मोदी की मालदीव यात्रा से हिंद महासागर में फिर मज़बूत हुई भारत की पकड़, चीन की बेचैनी बढ़ी

Modi Muizzu
ANI

मोदी की मालदीव यात्रा से पड़ने वाले असर को देखें तो इस ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब भी मालदीव की रणनीतिक प्राथमिकता है। साथ ही श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी भी देख रहे हैं कि भारत बिना धमकाए, बिना ऋणजाल के, सहयोग और स्थिरता का मार्ग प्रस्तुत करता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा केवल एक औपचारिक राजकीय दौरा नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक बिसात पर भारत की चतुर कूटनीति, रणनीतिक धैर्य और नेतृत्व क्षमता का स्पष्ट प्रदर्शन भी है। यह यात्रा इस प्रश्न का उत्तर भी है— कि कैसे भारत ने ‘चीन की गोद में जाते’ मालदीव को फिर से अपने पक्ष में मोड़ लिया।

हम आपको याद दिला दें कि 2023 में जब मोहम्मद मुइज्जू सत्ता में आए, तो उन्होंने खुलकर "India Out" अभियान का समर्थन किया और भारतीय सैन्य उपस्थिति पर सवाल उठाए। उनकी शुरुआती विदेश यात्राएं भी संकेत दे रही थीं कि मालदीव अब चीन के करीब जा रहा है। लेकिन भारत ने जल्दबाज़ी में कोई कड़ा कदम नहीं उठाया। इसके विपरीत, उसने "Engagement over Escalation" (संवाद, न कि टकराव) की नीति अपनाई। भारत ने रक्षा कर्मियों को तकनीकी विशेषज्ञों से बदला, जिससे मालदीव की 'संप्रभुता' की चिंता को दूर किया गया, लेकिन रणनीतिक उपस्थिति बनाए रखी गई। साथ ही विकास परियोजनाओं को बिना शोर के आगे बढ़ाया गया जिससे आम जनता को भारत की भूमिका का सकारात्मक प्रभाव दिखता रहा। इसके अलावा, आर्थिक मदद जैसे 30 अरब रुपये की ऋण सुविधा, करेंसी स्वैप और ट्रेजरी बिलों से मालदीव की डूबती अर्थव्यवस्था को सहारा दिया गया। साथ ही सांस्कृतिक, राजनीतिक और पार्टी-स्तरीय जुड़ाव को फिर से शुरू किया गया, जिससे भारत और मालदीव के बीच बहुस्तरीय संपर्क बने रहें।

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इसके अलावा, 2024–25 में भारत ने नई परियोजनाएं घोषित करने की बजाय पूर्ववर्ती विकास कार्यक्रमों को तेज़ी से पूरा करने पर ध्यान केंद्रित किया। हनीमाधू अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट जैसे विशाल निर्माण कार्य इसके उदाहरण हैं। इनका न केवल आर्थिक, बल्कि रणनीतिक महत्व भी है क्योंकि ये चीन समर्थित बंदरगाह-राजनीति के विकल्प प्रस्तुत करते हैं।

देखा जाये तो भारत की नीति में ज़बरदस्त कूटनीतिक परिपक्वता थी। भारत ने मुइज्जू की ओर से उकसाने के बावजूद भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि दीर्घकालिक रणनीतिक सोच के साथ अपने कदम आगे बढ़ाये। प्रधानमंत्री मोदी जब मालदीव पहुँचे तो उनके स्वागत के लिए उमड़ी जनता और अगवानी के लिए पहुँचे मुइज्जू की खुशी देखने लायक थी। हम आपको बता दें कि मालदीव जैसे राष्ट्र में यह परंपरा नहीं रही कि राष्ट्रपति स्वयं एयरपोर्ट पर किसी राष्ट्राध्यक्ष की अगवानी करें। मुइज्जू का प्रधानमंत्री मोदी को हवाई अड्डे पर व्यक्तिगत रूप से रिसीव करना कई गहरे संदेश देता है। जैसे- यह ‘India Out’ अभियान से पूरी तरह यू-टर्न है। अब राष्ट्रपति खुद भारत के सर्वोच्च नेता के स्वागत में खड़े हैं। इसके अलावा, मुइज्जू यह दिखाना चाहते हैं कि अब भारत के साथ सहयोग राष्ट्रहित में है। यह संकेत देशवासियों के लिए है कि भारत शत्रु नहीं, सहायक है। यह कूटनीतिक संकेत भी है कि भारत, अब भी मालदीव की विदेश नीति में सर्वोपरि है, चाहे चीन ने कितनी भी कोशिश की हो।

इसके अलावा, मालदीव की राजधानी माले में, भारत की मदद से बने रक्षा मंत्रालय भवन पर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर प्रदर्शित होना भी अपने आप में महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। यह न केवल भारत की रक्षा सहायता की स्थायित्व को दर्शाता है, बल्कि यह मालदीव की जनता को दिखाता है कि चीन कर्ज देता है लेकिन भारत सुरक्षा और स्थिरता देता है। देखा जाये तो यह भारत की Soft Power की जीत है, जो किसी भी सैन्य हथियार या बंदरगाह समझौते से अधिक प्रभावशाली साबित हुई है।


मोदी की मालदीव यात्रा से पड़ने वाले असर को देखें तो इसने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब भी मालदीव की रणनीतिक प्राथमिकता है। साथ ही श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी भी देख रहे हैं कि भारत बिना धमकाए, बिना ऋणजाल के, सहयोग और स्थिरता का मार्ग प्रस्तुत करता है। इसके अलावा, मालदीव की भौगोलिक स्थिति हिंद महासागर की व्यापक सामरिक निगरानी के लिए महत्वपूर्ण है। मोदी की यात्रा के बाद भारत की मौजूदगी और वैधता वहाँ स्थिर और वैधानिक हो गई है— यह चीन के लिए एक रणनीतिक अवरोध है।

हम आपको बता दें कि यह पहली बार है जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री गैर-MDP सरकार द्वारा आमंत्रित होकर स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर ‘मुख्य अतिथि’ बना है। यह न केवल आपसी सम्मान का परिचायक है, बल्कि यह भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति की सफलता का भी प्रमाण है। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी की यह राजकीय यात्रा किसी शासनाध्यक्ष की पहली राजकीय यात्रा भी है, जिसकी मेजबानी राष्ट्रपति मुइज्जू नवंबर 2023 में पदभार ग्रहण करने के बाद से कर रहे हैं। हम आपको यह भी बता दें कि मालदीव में एक परम्परा रही है कि नया राष्ट्रपति बनने वाला व्यक्ति पहला दौरा भारत का करता है लेकिन मुइज्जू ने सबसे पहला दौरा तुर्की का किया था उसके बाद वह संयुक्त अरब अमीरात गये थे। उसके बाद उन्होंने चीन की बहुप्रचारित यात्रा भी की थी लेकिन उन्हें जब दूसरों के कर्ज जाल और भारत की निस्वार्थ मदद के बीच का अंतर समझ आया तो पिछले साल उन्होंने दो बार भारत का दौरा किया था और अब उन्होंने अपने कार्यकाल में किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष को राजकीय यात्रा पर आमंत्रित किया तो वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।

इस तरह देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा एक प्रतीकात्मक ही नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है। यह यात्रा न केवल द्विपक्षीय संबंधों में आई खटास के बाद एक 'रीसेट' का संकेत देती है, बल्कि यह दिखाती है कि भारत किस तरह अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को दीर्घकालिक दृष्टि से संभालता है।

बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा न केवल 60 वर्षों के द्विपक्षीय संबंधों का उत्सव है, बल्कि आने वाले दशकों की दिशा भी तय करती है। भारत और मालदीव के संबंध अब केवल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक साझेदारी नहीं हैं— वे समुद्री सुरक्षा, विकास, और क्षेत्रीय संतुलन के मजबूत स्तंभ बनते जा रहे हैं। यह यात्रा एक स्पष्ट संकेत देती है कि भारत, आलोचना से विचलित हुए बिना, अपने पड़ोस में स्थिरता और सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है। और यही किसी भी परिपक्व वैश्विक शक्ति की सबसे बड़ी पहचान होती है।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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