सिर्फ नाम और नारा देकर बिखरने वाला इंडिया गठबंधन भारतीय राजनीति में सबसे विफल प्रयोग था

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यही हाल लोकसभा चुनावों से पहले भी देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री पद के अलावा गठबंधन के संयोजक के पद के लिए भी इतने दावेदार थे कि बात बन ही नहीं पाई। यह गठबंधन सिर्फ नाम और नारा तय करने के बाद ही बिखर गया।

विपक्षी दलों ने इंडिया नामक गठबंधन बना कर नारा दिया था कि जीतेगा इंडिया। विपक्षी दलों ने केंद्र की सत्ता से मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का दम भरते हुए कहा था कि हम 400 सीटों पर भाजपा के खिलाफ एक उम्मीदवार उतारेंगे ताकि भाजपा को हराया जा सके। विपक्षी दलों ने दावा किया था कि हम सीट बंटवारे के समय बड़ा दिल दिखाएंगे। लेकिन यह सब दावे तब हवा हवाई हो गये जब यह गठबंधन ही भरभरा कर गिर गया। पहले तो इस गठबंधन की नींव रखने वाले नीतीश कुमार ही पलटी मार कर वापस एनडीए के पाले में चले गये। फिर राष्ट्रीय लोक दल ने भी एनडीए का दामन थाम लिया। तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी इस गठबंधन से किनारा कर लिया। आम आदमी पार्टी ने तो अपने उम्मीदवार भी घोषित करने शुरू कर दिये।

अब जम्मू-कश्मीर की प्रमुख पार्टी नेशनल कांफ्रेंस ने भी ऐलान कर दिया है कि वह लोकसभा और विधानसभा चुनाव बिना किसी गठबंधन के अपने बलबूते लड़ेगी। हम आपको बता दें कि विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट होने के प्रयास तो भरसक किये लेकिन आपसी विश्वास की कमी से यह गठजोड़ हमेशा बिखरता चला गया। याद कीजिये जब राष्ट्रपति चुनाव की बात आई थी तब भी विपक्ष एकजुट हुआ था लेकिन ऐन मौके पर सारे बड़े नेता चुनाव लड़ने से पीछे हट गये थे और यशवंत सिन्हा को आगे कर दिया था। ऐसा ही हाल उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी देखने को मिला था जब विपक्षी एकजुटता ऐन चुनाव से पहले बिखर गयी और कोई सशक्त उम्मीदवार देने की बजाय पूर्व राज्यपाल मारग्रेट अल्वा को मैदान में उतार दिया गया था।

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यही हाल लोकसभा चुनावों से पहले भी देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री पद के अलावा गठबंधन के संयोजक के पद के लिए भी इतने दावेदार थे कि बात बन ही नहीं पाई। यह गठबंधन सिर्फ नाम और नारा तय करने के बाद ही बिखर गया। देखा जाये तो यह भारतीय राजनीति में सबसे विफल प्रयोग था क्योंकि इससे पहले बनने वाले गठबंधनों ने कुछ महीनों और सालों तक की जिंदगी जी लेकिन इंडिया गठबंधन तो मात्र तीन बैठकों के बाद ही टांय टांय फिस्स हो गया।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विपक्षी गठबंधन इंडिया की एक प्रमुख पार्टी राकांपा भी टूट चुकी है और इसका बड़ा भाग एनडीए के खाते में जबकि छोटा टुकड़ा विपक्ष के पास बचा है। इसके अलावा चुनाव सिर पर होने के बावजूद राहुल गांधी को दिल्ली में सीट बंटवारे पर चर्चा करने की बजाय दूसरे प्रदेशों में घूमते देख फारुक अब्दुल्ला का माथा भी ठनक गया है और उन्होंने भी इस गठबंधन से किनारा कर लिया है। देखना होगा कि इस गठजोड़ में बचे खुचे दल भी चुनाव घोषणा तक साथ रहते हैं या जल्द ही किनारा करते हुए कांग्रेस को अकेला छोड़ देते हैं। फिलहाल तो इस गठबंधन के बचे हुए घटक दल एक दूसरे से 'तू चल मैं आया' कहते दिख रहे हैं। यही नहीं, हाल के दिनों में कांग्रेस के ही कई बड़े नेता पार्टी से किनारा कर चुके हैं और कई नेता किनारा करने की तैयारी में हैं। इससे इंडिया गठबंधन के बचे हुए घटक दलों में यह भी संदेश जा रहा है कि जो पार्टी खुद एकजुट नहीं है वह विपक्षी दलों को कैसे एकजुट रख पायेगी?

-नीरज कुमार दुबे

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