पुतिन को युद्ध लड़ने के लिए धन नहीं दे रहा भारत, मोदी ने तो दुनिया को संकट में फँसने से बचाया

Modi Putin
ANI

सच्चाई यही है कि भारत ने रूस को आर्थिक सहारा नहीं दिया, बल्कि दुनिया को महँगाई और ऊर्जा संकट से बचाया। भारत का योगदान वैश्विक स्थिरता का प्रतीक है, और उस पर लगाए जा रहे आरोप अमेरिका के दोहरे मानदंड से ज़्यादा कुछ नहीं।

रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर बार-बार अमेरिकी अधिकारी और मंत्री भारत पर उंगली उठाते हैं। टैरिफ लगाने के फैसले को सही ठहराने के लिए यह कहा जाता है कि भारत ने रूस को आर्थिक सहारा दिया है। लेकिन ज़रा तथ्यों पर नज़र डालें तो साफ़ हो जाता है कि भारत इस युद्ध के लिए ज़िम्मेदार नहीं है, बल्कि उसने वैश्विक स्थिरता बनाए रखने में निर्णायक योगदान दिया है। अमेरिका को समझना होगा कि शांति का रास्ता बलि का बकरा बनाने से नहीं निकलेगा। भारत लगातार कूटनीति और बातचीत का समर्थन करता रहा है। जबकि यूरोप अब भी रूसी गैस ले रहा है और अमेरिका रूसी यूरेनियम आयात करता है। ऐसे में भारत को दोषी ठहराना केवल राजनीति है, तथ्य नहीं।

सच्चाई यही है कि भारत ने रूस को आर्थिक सहारा नहीं दिया, बल्कि दुनिया को महँगाई और ऊर्जा संकट से बचाया। भारत का योगदान वैश्विक स्थिरता का प्रतीक है, और उस पर लगाए जा रहे आरोप अमेरिका के दोहरे मानदंड से ज़्यादा कुछ नहीं। आइये कुछ प्रश्नों और उनके उत्तर के माध्यम से सारी स्थिति को समझने का प्रयास करते हैं।

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प्रश्न 1. क्या भारत ने पुतिन को वित्तीय सहारा दिया है?

उत्तर- नहीं। भारत ने एक वैश्विक संकट टाल दिया। रूस दुनिया की लगभग 10% तेल आपूर्ति करता है। यदि भारत खरीदना बंद कर देता तो कच्चा तेल 200 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच सकता था। भारत ने तेल की आपूर्ति जारी रखकर बाज़ार को स्थिर किया और वैश्विक नागरिकों की मदद की। अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट येलेन समेत कई नेताओं ने भारत की भूमिका की सराहना की।

प्रश्न 2. क्या भारत रूसी तेल खरीदने के लिए अमेरिका डॉलर का इस्तेमाल कर रहा है?

उत्तर- ग़लत। भारतीय रिफाइनर रूसी तेल के लिए अमेरिकी डॉलर का उपयोग नहीं करते। लेन-देन तीसरे देशों के व्यापारियों के माध्यम से होता है और AED जैसी मुद्राओं में निपटान किया जाता है। किसी भी समय अमेरिकी सरकार ने भारत से तेल खरीद बंद करने को नहीं कहा। भारत का व्यापार पूरी तरह वैध है और G7 व EU की प्राइस-कैप नियमावली के अनुरूप है।

प्रश्न 3. क्या भारत ब्लैक मार्केट तेल खरीद रहा है?

उत्तर- ऐसा कोई ब्लैक मार्केट नहीं है। रूसी तेल पर ईरानी या वेनेज़ुएलाई तेल की तरह प्रतिबंध नहीं है। यह पश्चिम द्वारा बनाए गए प्राइस-कैप सिस्टम के तहत बेचा जाता है ताकि कोई अतिरिक्त मुनाफ़ाखोरी न कर सके। यदि अमेरिका रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाना चाहता तो उसे सीधे प्रतिबंधित कर देता। उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि बाज़ार को रूसी तेल की आवश्यकता है।

प्रश्न 4. क्या भारत ने अचानक रूसी तेल आयात बढ़ाकर मुनाफ़ाखोरी की?

उत्तर- नहीं। जब वैश्विक स्तर पर तेल 137 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँचा, भारत ने अपने नागरिकों के लिए ईंधन की कीमतें घटाईं। सरकारी तेल कंपनियों को 21,000 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा और सरकार ने निर्यात पर कर लगाकर मुनाफ़ाखोरी को रोका। भारत के आयात ने वैश्विक कीमतों को बढ़ने से रोका और सभी के लिए महँगाई को नियंत्रित किया।

प्रश्न 5. क्या भारत रूसी तेल का मनी लॉन्ड्रिंग हब बन गया है?

उत्तर- नहीं। भारत दशकों से दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रिफाइनिंग केंद्र है। कच्चे तेल को रिफाइन करना और ईंधन निर्यात करना वैश्विक व्यवस्था का हिस्सा है। यूरोप ने रूसी कच्चे तेल पर प्रतिबंध लगाने के बाद भारत से डीज़ल और जेट फ्यूल पर भरोसा किया। यह स्थिरीकरण है, मनी लॉन्ड्रिंग नहीं।

प्रश्न 6. क्या भारतीय रिफाइनर पुतिन के मुनाफ़े विदेश भेज रहे हैं?

उत्तर- ग़लत। लगभग 70% रिफाइंड फ्यूल भारत में ही घरेलू मांग पूरी करने के लिए रहता है। रिलायंस की एक रिफाइनरी 2006 से ही निर्यात-केंद्रित है, यानी युद्ध से बहुत पहले से। घरेलू खपत बढ़ने के कारण निर्यात वास्तव में घटा है। कच्चा तेल और उत्पाद वैश्विक बाज़ार के हिसाब से चलते हैं।

प्रश्न 7. क्या भारत अमेरिकी निर्यातकों को टैरिफ़ से दंडित कर रहा है और रूस को फंड कर रहा है?

उत्तर- यह तर्क खोखला है। अमेरिका का व्यापार घाटा चीन, यूरोपीय संघ और मेक्सिको के साथ भारत से कहीं बड़ा है। भारत का 50 अरब डॉलर का घाटा इसकी तुलना में बहुत छोटा है। वहीं भारत अमेरिका से हवाई जहाज़, एलएनजी, रक्षा उपकरण और तकनीक अरबों डॉलर में खरीदता है।

प्रश्न 8. क्या भारत अमेरिका से रक्षा उपकरण नहीं खरीद रहा है?

उत्तर- भारत GE के साथ जेट इंजन सह-उत्पादन कर रहा है, MQ-9 ड्रोन खरीद रहा है और क्वाड व इंडो-पैसिफिक रक्षा सहयोग को गहरा कर रहा है। एशिया में चीन का सैन्य मुकाबला सक्रिय रूप से करने वाली अकेली बड़ी शक्ति भारत है। यह अमेरिका के लिए सीधा रणनीतिक लाभ है।

प्रश्न 9. क्या यूक्रेन में शांति का रास्ता नई दिल्ली से होकर गुजरना चाहिए?

उत्तर- शांति बलि का बकरा बनाने से नहीं आएगी। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में लगातार कूटनीति की मांग की है। इसी बीच यूरोप अब भी रूसी गैस खरीद रहा है और अमेरिका रूसी यूरेनियम आयात करता है। भारत ने ज़िम्मेदारी से काम किया, वैश्विक नियमों का पालन किया और कीमतों को बेकाबू होने से बचाया।

प्रश्न 10. सच्चाई क्या है?

उत्तर- भारत ने रूस को आर्थिक सहारा नहीं दिया। भारत ने बाज़ार को स्थिर रखा, ईंधन किफ़ायती बनाया और महँगाई को अपने लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए नियंत्रित किया। भारत को दोषी ठहराना राजनीति हो सकती है, लेकिन तथ्य नहीं।

बहरहाल, भारत पर आरोप लगाना आसान है, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत ने न केवल अपने नागरिकों बल्कि पूरी दुनिया को ऊर्जा संकट और महँगाई से बचाया। उसने ज़िम्मेदार ताक़त की तरह वैश्विक स्थिरता सुनिश्चित की और यह दिखाया कि भारत समस्या का हिस्सा नहीं, बल्कि समाधान का नेतृत्व करने वाला देश है।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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