कश्मीर में पाक की शह पर ही होता है मौत का नंगा नाच

कश्मीर में मौत का तांडव अभी जारी है और इसके लिए और कोई नहीं बल्कि पाकिस्तान जिम्मेदार है जो अपनी हार का बदला लेने के लिए अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़े हुए है भारत के विरूद्ध।

मौत का नंगा नाच अभी रूका नहीं है कश्मीर में। यह इसी से स्प्ष्ट है कि कश्मीर में फैली हिंसा 26 सालों में 50 हजार लोगों को लील चुकी है। यह आंकड़ा अधिकारिक है और गैर सरकारी आंकड़ा यह संख्या एक लाख से अधिक बताता है। चाहे कुछ भी है इतना तो स्पष्ट है कि कश्मीर में मौत का तांडव अभी जारी है और इसके लिए और कोई नहीं बल्कि पाकिस्तान जिम्मेदार है जो अपनी हार का बदला लेने के लिए अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़े हुए है भारत के विरूद्ध।

अगर सरकारी आंकड़ों को ही स्वीकार करें तो औसतन इन सालों के दौरान प्रतिदिन 7 लोगों की दर से कश्मीर में मौतें हुई हैं। इन मौतों में यह बात अलग है कि मृतकों में आतंकी कितने थे और नागरिक कितने। इस सच को तो स्वीकार करना ही पड़ता है कि मरने वाले सभी हिन्दुस्तानी थे और उनकी रगों में हिन्दुस्तानी खून था जिसे इसलिए कश्मीर में गिरना पड़ा क्योंकि पाकिस्तान को अपनी 3 प्रत्यक्ष लड़ाइयों में हुई हार का बदला लेना था। नतीजतन आज आतंकवाद से त्रस्त कश्मीर में आपको अधिकतर बूढ़े और औरतें ही दिखेंगी क्योंकि नवयुवक या तो आतंकियों की गोलियों का शिकार हो चुके हैं या फिर सुरक्षा बलों की गोलियों के।

कश्मीर में 26 सालों से जारी पाक समर्थक आतंकवाद फिलहाल कश्मीर में 50000 से अधिक लोगों को लील चुका है। यह अधिकारिक आंकड़ा हैं। गैर सरकारी आंकड़े दोगुने तो नहीं लेकिन डेढ़ गुणा अवश्य हैं इससे। अर्थात एक लाख लोग इस आतंकवाद रूपी अप्रत्यक्ष युद्ध में अपनी जान गंवा चुके हैं जिसे पाकिस्तान ने भारत के साथ होने वाली तीन जंगों में हुई अपनी हार का बदला लेने के लिए छेड़ा हुआ है।

ऐसा भी नहीं है कि कश्मीरियों को पाकिस्तान द्वारा दिखलाए गए तथाकथित आजादी के सब्ज बागों से मुक्ति दिलवाने के लिए आए सुरक्षाकर्मी इन सभी से अछूते रहे हों बल्कि उन्हें भी अपनी कुर्बानी देनी पड़ी है। इतना अवश्य है कि इस सारे खून-खराबे में उनकी संख्या कम तो रही है पर इतना अवश्य है कि कश्मीर के आतंकवाद में सुरक्षाकर्मियों की कुर्बानी की संख्या ने उनके तथाकथित अत्याचारों में वृद्धि अवश्य की है।

अधिकारिक आंकड़े ही बताते हैं कि आतंकवाद का यह सात सालों का अरसा, जिसमें अभी भी कोई कमी आने की आस नहीं जगी है, 8000 सुरक्षाकर्मियों की कुर्बानी ले चुका है और 15000 हजार से अधिक घायल भी हुए हैं। जिनमें से कई अपंग और कई मानसिक रूप से विक्षिप्त भी हुए हैं। गैर सरकारी तथा आतंकी दावे के अनुसार सुरक्षाकर्मियों के हताहतों की संख्या सरकारी संख्या से चार गुणा अधिक है जिन पर आतंकियों ने डेढ़ लाख से अधिक हमले किए और उन पर होने वाली गोलीबारी की घटनाओं में से उन्होंने सिर्फ एक लाख घटनाओं का ही उत्तर दिया था।

मौत के आंकड़ों के बावजूद, जो अपनी दर से लगातार बढ़ते जा रहे हैं, सरकार आतंकवाद में कमी आने का दावा तो करती है लेकिन उसके इस दावे का खंडन उसके द्वारा प्रस्तुत आंकड़े आप ही करते हैं। अधिकारिक आंकड़े ही बताते हैं कि इन सालों के दौरान 25000 आतंकी मारे गए हैं और अगर इसका औसतन निकाला जाए तो प्रतिदिन तीन आतंकवादी की दर से निकलता है।

कश्मीर में मारे गए नागरिकों का आंकड़ा भी आतंकियों के बराबर ही है। बस उनमें अंतर इतना है कि 20 हजार के लगभग को आतंकियों ने अपनी तथाकथित आजादी की जंग में ‘मुखबिर’ का ठप्पा लगा कर हत्या की तो 8000 से अधिक सुरक्षा बलों की गोलियों से उस समय मारे गए जब कानून तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षाकर्मियों ने बल प्रयोग किया या फिर वे मासूम नागरिक आतंकियों के साथ होने वाली मुठभेड़ों में जा फंसे।

आतंकवाद के स्तर को नापने में आगजनी तथा राकेट हमलों की घटनाओं के अतिरिक्त अपहरण के मामले भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आगजनी की 15000 घटनाओं में आतंकियों द्वारा तबाह की गई इमारतों, स्कूलों आदि की संख्या शामिल नहीं है जो 20 हजार के आंकड़े को कब का पार कर चुके हैं। इन सात सालों के दौरान अपने 1750 राकेट हमलों से वे लोगों में दहशत फैलाने में कामयाब रहे हैं।

मगर इतना अवश्य है कि राकेट हमलों के साथ साथ आतंकियों ने लोगों में भय, आतंक की लहर फैलाने के लिए जिन हथियारों का प्रयोग किया उसमें अपहरण का हथियार बहुत खतरनाक माना जाता रहा है। अपने इस हथियार का प्रयोग करके उन्होंने कई हजार लोगों को अपनी कैद में रखा। आधिकारिक आंकड़ा तो 7500 का है मगर सरकार आप ही स्वीकर करती है कि हजारों अन्य मामले पुलिस तथा सुरक्षा बलों की नजर में नहीं आ पाए हैं जिनमें कई तो खुशकिस्मत थे जो फिरौती देकर छूट गए और जो बदकिस्मत थे वे फिरौती की रकम नहीं दे पाए और गुमनाम मौत का शिकार हो गए।

- सुरेश एस डुग्गर

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़