सरकार चलाने, देश की समस्याओं को ठीक से समझने और सुलझाने में लगाएं तो देश का ज्यादा भला होगा। यह ठीक है कि उनके गठबंधन के उनके सभी साथी उनसे नाराज हो जाएं तो भी पूर्ण बहुमत होने के कारण अगले साल तक उन्हें व उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है लेकिन, फिर होने वाला आम चुनाव काफी टेढ़ा पड़ सकता है।

चंद्रबाबू की टीडीपी ने मोदी सरकार से अपना संबंध विच्छेद कर लिया है लेकिन, भाजपा से उसने अपना तार अभी तक शायद इसीलिए जोड़ रखा है कि 23 मार्च को होने वाले राज्यसभा चुनाव में वह अपने तीनों उम्मीदवार जिताना चाहती है। उसका तीसरा उम्मीदवार तभी जीतेगा जब भाजपा का कम से कम एक वोट उसे मिले। इस तरह की राजनीतिक मजबूरियों के खत्म होते ही गठबंधन के सभी साथी नए रास्ते खोजने लग सकते हैं।

जहां तक टीडीपी का सवाल है, जगन मोहन रेड्‌डी की तरफ से यह सवाल पूछा जा रहा है कि सचमुच यदि नायडू सरकार आंध्र प्रदेश के लिए विशेष दर्जा चाहती है तो वह मोदी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव क्यों नहीं लाती। रेड्‌डी कांग्रेस ऐसा प्रस्ताव संसद में ला रही है। उसका टीडीपी समर्थन क्यों नहीं करती? यदि सरकार नहीं झुकेगी तो रेड्‌डी कांग्रेस के सभी सांसद संसद से इस्तीफा दे देंगे। तब क्या टीडीपी के 16 सांसद लोकसभा और छह सांसद राज्यसभा से इस्तीफा देंगे? यदि नहीं देंगे तो रेड्‌डी का जलवा आंध्र में चमकने लगेगा। अब टीडीपी मैदान में कूद ही गई है तो उसे ठेठ तक लड़ाई लड़नी ही पड़ेगी।

ऐसे में कांग्रेस का पाया मजबूत हो सकता है। रेड्‌डी की कांग्रेस और राहुल की कांग्रेस में 36 का आंकड़ा है। वे तो मिल ही नहीं सकते। कांग्रेस और टीडीपी का गठजोड़ हो सकता है। यदि यह हो गया तो इसका असर अखिल भारतीय होगा। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की गल-मिलव्वल शुरू हो गई है। यह लहर पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, बिहार और तमिलनाडु तक फैल गई तो 22 प्रांतों में राज करने वाली भाजपा का दम फूलते देर नहीं लगेगी।

-वेदप्रताप वैदिक

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