सुन लो बुआ...सुन लो बीजेपी...अब बबुआ मत कहना
बुआ मायावती जिस अखिलेश यादव को बबुआ समझती रहीं...वो अब पिता मुलायम की परछाईं से बाहर निकलकर यूपी की राजनीति में अलग मुकाम हासिल कर चुके हैं।
पिता की साइकिल पर सवार होकर यूपी के सिंहासन पर काबिज हुए अखिलेश को अब बबुआ कहलाना पसंद नहीं। तीन बच्चों के पिता होने के साथ-साथ सबसे बड़े सूबे के मुखिया को लोग बबुआ समझते रहे आखिर अखिलेश ये कब तक बर्दाश्त करते। बुआ मायावती जिस अखिलेश को बबुआ समझती रहीं...वो अब पिता मुलायम की परछाईं से बाहर निकलकर यूपी की राजनीति में अलग मुकाम हासिल कर चुके हैं। करीब 3 साल तक पिता मुलायम और चाचा शिवपाल के आदेशों का पालन करते-करते बबुआ इतना बड़ा हो गया कि चुनाव आते-आते उसने सभी को अपने आगे चित कर दिया।
आखिर बबुआ में ये बदलाव आया कैसे? सार्वजनिक मंच पर पिता मुलायम और शिवपाल की नाराजगी झेलने वाले अखिलेश शायद सही वक्त का इंतजार कर रहे थे। चाचा शिवपाल को लगता था कि नेताजी उनके साथ हैं...लिहाजा उन्हें अखिलेश से कोई खतरा नहीं...लेकिन चाचा यहीं भूल कर गए। पिछले एक साल में अखिलेश ने जहां अपनी छवि चमका ली...वहीं पार्टी के अंदर विधायकों का दिल भी जीत लिया। समय आने पर बबुआ ने अपने दूसरे चाचा रामगोपाल के साथ मिलकर न सिर्फ शिवपाल की घेराबंदी कर दी..बल्कि पिता के विरोध के बावजूद उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया...वैसे बाद में पिता मुलायम के दबाव में अखिलेश को झुकना पड़ा...लेकिन अखिलेश दुनिया तक संदेश पहुंचा चुके थे कि अब वो बबुआ नहीं रहे।
एक तरफ घर में चाचा शिवपाल से लड़ाई दूसरी तरफ बाहुबली अतीक अहमद जैसे नेताओं से निपटना बबुआ के लिए आसान नहीं था। लेकिन अपनी सूझ-बूझ का इस्तेमाल कर अखिलेश तमाम बाधाओं को पार कर आगे निकलते गए।
उधर चाचा शिवपाल ने कुछ और ही सोच रखा था...बात-बात पर नेताजी से अखिलेश की शिकायत करने वाले शिवपाल चुनाव में अपना सिक्का जमाना चाहते थे। यहां तक कि उन्होंने अखिलेश को बिना बताए 400 उम्मीदवारों की सूची भी तैयार कर ली।
अब बबुआ शांत बैठने वाले नहीं थे...बतौर सीएम जनता के बीच लोकप्रिय हो चुके अखिलेश को ये मंजूर नहीं था कि उम्मीदवारों की सूची पर कोई और मुहर लगाए। अखिलेश ने चाचा शिवपाल से उलट उम्मीदवारों की अपनी सूची बना ली और उसे पिता मुलायम के सामने पेश कर दिया। लेकिन चाचा शिवपाल ने नेताजी को ऐसा पाठ पढ़ाया कि मुलायम बेटे के खिलाफ हो गए। मुलायम ने एक झटके में अखिलेश और रामगोपल को पार्टी से 6 साल के लिए निष्काषित कर यूपी की राजनीति में भूचाल ला दिया।
लेकिन बबुआ ने भी ठान ली थी कि अब आर-पार की लड़ाई लड़नी है....मुलायम को जब पार्टी टूटती दिखाई दी तो वो साइकिल बचाने सीधे चुनाव आयोग पहुंच गए..लेकिन आयोग ने फैसला बेटे के पक्ष में सुनाया और फिर सारी कहानी ही बदल गई।
परिवार से लड़ाई कर चुनाव आयोग से साइकिल जीतकर अखिलेश अपनी पार्टी में किंग बन गए...देर से ही सही मुलायम को भी इस बात का अहसास हो गया कि अब समय अखिलेश का है...लिहाजा नहीं चाहते हुए भी उन्हें बेटे के आगे सरेंडर करना पड़ा।
समाजवादी पार्टी ने जब शुक्रवार को 209 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया तो लिस्ट में ज्यादातर उम्मीदवार अखिलेश की पंसद के थे। अखिलेश ने बाहुबली अतीक अहमद समेत कई नेताओं की छुट्टी कर दी जिन्हें शिवपाल उम्मीदवार बनाना चाहते थे। अखिलेश अब नहीं चाहते कि लोग उन्हें नेताजी के नाम पर वोट दें...अखिलेश को लगता है कि उन्होंने अपने शासनकाल में कई मुख्यमंत्रियों से बेहतर काम किया है और उन्हें इसका इनाम मिलना चाहिए।
अखिलेश के इरादे तो मजबूत हैं...लेकिन यूपी में बदलते राजनीतिक समीकरण को देखते हुए वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। अखिलेश... कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए तो तैयार हो गए..लेकिन सीट बंटवारे पर अब भी पेच फंसा है...कांग्रेस कम से कम 100 सीटें मांग रही है...जबकि अखिलेश उसे 89 से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं। हो सकता है 5 सीट इधर या 5 सीट उधर का हिसाब बिठाकर कांग्रेस को उनकी बात माननी भी पड़ जाए।
सियासत का रंग देखिए...कुछ दिनों पहले तक लोग जिसे बबुआ समझ रहे थे आज वो एक मंझे हुए नेता की तरह अपने विरोधियों को पटखनी दे रहे हैं। तो सुन लो बुआ...और सुन लो बीजेपी...अब अखिलेश को बबुआ मत कहना...क्योंकि जो बबुआ नेताजी जैसे दिग्गज नेता के चक्रव्यूह को भेद सकता है वो कुछ भी कर सकता है।
मनोज झा
(लेखक टीवी समाचार चैनल आजतक में वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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